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________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार हमारे यहाँ तो घर में भी किसी को मालूम नहीं कि 'दादा' को यह पसंद नहीं है और यह पसंद है। यह रसोई बनानी क्या रसोई बनानेवाले के हाथ का खेल है? यह तो खानेवाले के 'व्यवस्थित' के हिसाब से थाली में आता है। उसमें दखल नहीं करनी चाहिए। पति चाहिए, पतिपना नहीं २७ शादी करने से पहले लड़की देखते हैं, उसमें हर्ज नहीं, देखो पर सारा जीवन वैसी की वैसी रहनेवाली है तो देखो। वैसी रहेगी क्या? जैसी देखी है वैसी? परिवर्तन हुए बिना रहेगा? फिर परिवर्तन होना वह सहन नहीं होगा, व्याकुलता होने लगती है। फिर कहाँ जाना? आ फँसे भाई, आ फँसे । तब शादी किस लिए? हम बाहर से कमा लाएँ, वह घर का काम करे और हमारा संसार चले, साथ ही धर्म कर सकें इसके लिए शादी करनी है। और बीवी कहती हो कि एक-दो बच्चे तो चाहिए, तो उतना निबटारा ला दो, फिर राम तेरी माया ! पर यह तो फिर स्वामी होने जाते हैं (बीवी पर स्वामित्व जताते हैं)। अरे, स्वामी होने क्यों चला है? तेरे में बरकत तो है नहीं और स्वामी होने चला ! 'मैं तो स्वामी हूँ' कहता है ! बड़ा आया स्वामी! मुँह तो देखो इनका, पर लोग तो स्वामित्व रखते हैं न? गाय का स्वामी हो बैठता है, भैंस का भी, पर गायें भी तुम्हें स्वामी के रूप में स्वीकार नहीं करती। वह तो तुम मन में समझते हो कि यह गाय मेरी है। तुम तो कपास को भी मेरा कहते हो, 'यह मेरा कपास है।' कपास को तो मालूम भी नहीं बेचारे को तुम्हारे होते तो तुम्हें देखते ही बढ़ते और तुम घर जाओ तो नहीं। पर यह कपास तो रात को भी बढ़ता हैं। कपास रात को बढ़ता है कि नहीं बढ़ता ? प्रश्नकर्ता बढ़ता है। दादाश्री : उसको तुम्हारी ज़रूरत नहीं, उसे तो बरसात की ज़रूरत है। बरसात नहीं होती तब सूख जाता है बेचारा ! २८ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार प्रश्नकर्ता: लेकिन उनको हमारा सब ख्याल नहीं रखना चाहिए? दादाश्री : अहोहो ! बीवी ख्याल रखने के लिये लाये होंगे? प्रश्नकर्ता: इसीलिए तो बीवी को घर लाये हैं न ! दादाश्री : ऐसा है न, शास्त्रकारों ने कहा है कि स्वामित्व जताना नहीं। वास्तव में तुम स्वामी नहीं, तुम्हारी पार्टनरशिप ( साझेदारी) है। यह तो यहाँ व्यवहार में बोला जाता है कि पत्नी और पति, धनी धनीयानी ! मगर वास्तव में पार्टनरशिप ( साझेदारी) है। स्वामी हो इसलिए तुम्हारा हक़-दावा नहीं है। दावा दायर नहीं कर सकते। समझा-समझा कर सब काम करो। प्रश्नकर्ता : कन्यादान किया, दान में कन्या दी, इसलिए फिर हम उसके स्वामी ही हो गए न ? दादाश्री : यह सुसंस्कृत समाज का काम नहीं हैं, यह वाईल्ड (असंस्कृत) समाज का काम है। हमें, सुसंस्कृत समाज को, यह देखना चाहिए कि स्त्री (पत्नी) को ज़रा भी तकलीफ़ न हो । वर्ना तुम सुखी नहीं होगे। स्त्री (पत्नी) को दुःख देकर कोई सुखी नहीं हुआ । और जिस स्त्री (पत्नी) ने पति को कुछ दुःख पहुँचाया होगा, वह स्त्री भी कभी सुखी नहीं हुई! स्वामित्व भाव को लेकर तो वह (पति) सिर पर चढ़ बैठता है। वाइफ के साथ उसकी पार्टनरशिप है, मालिकी नहीं है। प्रश्नकर्ता: अगर वाइफ बोस (मालिक) बन बैठती है उसका क्या करना? दादाश्री : उसमें हर्ज नहीं, वह तो जलेबी, पकौड़े बना कर देती है न । हम कहें कि अहोहो ! तूने तो पकौड़े जलेबी बनाकर खिलाये न ! ऐसा करो तो खुश हो जाएगी, फिर दूसरे दिन ठंडी पड़ जाएगी, अपने आप । इसकी घबराहट मत रखना। वह हम पर सवार कब होगी? अगर
SR No.009598
Book TitlePati Patni Ka Divya Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size43 KB
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