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________________ पैसों का व्यवहार ७१ पैसों का व्यवहार बचपन से ही मेरा प्रिन्सिपल (सिद्धांत) रहा है कि जान-बूझकर ठगा जाना। बाकी मुझे कोई मूर्ख बनाकर जायें और ठगकर जाये उस बात में क्या रखा है। यह जान-बुझकर ठगे जाने से क्या हुआ? ब्रेन (दिमाग़) टॉप पर गया। बड़े-बड़े जजों का ब्रेन काम नहीं करे ऐसे हमारा ब्रेन काम करने लगा। श्रीमद् राजचंद्र ने पुस्तक में लिखा है कि ज्ञानी पुरुष की तन-मन और धन से सेवा करना। तब किसी ने पूछा, 'भाई, ज्ञानी पुरुष को धन का क्या काम? वे तो किसी चीज़ के इच्छुक ही नहीं होते।' तब कहे, ऐसा नहीं, तन-मन से आप सेवा करते हैं मगर वे आपसे कहें कि यह अच्छी जगह धन डाल दें, तो आपकी लोभ की ग्रंथि टूट जायेगी। वरना आपका चित्त लक्ष्मी में ही रहा करेगा। ___ एक भाई मुझ से कहते हैं, 'मेरा लोभ निकाल दीजिए, मेरी लोभ की ग्रंथि इतनी बड़ी है ! उसे निकाल दीजिए।' मैंने कहा, 'ऐसे निकालने से नहीं निकलेगी। वह तो कुदरती पचास लाख का घाटा होने पर लोभ की ग्रंथि अपने आप पिघल जायेगी।' कहेंगे, 'अब पैसे चाहिए ही नहीं!!' अर्थात् यह लोभ की ग्रंथि तो घाटा आने पर जायेगी। भारी घाटा होने पर वह ग्रंथि फर्राटे से टूट जायेगी। वरना अकेली लोभ की ही ग्रंथि नहीं पिघले, दूसरी सभी ग्रंथियाँ पिघल जाये। लोभ के दो गुरुजी, एक ठग और दूसरा घाटा। घाटा होने पर लोभ की ग्रंथि फ़राटे से ट जायेगी। और ठग हथेली में चाँद दिखानेवाले होते हैं, तब वह लोभी खुश हो जाये। फिर वे सारी पूँजी ही उड़ा ले जायें। मुझसे लोग पूछते हैं कि, 'समाधि सुख कब बरतेगा?'। तब मैं कहता हूँ, 'जिसे कुछ भी नहीं चाहिए, लोभ की सारी ग्रंथियाँ छूट जायेगी, तब।' लोभ की ग्रंथि छूटने पर सुख बरता करे। बाकी ग्रंथिवाले को कोई सुख होता ही नहीं न! इसलिए औरों के लिए लूटा दीजिए, जितना औरों के लिए लूटायेंगे उतना आपका! पैसे जितने आये उतने, अच्छे रास्ते पर खर्च कर दें वह सुखिया। उतने आपके खाते में जमा होंगे, वरना गटर में तो जायेंगे ही। यह मुंबई के सारे रुपये कहाँ जाते होंगे? वे सारे गटर में बहते रहते हैं। अच्छी राह खर्च हुए उतने रुपये हमारे साथ आते हैं। अन्य कोई साथ नहीं आता है। तिरस्कार और निंदा है वहाँ लक्ष्मी नहीं रहती। लक्ष्मी कब प्राप्त नहीं होती? लोगों की बुराई और निंदा में पढ़ें तब। यह हमारा देश कब पैसेवाला होगा? कब लक्ष्मीवान और सखी होगा? जब निंदा और तिरस्कार बंद हो जायेंगे तब। ये दोनों बंद हुए कि देश में पैसा ही पैसा होगा! [६] लोभ की समझ, सूक्ष्मता से प्रश्नकर्ता : किस प्रकार के दोष इतने भारी हों कि अवतारों तक चलें? कई अवतार करने पड़ें ऐसे दोष कौन से? दादाश्री : लोभ! लोभ कई अवतारों तक साथ रहता है। लोभी होगा वह प्रत्येक अवतार में लोभी रहेगा, इसलिए उसे बहुत पसंद आये यह (लोभ)! प्रश्नकर्ता : करोड़ों रुपये होने के बावजूद धर्म में पैसे नहीं दे सके उसका कारण क्या? दादाश्री : बँधे हुए बंध कैसे छूटें? इसलिए कोई छूटेगा नहीं और बँधा का बँधा ही रहेगा। खद खाये भी नहीं। किसके खातिर जमा करते हैं?! पहले तो साँप होकर चक्कर काटते थे। धन गाडते थे वहाँ साँप बनकर फिरते थे और रक्षा करते थे, 'मेरा धन, मेरा धन' करें! जीना आया तो किसे कहलाये? अपने पास आया हो वह दूसरों के लिए लूटा दें। उसका नाम जीना आया कहलाये। पागलपन नहीं, सयानेपन से लूटा दें। पागलपन में शराब वगैरह पीते हो, उसमें बरकत नहीं आती। कोई व्यसन न हो और लूटायें (ख)। यह पुण्यानुबंधी पुण्य कहलाये।
SR No.009597
Book TitlePaiso Ka Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size302 KB
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