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________________ पैसों का व्यवहार पैसों का व्यवहार लोगों को पता चला कि मेरे पास पैसे आये हैं तब लोग मुझ से पैसे माँगने आये। तब फिर मैं १९४२ से १९४४ तक सब को देता रहा। फिर १९४५ में मैंने तय किया कि अब हमें तो मोक्ष की ओर जाना है। अब इन लोगों के साथ हमारा मेल कैसे होगा? मैंने सोचा कि यदि हमने उगाही की तो ये वापस रुपये उधार लेने आयेंगे और व्यवहार चलता रहेगा। उगाही करें तो पाँच हजार लौटाकर फिर दस हजार लेने आयेंगे, उसके बजाय पाँच हजार उसके पास रहेंगे तो उसके मन में होगा कि 'अब ये (दादाजी) मिले नहीं तो अच्छा (ताकि पैसे लोटाने नहीं पड़े)।' और कभी रास्ते में मुझे देखने पर, वह दूसरी ओर से चला जाये। तब मैं भी समझ जाता। बाद में मैंने उगाही करना बंद कीया यानी मैं उनसे छूट गया। क्योंकि मुझे उन सभी के व्यवहार में से मुक्त होना था और इस तरह उगाही बंद कर दी इसलिए उन सभी ने मुझसे संबंध छोड़ दिया। नेचरल न्याय क्या कहता है? कि जो हुआ सो करेक्ट, जो हुआ सो ही न्याय। यदि आपको मोक्ष पाना हो तो हुआ सो न्याय समझें और यदि भटकना हो तो कोर्ट के न्याय से निबटारा लाइये। कुदरत क्या कहती है? हुआ सो न्याय ऐसा आपने मान लिया तो आप निर्विकल्प होते जायेंगे, और कोर्ट के न्याय से यदि निबटारा लाने गये तो विकल्पी होते जायेंगे। तीन-तीन बार चक्कर काटें, फिर भी उगाहीवाला मिले नहीं और यदि मिल जाये तो उलटा वह हम पर चिढ जाये। यह मार्ग ऐसा है कि उगाहीवाला हमे घर बैठे पैसे देने आये। जब पाँच-सात बार उगाही करने पर आखिर में वह कहे कि महीने बाद आना, तब भी आपके परिणाम नहीं बदलते तो घर बैठे पैसे आयेंगे। पर आपके परिणाम बदल जाते हैं न? _ 'यह तो कमअक्ल है। नालायक आदमी है, फ़िजूल धक्का खिलाया।' ऐसे, परिणाम बदले हुए होते हैं। तब फिर से आप जाये तो वह गालियाँ सुनाये। आपके परिणाम बदल जाने के कारण, सामनेवाला बिगड़ता नहीं हो तो भी बिगड़े। प्रश्नकर्ता : इसका अर्थ यह हुआ कि सामनेवाला हमारी वजह से ही बिगड़ता है? दादाश्री : हमने ही हमारा सबकुछ बिगाड़ा है। हमारी जितनी भी मुसीबतें हैं, वे सभी हमने ही खड़ी की है। अब उसे सुधारने का रास्ता क्या? सामनेवाला कितना भी दुःख देता हो, पर उसके लिए जरा-सा भी उलटा विचार नहीं आये, वह उसे सुधारने का रास्ता। इसमें हमारा भी सुधरेगा और उसका भी सुधरेगा। संसार के लोगों को उलटा विचार आये बगैर नहीं रहता, तभी तो हमने समभाव से निपटारा करने को कहा। समभाव से निपटारा माने क्या कि उसके लिए कुछ भी उलटा सोचना ही नहीं। और उगाही करने पर खुद के पास न होने के कारण कोई आदमी देता नहीं हो, तब फिर आखिर तक उसके पिछे दौडते नहीं रहना। वह बैर बाँधेगा! और प्रेतयोनि में गया तो हमें परेशान कर देगा। उसके पास नहीं है इसलिए नहीं देता, उसमें उस बेचारे का क्या कसूर? लोग तो होने पर भी नहीं देते! प्रश्नकर्ता : होने पर भी नहीं दें तो क्या करना? दादाश्री : होने पर नहीं दें तो क्या कर लेंगे हम उसका? दावा दायर करेंगे! और क्या? उसे मारेंगे तो पुलिसवाले हमें पकड़कर ले जायेंगे न? कोर्ट में न जायें वही उत्तम। जो सयाना मनुष्य होगा वह कोर्ट नहीं जायेगा। कोई आपके पास से रुपये ले गया हो और इस बात को तीनचार साल बीत जाये, तब आपकी रकम शायद कोर्ट के कानून से बाहर हो जाये पर नेचर (कुदरत) का कानून तो कोई नहीं तोड़ सकता न! कुदरत के कानून अनुसार रकम ब्याज सहित वापस आती है। यहाँ (कोर्ट) के कानून अनुसार कुछ नहीं मिले, यह तो सामाजिक कानून
SR No.009597
Book TitlePaiso Ka Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size302 KB
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