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________________ प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान। वही हमारा यह मोक्षमार्ग है। उसमें क्रियाकांड और ऐसा सब नहीं होता न! आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान वही यह मोक्षमार्ग। कितने ही अवतारों से हमारी यह लाइन (मार्ग), कितने ही अवतारों से आलोचनाप्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान करते करते यहाँ तक पहुँचे हैं। कषाय नहीं करना और प्रतिक्रमण करना वे दो ही धर्म हैं। और पूर्वकर्म के अनुसार कषाय हो जाये उनके प्रतिक्रमण करना यही धर्म है। बाकी और कोई धर्म जैसी चीज़ नहीं है। और ये दो आइटम (चीज़े) ही इन सभी लोगों ने निकाल दी है! दादाश्री : ऐसा कभी नहीं होता। किस तप से निर्जरा होगी? आंतरिक तप चाहिए। अदृश्य तप, जो हम कहते हैं न कि ये सब हमारे महात्मा अदृश्य तप करते हैं; जो तप आँखों से नहीं दिखाई पड़ता। और आँखों से नज़र आनेवाले तप और जाने गये तप उन सबका फल पुण्य और अदृश्य तप अर्थात् भीतरी तप, आंतरिक तप, बाहर देखने में नहीं आता, उन सबका फल मोक्ष। ये साध्वीजियाँ जानती हैं कि हमें सारा दिन कषाय होते हैं, तो उन्हें क्या करना चाहिए? शाम को बैठकर एक पूरा गुणस्थान, इसके साथ यह कषाय भाव हुआ, उसके साथ यह कषाय भाव हुआ, ऐसे बैठकर उनके प्रतिक्रमण करें और फिर प्रत्याख्यान करें कि ऐसा नहीं करूँगी, ऐसा नहीं करूँगी, तो वे मोक्षमार्ग पर चल रहीं हैं। ऐसा तो कुछ करते नहीं वे बेचारें, फिर क्या हो? ऐसे मोक्षमार्ग समझें तो उस पर चल सकें न, समझने की जरूरत है। प्रश्नकर्ता : जब तक उससे प्रत्यक्ष क्षमा नहीं माँगें, तब तक उसको खटका तो रहेगा ही। इसलिए प्रत्यक्ष क्षमा तो माँगनी ही पड़े न? दादाश्री : प्रत्यक्ष क्षमा माँगनी जरूरी नहीं है। भगवान ने ना कही है। यदि आप प्रत्यक्ष क्षमा माँगोगे, तो भला आदमी हो तो उससे क्षमा माँगना और कमजोर मनुष्य होगा तो क्षमा माँगने पर सिर पे चपत लगायेगा। और वह ज्यादा कमजोर होगा। इसलिए प्रत्यक्ष प्रतिक्रमण मत करना और प्रत्यक्ष करना हो तो बहुत भला मनुष्य हो तो करना। कमजोर तो ऊपर से मारेगा। और संसार सारा कमजोर ही है। बदले में चपत लगायेगा. 'हं. मैं कहती थी न, तू समझती नहीं थी, मानती नहीं थी, अब आई ठिकाने।' अरे मुए, वह ठिकाने पर ही है, वह बिगड़ी नहीं। तू बिगड़ी है, वह सुधरी है, सुधर रही है। मोक्षमार्ग में क्रियाकांड या ऐसा कुछ नहीं होता है। केवल संसारमार्ग में क्रियाकांड होता है। संसारमार्ग माने, जिसे भौतिक सुख चाहिए, अन्य कुछ चाहिए, उसके लिए क्रियाकांड है। मोक्षमार्ग माने क्या? आलोचना, अब आपने उनसे उलटा कहा तो आपको प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। लेकिन उन्हें भी आपका प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। उनको क्या प्रतिक्रमण करना चाहिए कि, 'मैंने कब भूल की होगी कि इनको मुझे गाली देने का प्रसंग उत्पन्न हुआ?' अर्थात् उनको अपनी भूल का प्रतिक्रमण करना होगा। उन्हें अपने पूर्व जनम का प्रतिक्रमण करना होगा और आपको अपने इस जनम का प्रतिक्रमण करना पड़ेगा! ऐसे प्रतिक्रमण रोजाना पाँच सौ-पाँच सौ करें तो मोक्ष में जाये! यदि इतना ही करो तो दूसरा कोई धर्म नहीं खोजोगे तो भी हर्ज नहीं। इतना पालन करो तो काफ़ी है और मैं तुझे गारन्टी देता हूँ, तेरे सिर पर हाथ रख देता हूँ। जा, मोक्ष के लिए, अंत तक मैं तुझे सहकार दूंगा! तेरी तैयारी चाहिए। एक ही शब्द का पालन करेगा तो बहुत हो गया! ५. अक्रम विज्ञान की रीत हमारा अक्रम क्या कहता है? उसे पूछे कि, 'तू कई दिनों से चोरी करता है?' तब वह कहे कि, 'हाँ'। प्रेम से पूछने पर सब बतायेगा। कितने सालों से करता है?' तो वह कहे, 'दो-एक साल से करता हूँ।' फिर हम कहें, 'चोरी करता है उसमें कोई हर्ज नहीं।' उसके सिर पर हाथ फिरायें। 'किंतु प्रतिक्रमण करना इतना।' प्रतिक्रमण किया, तो सारी चोरी धूल गई।
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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