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________________ पैसों का व्यवहार ३३ पैसों का व्यवहार से मनुष्य फिर से मनुष्य जन्म पा सकता है। और जो लोग मिलावट करते हैं, जो बिना हक़ का ले लेते हैं, बिना हक़ का भोगते हैं, वे सभी यहाँ से जानवर योनि में जाते हैं। उसमें कोई कुछ नहीं कर सकता। क्योंकि स्वभाव ही बना है उसका बिना हक़ का भोगने का, इसलिए वहाँ जानवर में जाये और आराम से भोग सकें। वहाँ तो कोई किसी की औरत नहीं न! सभी औरतें खुद की ही! यहाँ मनुष्य में तो विवाहित लोग, इसलिए किसी की औरत पर दृष्टि बिगड़नी नहीं चाहिए मगर जिसे आदत-सी-हो गई हो, उसका फिर वहाँ जानवर में जाने पर ही समाधान होगा। एक अवतार, दो अवतार वहाँ भोगकर आये तब सीधा हो। उसे सीधा करते हैं ये सभी अवतार। सीधा होकर वापस यहाँ आये, फिर टेढ़ा हो तब फिर वहाँ भेजकर सीधा करे। इस प्रकार सीधा होते होते फिर मोक्ष के लायक हो जाये। टेढाइयाँ होगी वहाँ तक मोक्ष नहीं होता। हो यह जानने के लिए ही जीवन जीना है। इसमें मोक्षमार्ग प्राप्त कर लेना है। मोक्षमार्ग के लिए ही यह सबकुछ है। दो अर्थ (हेतु) के लिए लोग जीते हैं। आत्मार्थ जीनेवाला तो कोई विरल ही होगा। अन्य सभी लक्ष्मी-अर्थ जी रहे हैं। सारा दिन लक्ष्मी, लक्ष्मी और लक्ष्मी! लक्ष्मी के पीछे तो सारा संसार पागल हुआ है पर उसमें सुख है ही नहीं न! घर बंगले यों ही खाली पड़ें हों और दोपहर वे (मालिक) कारखाने में होते हैं। तब बंगले का आनंद कहाँ ले पाये ! इसलिए आत्मज्ञान जानिये। ऐसे अंधे होकर कब तक भटकते रहना? यदि कोई पूछे कि मैं किस धर्म का पालन करूँ? तब हम कहें कि भैया, इन तीन वस्तुओं का पालन कर : (१) पहले नीतिमत्ता! तेरे पास पैसे कम-ज्यादा हो उसमें हर्ज नहीं, मगर 'नीतिमत्ता पालना' इतना अवश्य करना, भैया। (२) दूसरे 'अॅब्लाइजिंग नेचर' रखना! किसी की मदद करने के लिए तेरे पैसे न हो उसमें हर्ज नहीं, पर बाजार जाते वक्त कहना, 'आपको बाज़ार का कोई काम हो तो कहिए, मैं बाज़ार जा रहा हूँ।' इस तरह किसी की मदद करना। यह है अॅब्लाइजिंग नेचर। (३) तीसरे, किसी भी मदद के बदले में कुछ पाने की अपेक्षा मत रखना। सारा संसार बदले की अपेक्षा रखता है। ऐसा एक्शन-रिएक्शन वाला संसार है। इच्छाएँ आपकी भीख है, जो व्यर्थ जाती है। प्रश्नकर्ता : आत्मा की प्रगति के लिए क्या करते रहना चाहिए? दादाश्री : उसे प्रामाणिकता की निष्ठा पर चलना चाहिए। वह निष्ठा ऐसी कि बहुत तंगी में आ जाये तब आत्मशकित का आविर्भाव हो (प्रकट होना)। यदि तंगी नहीं हो और बहत पैसे आदि हो तब वहाँ आत्मा प्रकट नहीं हो। प्रामाणिकता, एक ही रास्ता है। केवल भक्ति से कुछ हो सके ऐसा है नहीं, प्रामाणिकता नहीं हो और भक्ति करे उसका अर्थ नहीं है। प्रामाणिकता साथ में होनी ही चाहिए। प्रामाणिकता नीतिमय पैसे लाये उसमें हर्ज नहीं। पर अनीति के पैसे लाये तो समझो अपने ही पैरों पर कुल्हाडी मारी और अर्थी उठेगी तब पैसे यहाँ पड़े रहेंगे। सब कुदरत की जप्ती में जायें और खुद ने यहाँ पर जो गुत्थियाँ उलझायी हो उसे फिर भुगतना पड़ेगा। __भगवान को नहीं भजे और नीति से चले तो बहुत हो गया। भगवान को भजता हो पर नीति से नहीं चलता हो तो उसका अर्थ नहीं। वह मीनिंगलेस है। फिर भी हमें ऐसा नहीं कहना चाहिए। वरना, वह फिर भगवान को छोड़ देगा और अनीति बढाते रहेगा। अर्थात् नीति रखना। उसका फल अच्छा आये। संसार में सुख एक ही जगह है। जहाँ संपूर्ण नीति हो। प्रत्येक व्यवहार में संपूर्ण नीति होगी वहाँ पर सुख है। और दूसरे, जो समाज सेवक होगा और वह खुद के लिए नहीं पर दूसरों के लिए जीवन व्यतीत करता हो तो उसे बहुत ही सुख होगा, पर वह सुख भौतिक सुख है, वह मूर्छा का सुख कहलाये।
SR No.009597
Book TitlePaiso Ka Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size302 KB
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