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________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार प्रश्नकर्ता : वही! दूसरा उपाय नहीं है? दादाश्री : दूसरा कोई उपाय नहीं है। तप करने से पुण्य बंधता है और बीज सेकने से निराकरण होता है। यह समभाव से निकाल करने का कानून क्या कहता है, तू किसी भी रास्ते ऐसा कर दे कि उनसे बैर बंधे नहीं। बैर से मुक्त हो जा। प्रश्नकर्ता : उसमें बैर कैसे बंधता है? अनंत काल का बैर बीज पड़ता है वह किस प्रकार? दादाश्री : ऐसा है न कि यह मरे हुए पुरुष या मरी हुई स्त्री हो, मान लिजिए उसमें दवाइयाँ भरें और पुरुष पुरुष जैसा ही और स्त्री स्त्री जैसी ही रहती हो तो हर्ज नहीं, उनके साथ बैर नहीं बंधेगा। क्योंकि वे जीवित नहीं। और ये तो जीवित हैं। अतः यहाँ बैर बंधता है। प्रश्नकर्ता : वह किस कारण बंधता है? पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार इस समय तो मुझे बहुत से लोग कह जाते हैं कि, 'मुझसे विषय के लिए आजिजी करवाती है।' तब मैंने कहा, 'तेरा प्रभाव कहाँ गया, लाचारी करे फिर क्या करवाएगी? समझ ले अभी भी, अब भी योगी हो जा (विषय की भीख छोड़ दो)!' अब इन्हें कैसे पहुँच पाएँ? इस दुनिया को कैसे पहुँच पाएँ?! एक औरत उसके मर्द को विषय के लिए चार बार साष्टांग करवाती है, तब एक बार छूने देती है। ऐसा करने के बजाय समाधि ले लेता तो क्या बुरा होता? दरिया में समाधि ले तो दरिया सीधा तो है ! झंझट तो नहीं! विषय के खातिर चार बार साष्टांग! प्रश्नकर्ता : पिछले जन्म में हम उससे टकराये होंगे, तभी इस जन्म में वह हमसे टकराती है। मगर उसका रास्ता तो निकालना होगा न? सोल्युशन (हल) तो निकालना होगा न? दादाश्री : उसका सोल्युशन तो होता है, लेकिन लोगों का मनोबल कच्चा होता है न! विकारी भाग बंद कर देना तो अपने आप सब बंद हो जाएगा। उसको लेकर सदा के लिए किटकिट चलती रहती है। प्रश्नकर्ता : अब यह कैसे किया जाए? दादाश्री : विषय जीतना होगा। प्रश्नकर्ता : विषय नहीं जीता जाता, इसलिए तो हम आपकी शरण में आए हैं। दादाश्री : कितने सालों से विषय... बड़े होने को आए फिर भी विषय? जब देखो तब विषय, विषय और विषय!!! प्रश्नकर्ता : यह विषय बंद करने पर भी टकराव नहीं टलते इसलिए तो हम आपके चरणों में आए। दादाश्री : टकराव होता ही नहीं। जहाँ विषय बंद हैं वहाँ मैंने देखा, दादाश्री : अभिप्राय अलग हैं इसलिए। तुम कहोगे कि, 'मुझे अभी सिनेमा देखने जाना है।' तब वह कहेगी कि. 'नहीं, आज तो मझे नाटक देखने जाना है।' अर्थात् टाइमिंग (समय) समान नहीं होता। यदि एक्जेक्ट टाइमिंग के साथ टाइमिंग मिल रहा हो तभी शादी करना। ऐसा है न, इस अवलंबन का जितना भी सुख हमने लिया वह सब उधार लिया हुआ सुख है, लोन पर। और लोन (ऋण) 'री पे'(चुकता) करना पड़ता है। आत्मा से सुख नहीं लेते और पुद्गल से सुख माँगा आपने। आत्मा का सुख हो वहाँ हर्ज ही नहीं है, लेकिन पदगल के पास भीख माँगी वह लौटानी होगी। वह लोन (उधार) है। जितनी मिठास आती है, उतनी ही कड़वाहट भुगतनी होगी। क्योंकि पुद्गल से लोन लिया है। इसलिए उसे 'री पे' (लौटाते) करते समय उतनी ही कड़वाहट आयेगी। पुद्गल से लिया है, इसलिए पुद्गल को ही 'री पे' करना होगा।
SR No.009598
Book TitlePati Patni Ka Divya Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size43 KB
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