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________________ ६४ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार है, पिछले अवतार के।' बहन बहुत अच्छी, बहुत संस्कारी थी। फिर बहन से पूछा कि, 'इस पति के साथ तुम्हारा कैसे मेल बैठता है?' तब कहती है, 'वे कभी कुछ नहीं बोलते, कुछ नहीं कहते।' तब मैंने कहा, 'किसी दिन कुछ तो होता होगा न?' तब कहे, 'नहीं कभी-कभार ताना देते हैं।' 'हाँ', इस बात पर से मैं समझ गया। तब मैंने पूछा कि, 'वह ताना दें तब तुम क्या करती हो? तुम उस वक्त डंडा उठा लाती हो या नहीं?' तब वह कहती है, 'नहीं, मैं उन्हें ऐसा कहती हैं कि कर्म के उदय से मैं और आप इकट्ठा हुए हैं। मैं अलग, आप अलग। अब ऐसा क्यों करते हो? किस लिए ताने देते हो और यह सब क्या है? इसमें किसी का भी दोष नहीं है। यह सब कर्म के उदय का दोष हैं। इसलिए ताने देने के बजाय हमारे कर्म चुकता कर डालो न!' वह तकरार अच्छी कहलाएगी न! आज तक तो बहुत सारी स्त्रियाँ देखी, पर ऐसी ऊँची समझवाली यह स्त्री पहली ही देखी। मेरी प्रकृति मूलतः क्षत्रिय प्रकृति। हमारा क्षत्रिय ब्लड (खून), इसलिए ऊपरी (अपने से उपर वालों) को धमकाने की आदत और अन्डरहेन्ड (नीचे वालों) की रक्षा करने की आदत । यह क्षत्रियधर्म का मूल गुण हमारे में था। इसलिए वाइफ, बच्चे, अपने सभी अन्डरहेन्डवालों का रक्षण करने की आदत। वे उलटा-सुलटा करें फिर भी रक्षण करने की आदत। नौकर हो उन सबका रक्षण करना, उनकी भूल हो गई हो फिर भी उन बेचारों से कुछ नहीं कहता और ऊपरी हो तो उसकी खबर ले लूँ। और सारा जगत अन्डरहेन्ड के साथ किच-किच करता है। हम ब्याहकर घर में लायें और बीवी को डाँटते रहें, यह कैसा व्यवहार है कि गाय को खूटी से बाँधकर फिर उसे मारते रहो। खूटी से बाँधकर उसे मारते रहें तब? यहाँ से मारो तो उस ओर जाएगी बेचारी ! यह एक खुंटी से बंधी कहाँ जानेवाली है? यह समाज की खटी ऐसी है कि वह बेचारी पत्नी भाग भी नहीं सकती। खूटी से बंधी को मारें तो बहुत पाप लगेगा। खूटी से न बंधी हो तो हाथ ही न आए न! यह तो समाज की वजह से दबी रहती है वर्ना कब की भाग जाती। डिवोर्स (तलाक) लेने के बाद मारकर देखो, तब क्या होगा? 'मिनट' के लिए भी पत्नी के साथ झंझट नहीं हो, उसका नाम पति । मित्र के साथ जैसे बिगड़ने नहीं देते हो, उस प्रकार सम्हालना। मित्र के साथ यदि नहीं सम्हालते तो मित्रता ट जाती है। मैत्री यानी मैत्री। उनको शर्त बता देना कि तूने मैत्री में हमारा साथ छोड़ दिया तो गुनाह लगेगा। एक होकर मैत्री निभाना।' फ्रेन्ड के प्रति सिन्सियर (मित्र के प्रति वफादार) रहता है, जैसे फ्रेन्ड (मित्र) दूर रहकर भी कहता है कि 'मेरा फ्रेन्ड ऐसा है। मेरे बारे में कभी बुरा नहीं सोचेगा।' इस प्रकार पत्नी के लिए भी बुरा नहीं सोच सकते। वह फ्रेन्ड से बढ़कर नहीं है? पत्नी लौटाये तौल के साथ अब रात को पत्नी के साथ आपकी झंझट हुई हो तब उसका ताँता (तंत) सुबह तक रहेगा, इसलिए सवेरे चाय ऐसे पटककर रखे। आप समझ जाते हो कि ताँता है अभी भी, ठंडक नहीं हुई है। ऐसे झटका देती है पटककर, उसका नाम ताँता। _ 'वह किसलिए ऐसा करती है? तुम्हें दबाना चाहती है। और तू क्रोधित हो गया तब वह समझेगी कि हाँ, चलो, नरम पड़ गया। और गुस्सा नहीं करें तो फिर वह ज्यादा शोरगुल करेगी।' ऐसे शोरगुल के बाद भी अगर वह गुस्सा नहीं करता, तब फिर अन्दर जाकर दो-चार बर्तन जोर से गिरायेगी। उसकी खननन.... आवाज हो तो वह चिढ़ेगा। फिर भी अगर नहीं चिढ़ा तो बेटे को चिमटा लेकर रुलायेगी ताकि पापा चिढ़ जाए। 'तू बेटे के पीछे क्यों पड़ी है, बच्चे को बीच में क्यों लाती है? ऐसा वैसा...' इसलिए वह जान जाएगी कि यह ठंडा पड़ गया। पुरुष घटनाएँ भूल जाते हैं और स्त्रियों को उसकी नोंध (किसी घटना को राग-द्वेष से लंबे समय तक याद रखना) सारी जिन्दगी रहती हैं। पुरुष भोले होते हैं, बड़े दिलवाले होते हैं, भद्रिक होते हैं, इसलिए
SR No.009598
Book TitlePati Patni Ka Divya Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size43 KB
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