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________________ प्रतिक्रमण २१ प्रश्नकर्ता: नहीं, किंतु बात लॉजिकल (तार्किक ) है सारी । दादाश्री : संडास जाना भी परसत्ता के हाथ में है तो 'करने का ' आपके हाथ में कैसे हो सकता है? ऐसा कोई मनुष्य पैदा नहीं हुआ कि जिसके हाथ में कुछ भी करने की सत्ता हो। आपको जानना है और निश्चय करना है, इतना ही आपको करने का है। यह बात समझ में बैठ गई तो काम निकल जायेगा । अभी समझ में बैठ जाये इतनी आसान नहीं है। आपकी समझ में आता है? कुछ करने के बजाय जानना बेहतर? करना तुरन्त हो सकता है? प्रश्नकर्ता: आप जो कहते हैं वह समझ में आया। बात सही है। मगर यह समझने के बाद भी 'करने का' तो रहता ही है न? जैसे करने की सत्ता नहीं है वैसे जानने की भी सत्ता तो नहीं है न? दादाश्री : नहीं, जानने की सत्ता है, करने की सत्ता नहीं है। यह बहुत सूक्ष्म बात है। इतनी बात अगर समझ में आ जाये तो बहुत हो गया। एक लड़का चोर हो गया है। वह चोरी करता है। मौका मिलने पर लोगों के पैसे चुरा ले। घर पर गेस्ट आये हो उसे भी नहीं छोड़ता । अब उस लड़के को हम क्या सिखायेंगे? कि तू दादा भगवान के पास इस जनम में, चोरी नहीं करने की शक्ति माँग । अब, इसमें उसका क्या लाभ हुआ? कोई कहेगा, इसमें क्या सिखाया? वह तो शक्ति माँगता रहता है और चोरियाँ भी करता रहता है। 'अरे, भले चोरियाँ ही करता हो, पर यह शक्तियाँ माँग-माँग करता है कि नहीं?' हाँ, शक्तियाँ माँग-माँग करता है। तो हम जानते हैं कि यह दवाई क्या काम कर रही है। आपको कैसे पता चले कि दवाई क्या काम कर रही है ! प्रश्नकर्ता: हक़ीकत वे जानते नहीं हैं कि दवाई क्या काम रही है। इसलिए माँगने से लाभ होता है कि नहीं यह भी नहीं समझते। दादाश्री : अर्थात् इसका भावार्थ क्या है? कि एक तो वह लड़का २२ प्रतिक्रमण माँगता है कि मुझे चोरी न करने की शक्ति दीजिए। अर्थात् एक तो उसने अपना अभिप्राय बदल दिया। 'चोरी करना बुरी बात है और चोरी नहीं करना अच्छा है।' ऐसी शक्तियाँ माँगता है, इसलिए चोरी नहीं करनी चाहिए ऐसे अभिप्राय पर आ गया। सबसे बड़ी बात तो यह अभिप्राय बदल गया ! और जब से अभिप्राय बदल गया तब से वह गुनहगार होने से बच गया। फिर दूसरा क्या हुआ ? भगवान से शक्ति माँगता है, इसलिए उसका परम विनय प्रकट हुआ । हे भगवान! शक्ति दीजिए। इससे वे तुरन्त शक्ति दें। और कोई चारा ही नहीं न! सबको दें, माँगनेवाले चाहिए। इसलिए कहता हूँ कि माँगना न भूलें। आप तो कुछ माँगते ही नहीं। कभी नहीं माँगते । शक्ति माँगे यह बात आपकी समझ में आई? दादा के पास माफ़ी माँगना, साथ ही साथ जिस वस्तु के लिए माफ़ी माँगे, उसके लिए मुझे शक्ति दीजिए, शक्ति दीजिए। ऐसे शक्ति माँग लेना । अपनी खुद की शक्ति खर्च मत करना, वरना अपने पास जो है वह खतम हो जायेगी और माँग कर खर्च करोगे तो खत्म नहीं होगी और बढ़ेगी, आपकी दुकान में कितना माल (शक्ति) होवे ? हर एक बाबत में, 'दादा, मुझे शक्ति दीजिए, ऐसे शक्ति माँग-माँग करके ले ही लेना । प्रतिक्रमण चूक जाये तो प्रतिक्रमण पद्धति अनुसार करने की मुझे शक्ति दीजिए। सारी शक्तियाँ माँग लेना। हमारे पास तो आप माँगते भूलें इतनी शक्ति है। ६. रहें फूल, जायें काँटे..... प्रकृति क्रमण से पैदा हुई है, लेकिन अतिक्रमण से फैल जाती है, उसकी शाखा प्रशाखाएँ सभी ! और प्रतिक्रमण से वह सारा फैलाव कम हो जाता है, इसलिए उसे सभानता आती है। अर्थात् मैं क्या कहना चाहता हूँ कि अभी हम किसी जगह दर्शन
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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