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________________ संपादकीय ब्याहते ही मिली, मिसरानी फ्री ऑफ कोस्ट में, झाडूवाली, पोंछेवाली और धोबिन मुफ्त में ! चौबीस घण्टे नर्सरी, और पति को सिन्सियर, अपनाया ससुराल छोड़ माँ-बाप, स्वजन पीहर ! माँगे कभी न तनखाह - बोनस कमिशन या बक्षिस ! कभी माँगे अगर साड़ी, तब क्यों पति को आए रीस ? आधा हिस्सा बच्चों में, पर डिलीवरी कौन करे? उस पर पीछे नाम पति का, फिर क्यों देते हो ताने? देखो केवल दो भूलें स्त्री की, चरित्र या घर का नुकसान, नमक ज्यादा, कि फोड़े ग्लास, छोटी भूलों को दो क्षमादान ! पत्नी टेढ़ी चले तब, देखो गुण, गिनो बलिदान, घर - बहू को संभाल, उसी में पुरुष तेरा बड़प्पन ! पति को समझेगी कहाँ तक, भोला कमअक्ल ? देख-भाल कर लाई है तू, अपना ही मनपसंद ! पसंद किया, माँगा पति, उम्र में तुझसे बड़ा, उठक-बैठक करता लाती जो गोदी में छोटा ! रूप, पढ़ाई, ऊँचाई में, माँगा सुपीरियर, नहीं चलेगा बौड़म, बावरची, चाहिए सुपर! शादी के बाद, तू ऐसा तू वैसा क्यों करे? समझ सुपीरियर अंत तक, तो संसार सोहे ! पति सूरमा घर में, खूँटी बँधी गाय को मारे, अंत में बिफरे गाय तो बाघिन का वेश धरे ! पचास साल तक, कुत्ते जैसा भौंके वह दिनरात ! वसूली में फिर पिल्ले करें, कुतिया का पक्षपात ! 'अपक्ष' होकर रहा मुआ, घरवालों की खाये मार, सीधा होजा, सीधा होजा, पाले 'मुक्ति' का मार्ग ! मोटा पति खोजे फिगर, सुन्दरी का जो रखे रौब, सराहते जो पत्नी को, मन से लेते हैं वे भोग ! प्रथम गुरु स्कूल में, फिर बनाया पत्नी को गुरु, पहले पसंद नहीं थे चश्मे, फिर बनाई 'ऐनक बहू' ! मनपसंद की ढूंढने में हो गई भारी भूल, शादी करके पछताये, ठगे गए बहुत ! क्लेश बहुत हो पत्नी संग, तो कर दो विषय बंद, बरस बाद परिणाम देख, खुले दृष्टि विषय अंध ! ब्रह्मचर्य के नियम रखना, शादी-शुदा तेरा लक्ष्य, दवाई पीयो तभी जब चढ़े, बुखार दोनों पक्ष ! मीठी है इसलिए दवाई, बार-बार पीना नहीं, पीयो नियम से जब दोनों को हो बुखार या सर्दी । एक पत्नीव्रत जहाँ, दृष्टि बाहर न बिगड़े, कलियुग में है यही ब्रह्मचर्य, ज्ञानीपुरुष दादा कहें! टेढ़ी बीवी, मैं सीधा, दोनों में कौन पुण्यवान ? टेढ़ी तेरे पाप से, पुण्य से पाया सीधा कंथ! किसका गुनाह? कौन है जज? भुगते उसी की भूल, कुदरत का न्याय समझ लो, भूल होगी निर्मूल ! संभाले मित्र और गाँव को, घर में लठ्ठबाज़ी, संभाला जिसने जीवन भर, वहीं चूक गया पाजी !
SR No.009598
Book TitlePati Patni Ka Divya Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size43 KB
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