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________________ पैसों का व्यवहार के स्वरूप की पहचान से विमुख है, वहाँ तक खुदा अकेले ही तेरे मालिक है। पर यदि तू खुद को (आत्मा को पहचान ले फिर कोई तेरा मालिक ही नहीं रहा। फिर कौन फाँसनेवाला है वर्ल्ड में? कोई हमारा नाम लेनेवाला नहीं है। पर देखो न, कितना सारा फँसाव हो गया है! ६५ इसलिए, मामा ने मुझे फँसाया है ऐसा मन से निकाल देना और व्यवहार में कोई पूछें तब ऐसा मत कहना कि मैंने उन्हें फँसाया था, इसलिए उन्हों ने मुझे फँसाया ! क्योंकि लोग यह विज्ञान नहीं जानते हैं, इसलिए उनकी भाषा में बात करनी चाहिए कि मामा ने ऐसा किया। पर अंदर हम समझें कि इसमें मेरी ही भूल थी। और बात भी सही है न, क्योंकि मामा आज भुगत नहीं रहे, वे तो गाडी लाकर मजें लूट रहे हैं। कुदरत उन्हें पकड़ेगी तब उनका गुनाह साबित होगा और आज तो कुदरत ने तुझे पकड़ा है न! दुकान पर नहीं जायें तो कमाई नहीं होगी। वैसे ही यहाँ सत्संग में, आपके पास अधिक समय नहीं होने पर भी पाँच-दस मिनट आकर दर्शन कर जाइये, यदि हम (दादाजी) यहाँ है तब आपको, हाजिरी तो देनी ही रही न! दादाजी से सहाय की माँग वह तो बेरर चेक, ब्लेन्क (कोरे) चेक जैसा कहलाये । उसे हर घड़ी मत खर्च कीजिए, खास अडचन आने पर ज़ंजीर खींचना। सीगरेट का पेकेट गिर गया हो और हम गाड़ी की जंजीर खींचे तो दंड होगा कि नहीं होगा? अर्थात् ऐसा दुरुपयोग मत करना । प्रश्नकर्ता : हाल में टैक्स इतने बढ़ गये हैं कि (टैक्स की) चोरी किये बिना बड़े धंधे का समतोलन करना मुश्किल है। सभी रिश्वत माँगते हैं तो इसके लिए चोरी तो करनी ही होगी न? दादाश्री : चोरी करें मगर आपको पछतावा होता है कि नहीं? पछतावा होने पर भी वह हलका हो जाये। प्रश्नकर्ता : तो फिर ऐसे संयोगों में क्या करना चाहिए ? पैसों का व्यवहार दादाश्री : हम समझें कि यह गलत हो रहा है, वहाँ हमें हार्टिली (हृदय से ) पछतावा करना चाहिए। भीतर में पछतावे की जलन होनी चाहिए तभी छूटा जायेगा । आज कुछ काले बाज़ार का माल लाये तो फिर उसे काले बाज़ार में ही बेचना होगा। तब चन्दुलाल से कहना कि प्रतिक्रमण कीजिए। हाँ, पहले प्रतिक्रमण नहीं करते थे इसलिए कर्म के इतने सारे तालाब भरे। अब प्रतिक्रमण किया इसलिए शुद्ध कर डाला। लोहा काले बाज़ार में बेचा तो हम चन्दुलाल से कहें, " चन्दुलाल, बेचो इसमें हर्ज नहीं है, वह 'व्यवस्थित' के अधीन है। पर अब उसका प्रतिक्रमण कर लीजिए और कहिए कि ऐसा दुबारा नहीं होगा।" ६६ एक आदमी कहे, 'मुझे धर्म नहीं चाहिए। भौतीक सुख चाहिए।' उसे मैं कहूँगा, 'प्रामाणिक रहना, नीति पालना।' मंदिर जाने को नहीं कहूँगा । दूसरों को तू देता है वह देवधर्म है। पर दूसरों का बिना हक़ के (हराम का) लेता नहीं है यह मानवधर्म है। अर्थात् प्रामाणिकता यह सबसे बड़ा धर्म है। डीसऑनेस्टी इज् धी बेस्ट फूलिशनेस (अप्रामाणिकता माने सर्वोत्तम मूर्खता) । पर ऑनेस्ट नहीं रह पाते, तब क्या करें? दादाजी सिखाते हैं कि डीसऑनेस्टी (अप्रामाणिक होने) का प्रतिक्रमण करो । अगला अवतार तुम्हारा प्रकाशमय ( सुधर) जायेगा। डीसऑनेस्टी को डीसऑनेस्टी समझों और उसका पश्चाताप करो। पश्चाताप करनेवाला मनुष्य ऑनेस्ट है यह निश्चित है। अनीति से पैसे कमाये, वगैरह सभी के उपाय बताये गये हैं । अनीति से पैसे कमाने पर रात को 'चन्दुलाल' से कहना कि बार-बार प्रतिक्रमण कीजिए, अनीति से क्यों कमाये ? इसके लिए प्रतिक्रमण कीजिए। रोजाना ४००-५०० प्रतिक्रमण करवाना। खुद शुद्धात्मा को नहीं करने हैं। 'चन्दुलाल' के पास करवाना। जिसने अतिक्रमण किया उसके पास प्रतिक्रमण करवाना। अभी हिस्सेदार के साथ मतभेद हो जाये तो तुरन्त आपको पता चल जायेगा कि यह ज़रूरत से ज्यादा बोल दिया। इससे तुरन्त उसके नाम का प्रतिक्रमण करना। हमारा प्रतिक्रमण कैश पेमेन्ट (नकद) होना चाहिए। यह बैंक भी कैश कहलाये और पेमेन्ट भी केश कहलाता है।
SR No.009597
Book TitlePaiso Ka Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size302 KB
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