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________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार ११ क्लेशयुक्त जीवन नहीं होना चाहिए न? क्या ले जाना हैं? घर में साथ में खाना-पीना फिर तक़रार किस बात की? अगर कोई दूसरा, आपके पति के लिए कुछ कहे तो बुरा लगता है कि मेरे पति के बारे में ऐसा कहते हैं और खुद पति से कहती हैं कि तुम ऐसे हो, वैसे हो, ऐसा नहीं होना चाहिए। पति को भी ऐसा नहीं करना चाहिए। तुम्हारे क्लेश से बच्चों के जीवन पर असर होता है। कोमल बच्चे, उन पर असर होता है। इसलिए क्लेश जाना चाहिए। क्लेश मिटे तभी घर के बच्चे भी सुधरते हैं। यह तो बच्चे भी बिगड़ गए हैं। हमें तो यह ज्ञान हुआ तब से, बीस साल से तो क्लेश है ही नहीं, पर उन बीस सालों से पहले भी क्लेश नहीं था। पहले से क्लेश तो हमने निकाल बाहर किया था। यह जगत किसी भी हालत में क्लेश करने जैसा नहीं है। अब आप सोच कर कार्य करना और 'दादा भगवान' का नाम लेना । मैं भी 'दादा भगवान' का नाम लेकर सभी कार्य करता हूँ न ! 'दादा भगवान' का नाम लोगे तो तुरन्त ही तुम्हारी धारणा अनुसार हो जाएगा। पति-पत्नी में मतभेद हमें तो मूलतः क्रोध- - मान-माया लोभ जाएँ, मतभेद कम हों, ऐसा चाहिए। हमें यहाँ पूर्णत्व प्राप्त करना है, प्रकाश फैलाना है। यहाँ कहाँ तक अंधेरे में रहना ? आपने क्रोध मान-माया-लोभ जैसी निर्बलताएँ, मतभेद देखे हैं? प्रश्नकर्ता: बहुत । दादाश्री : कहाँ, कोर्ट में? प्रश्नकर्ता: घर पर कोर्ट में, सब जगह.... दादाश्री : घर में क्यों? दो-चार पाँच बेटियाँ ऐसा तो कुछ है नहीं । आप तीन जने, वहाँ मतभेद क्यों? १२ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार प्रश्नकर्ता: नहीं, पर तीन जनों में ही अनेकों मतभेद हैं। दादाश्री : तीन में भी? ऐसा ! प्रश्नकर्ता: अगर जिन्दगी में कॉन्फलिक्ट (झगड़े) नहीं होते, तो जिन्दगी का मजा नहीं आता ! दादाश्री : अहोहो मज़ा इससे आता है? तब तो फिर रोज़ाना ही करो ना ! यह किसकी खोज है? यह किस दिमाग़ की खोज है? फिर तो रोज़ मतभेद होना चाहिए, कॉन्फलिक्ट का मज़ा लेना हो तो । प्रश्नकर्ता: रोज़ तो अच्छा नहीं लगता। .... दादाश्री : ऐसा तो लोग खुद के बचाव के लिए कहते हैं। मतभेद सस्ता होता है या महँगा ? कम मात्रा में या अधिक मात्रा में? प्रश्नकर्ता: कम भी होता हैं और अधिक भी होता है। दादाश्री : कभी दिवाली और कभी होली ! उसमें मज़ा आता है या मज़ा जाता है? प्रश्नकर्ता: वह तो संसार चक्र ही ऐसा है। दादाश्री : नहीं, लोगों को बहाने बनाने के लिए यह अच्छा हाथ लगा है। संसार चक्र ऐसा है, ऐसा बहाना बनाते हैं पर यूँ नहीं कहते कि मेरी कमज़ोरी है। प्रश्नकर्ता: कमज़ोरी तो है ही । कमज़ोरी है तभी तो तकलीफ होती है न! हैं न! दादाश्री : हाँ बस, लोग संसारचक्र कहकर उसे ढकना चाहते हैं। इसलिए ढकने के कारण वह कमज़ोरी वैसी ही रहती है। वह कमज़ोरी क्या कहती है ? जब तक मुझे पहचानोगे नहीं, तब तक मैं नहीं जानेवाली । प्रश्नकर्ता: पर घर में मतभेद तो होता रहता है, यही तो संसार
SR No.009598
Book TitlePati Patni Ka Divya Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size43 KB
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