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________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार जो टकराते हैं न, समझो वे सब दीवारें ही हैं। फिर दरवाजा ढूंढना तो अंधेरे में भी दरवाजा मिलेगा। ऐसे हाथ से टटोलते टटोलते जाएँ तो दरवाजा मिलता है कि नहीं मिलता? मिले तो वहाँ से फिर निकल जाना। टकराना नहीं है, इस नियम का पालन करके देखो कि 'किसी से टक्कर लेनी ही नहीं है।' दो डिपार्टमेन्ट अलग पुरुष को स्त्री के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और स्त्री को पुरुष के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। प्रत्येक को अपनेअपने 'डिपार्टमेन्ट' (विभाग) में ही रहना चाहिए। प्रश्नकर्ता : स्त्री का डिपार्टमेन्ट कौन-सा? किन-किन में पुरुषों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए? दादाश्री : ऐसा है, खाना क्या पकाना, घर कैसे चलाना, यह सब स्त्री के डिपार्टमेन्ट हैं। गेहूँ कहाँ से लाती है, कहाँ से नहीं यह जानने की हमें क्या ज़रूरत? वह कहती हो कि गेहँ लाने में तकलीफ होती है तो अलग बात है। पर हमें वह कहती नहीं हो, राशन दिखाती नहीं हो, तब हमें उसके 'डिपार्टमेन्ट' में हाथ डालने की ज़रूरत ही क्या है? 'आज खीर बनाना, आज जलेबी बनाना।' ऐसा भी कहने की क्या जरूरत? टाइम (समय) होगा तब वह रखेगी। उसका 'डिपार्टमेन्ट' उसके अधीन ! कभी बहुत इच्छा हुई तो कहना, 'आज लड्डु बनाना।' कहने के लिए मना नहीं करता, पर बिना वजह दूसरी इधर-उधर का हो-हल्ला करो कि 'कढी खारी हो गई, खारी हो गई', यह सब नासमझी की बातें हैं। पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार भी होती रहती है। पर यह बिना बात ही ज्यादा अक्लमंद बनता है। उसके रसोई डिपार्टमेन्ट में हाथ नहीं डालना चाहिए। हमें भी शुरू में तीस साल तक थोड़ी झंझट हुई थी। फिर चुन चुन कर सब निकाल फेंका और डिवीज़न (विभाग) अलग कर दिये कि रसोई-खाता तुम्हारा और कमाई-खाता हमारा, कमाना है हमें। तुम्हारे खाते में हमें हाथ नहीं डालना है। हमारे खाते में तुम हाथ नहीं डालोगी। साग-सब्जी तुम्हें लाने की। पर हमारे घर की परंपरा आप देखें तो बहुत सुन्दर लगेगी। हीराबा का शरीर चलता था, तब तक बाहर मोहल्ले के नुक्कड़ पर सब्जीमंडी थी वहाँ खुद सब्जी लेने जातीं। तब हम बैठे हों तो हीराबा मुझसे पूछती, 'क्या सब्जी लाऊँ?' तब मैं कहता, 'तम्हें जो ठीक लगे वह लाना।' फिर वे ले आतीं। पर ऐसे ही रोज चलता रहे तो क्या हो? इसलिए पाँचसात दिन पूछना बंद हो गया। फिर एक दिन मैंने कहा कि 'करेले क्यों लायी?' तब वे कहने लगीं, 'मैं जब पूछती हूँ तब कहते हो, तुम्हें जो ठीक लगे वह ले आना और आज गलती निकाल रहे हो?' तब मैंने कहा, "नहीं, हमें ऐसी परंपरा रखने की, तुम मुझे पूछोगी, 'क्या सब्जी लाऊँ?' तब मैं कहूँगा, 'तुम्हें जो ठीक लगे वह', यह अपनी परंपरा मत छोड़ना।" यह परंपरा उन्होंने अंत तक निभाई। इसमें देखनेवाले को भी शोभनीय लगे कि वाह ! इस घर की परंपरा! अर्थात् हमारा व्यवहार बाहर अच्छा दिखना चाहिए। एक तरफा नहीं होना चाहिए। महावीर भगवान कैसे पक्के थे! व्यवहार और निश्चय दोनों अलग। एक पक्षीय नहीं। लोग व्यवहार नहीं देखते? लोग नहीं देखते रोज़ रोज़ का व्यवहार? 'रोजाना आपसे पूछते हैं?' मैंने कहा, 'हाँ, रोजाना पूछते हैं।' 'थक नहीं जाती?' कहते हैं। मैंने कहा, 'क्यों थकेंगी? क्या मंजिलें चढ़नी हैं या पहाड़ चढ़ने हैं?' हम दोनों का व्यवहार लोग देखें ऐसा करो। प्रश्नकर्ता : स्त्री को पुरुष की किन बातों में हाथ नहीं डालना चाहिए? सच्चा पुरुष तो घर के मामले में हाथ ही नहीं डालता, उसे पुरुष कहते हैं! वर्ना स्त्री जैसा होता है। कछ मर्द तो घर में जाकर मसाले के डिब्बे देखते हैं कि, 'ये दो महीने पहले लाये थे. इतनी देर में खत्म हो गए।' ऐसे कैसे निपटारा होगा? वह तो जिसका 'डिपार्टमेन्ट' है उसे चिंता नहीं होगी क्या? क्योंकि वस्तु तो इस्तेमाल होती रहती है और नई खरीद
SR No.009598
Book TitlePati Patni Ka Divya Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size43 KB
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