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________________ प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण हैं। प्रतिक्रमण में पहले तो उसका अर्थ समझना चाहिए कि यह मैं प्रतिक्रमण करता हूँ! किसका? किसी ने मेरा अपमान किया अथवा मैंने किसी का अपमान किया, उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। प्रतिक्रमण माने कषायों को समाप्त कर देना। ये लोग साल में एक बार प्रतिक्रमण करते हैं, तब नये कपड़े पहनकर जाते हैं। वह प्रतिक्रमण क्या शादी-ब्याह है कि क्या है? प्रतिक्रमण करना माने कितना गहरा पछतावा करना! वहाँ नये कपड़ो का क्या काम है?! वहाँ कुछ ब्याहना है? ऊपर से रायशी और देवशी (प्रतिक्रमण)। जब सुबह का खाया शाम को याद नहीं आता, तब प्रतिक्रमण किस प्रकार करेंगे? वीतराग धर्म किसे कहते है कि जिसमें प्रतिदिन पाँच सौ-पाँच सौ प्रतिक्रमण करें। जैन धर्म तो हर जगह है पर वीतराग धर्म नहीं है। बारह महीने में एक बार संवत्सरी पर प्रतिक्रमण करे. उसे जैन कैसे कहेंगे? फिर भी संवत्सरी प्रतिक्रमण करे उसका हमें विरोध नहीं है। हम ऐसा कठोर बोलते हैं, लेकिन हमने तो बोलने से पहले ही प्रतिक्रमण कर लिया होता है। आप हमारे जैसा मत बोलना। हम ऐसा सख्त बोलते हैं, भूल निकालते हैं, फिर भी हम सभी को निर्दोष देखते हैं। लेकिन संसार को समझाना तो होगा न? यथार्थ, सच्ची बात तो समझानी होगी न? आत्मज्ञान यह मोक्षमार्ग है। आत्मज्ञान प्राप्ति के पश्चात् के प्रतिक्रमण मोक्षमार्ग देंगे, उसके पश्चात् की सभी साधनाएँ मोक्षमार्ग देंगी। प्रश्नकर्ता : तो वह प्रतिक्रमण उसे आत्मज्ञान होने का कारण बन संसार के लोग प्रतिक्रमण करते हैं, जो जागृत हैं वे रायशी-देवशी दोनों प्रतिक्रमण करते हैं, इसलिए उतने दोष कम हो गये। पर जब तक दर्शन-मोहनीय है तब तक मोक्ष नहीं होगा, दोष उत्पन्न होते ही रहेंगे। जितने प्रतिक्रमण होंगे उतने दोष जायें। अर्थात इस काल में हाल 'शूट ऑन साइट' की बात तो रही ही नहीं लेकिन शाम को कहते है कि, सारे दिन का प्रतिक्रमण करना। वह बात भी कहाँ रही? सप्ताह में एकाधबार करने की बात भी कहाँ चली गई? और पाक्षिक भी कहाँ गया? और बारह महीने में एक बार करे, उसकी भी समझ नहीं है और अच्छे कपड़े पहनकर घूमते रहते हैं। अर्थात् ऐसे रियल (सच्चा) प्रतिक्रमण कोई नहीं करता। इसलिए दोष बढ़ते ही चले जाते हैं। प्रतिक्रमण तो उसे कहे कि दोष घटते ही जायें। यह नीरूबहन को आपके लिए जरा-सा उलटा विचार आया कि 'ये फिर आयें और मेरे लिए मुसीबत क्यों खडी की?' उतना विचार भीतर आये लेकिन आपको पता नहीं चलने देगी। मुँह हँसता रखेगी। उस समय प्रतिक्रमण करेगी। उलटा विचार करे वह अतिक्रमण किया कहलाये। वह प्रतिदिन पाँच सौ-पाँच सौ प्रतिक्रमण करती हैं। प्रश्नकर्ता : वह तो भाव प्रतिक्रमण है, क्रिया प्रतिक्रमण तो होगा ही नहीं न? दादाश्री : नहीं, क्रिया में प्रतिक्रमण होता ही नहीं, प्रतिक्रमण तो भाव प्रतिक्रमण की ही जरूरत है, जो कार्य करें। यहाँ क्रिया प्रतिक्रमण नहीं होता। प्रश्नकर्ता : द्रव्य प्रतिक्रमण और भाव प्रतिक्रमण माने क्या यह थोड़ा समझाइए। दादाश्री: भाव ऐसा रखना कि ऐसा नहीं होना चाहिए। यह भाव प्रतिक्रमण कहलाता है। और उस द्रव्य से तो पूरे शब्द-शब्द बोलने पड़े। जितने शब्द लिखे हो वे सभी हमें बोलने पड़े, वह द्रव्य प्रतिक्रमण कहलाये। सके? दादाश्री : नहीं। यह पुरानों का प्रतिक्रमण करे और फिर मोह के नये अतिक्रमण खड़े होते हैं। मोह बंद नहीं हुआ न? मोह रहा है न? दर्शन मोह है, इसलिए पुराने सभी प्रतिक्रमण करे, वे विलय हो जाये और नये पैदा होते रहें। प्रतिक्रमण करे उस घडी पुण्य बँधेगा।
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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