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________________ पैसों का व्यवहार २३ पैसों का व्यवहार रुपयों का नियम ऐसा है कि कुछ दिन टिके और फिर चले जायें, वे अवश्य ही जायें। वह रुपया फिरे जरूर, फिर वह मुनाफा लेकर आये, घाटा लेकर आये कि ब्याज लेकर आये, पर फिरेगा जरूर। वह बैठा नहीं रहता, वह स्वभाव से चंचल है। इसलिए जब कोई ऊपर चढ़ा हो (धनवान हुआ) तब फिर उसे फँसाव लगे। तब वह आसानी से इस फसाव में से बाहर नहीं निकल पाता। (उसकी हालत उस बिल्ली की तरह होती है, जो ज़ोर लगाकर मटकी में मुँह तो डाल देती है लेकिन फिर निकाल नहीं पाती।) अनाज तीन-पाँच साल में निर्जीव हो जाये, फिर नहीं उगता। है कि आपको क्या होता होगा? अधिक रुपये आने पर अधिक व्याकुलता होगी। दिमाग डल (मंद) हो जाये और कुछ भी याद नहीं रहे। बेचैनी, बेचैनी और बेचैनी ही रहा करे। नोट ही गिनता रहे, पर वे नोट यहाँ कि यहाँ रह गई और गिननेवाले चल बसे! पैसा तो कहता है कि, 'तू समझ सके तो समझ लेना, हम रहेंगे और तू जायेगा!' इसलिए हमें उसके साथ कोई बैर नहीं करना। पैसे से कहें हम कि, 'आइये जी,' क्योंकि उसकी जरूरत है! सभी की जरूरत है न? पर अगर उसके पीछे तन्मयाकार रहे. तो गिननेवाले गये और पैसे रहे। फिर भी गिनने तो होंगे, उससे कोई छुटकारा ही नहीं है न! कोई सेठ ही ऐसा होगा जो मुनीम से कहे कि, 'भाई, मुझे खाते समय अडचन मत करना, पैसे आये तो आराम से गिनकर तिजोरी में रखना और निकालना।' ऐसे दखल नहीं करे ऐसा कोई एकाध सेठ होगा! हिन्दुस्तान में ऐसे दो-चार सेठ, निर्लेप रहनेवाले होंगे! मझ जैसे! मैं कभी पैसे नहीं गिनता!! यह क्या बखेडा! आज बीसबीस सालों से मैंने लक्ष्मीजी को हाथ से स्पर्श नहीं किया है तभी इतना आनंद रहता है न! __ व्यवहार है वहाँ तक लक्ष्मीजी की ज़रूरत रहेगी ही। पर उसमें तन्मयाकार मत होना, तन्मयाकार नारायण में होना। अकेले लक्ष्मीजी के पीछे पड़ेंगे तो नारायण गुस्सा करेंगे। लक्ष्मी-नारायण का तो मंदिर है न! लक्ष्मीजी कोई ऐसी-वैसी चीज़ नहीं है। रुपये कमाते समय जो आनंद होता है वैसा ही आनंद खर्च करते समय होना चाहिए। लेकिन तब तो बोल उठे, 'इतने सारे खर्च हो गये!!' पैसे खर्च हो जायेंगे ऐसी जागृति नहीं रखनी चाहिए। इसलिए खर्च करने को कहा है कि जिससे लोभ छूटे और बार-बार दे सकें (अच्छे कार्य में)। भगवान ने कहा कि हिसाब लगाना नहीं। भविष्यकाल का ज्ञान हो तो हिसाब लगाना। अरे, हिसाब लगाना हो तो कल मर जाऊँगा, ऐसा हिसाब लगा न?! पहले लक्ष्मी पाँच पुश्त टिकती थी, तीन पुश्त तो टिकती ही। यह तो अब एक पुश्त भी नहीं टिकती। यह लक्ष्मी ऐसी है कि एक पुश्त भी नहीं टिकती। उसकी हयात में ही आये और हयात में ही जाती रहे, ऐसी यह लक्ष्मी है। यह तो पापानुबंधी पुण्य की लक्ष्मी है। उसमें थोड़ी बहुत पुण्यानुबंधी पुण्य की लक्ष्मी हो वह आपको यहाँ (दादाजी के पास) आने की प्रेरणा करे, यहाँ मिलाप कराये और आपको यहाँ खर्च करवाये। अच्छे मार्ग में लक्ष्मी खर्च होगी। वरना यह तो मटियामेट हो जायेगा (धूल में मील जायेगा)। सब गटर में चला जायेगा। यह हमारी संतानें ही लक्ष्मी भोगते हैं न, जब हम उनसे कहें कि तुमने मेरी लक्ष्मी खर्च की। तब वे कहेंगे. 'आपकी कहाँ? हम हमारी ही भुगतते (भोगते) हैं।' ऐसा कहेंगे। अर्थात् गटर में ही गया न सब! इस दुनिया को यथार्थ यानी जैसी है वैसी, समझें तो जीवन जीने जैसा है, यथार्थ समझें तो संसारी उपाधि-चिंता नहीं होगी, इसलिए जीने जैसा लगे फिर! [२] लक्ष्मी के संग संकलित व्यवहार क्या किया हो तो अमीरी आयेगी? लोगों की अनेकों प्रकार से हैल्प
SR No.009597
Book TitlePaiso Ka Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size302 KB
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