SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाप-पुण्य ७५ तो क्या नींद आएगी? यह तो खुद की सारी अनंत शक्तियाँ व्यर्थ हो गई ! ज्ञानी पुरुष पाप धो देते हैं। कृष्ण भगवान ने गीता में कहा है, ज्ञानी पुरुष पाप की पोटली बनाकर नष्ट कर देते हैं। उस पाप का नाश हो जाए तब आत्मा प्रकट होता है, नहीं तो किसी भी तरह से आत्मा प्रकट नहीं होता है। खुद किस तरह पाप का नाश कर सकेगा? नया पुण्य जरूर बाँध सकता है, परन्तु पुराने पापों का नाश नहीं कर सकता। ज्ञानी पुरुष का ज्ञान ही पापों का नाश कर देता है। बाक़ी, पुण्य और पाप, पाप और पुण्य, उनके अनुबंध में ही मनुष्य मात्र भटकता रहता है। उसे कभी भी उसमें से मुक्ति नहीं मिलती है। बहुत पुण्य करे तो बहुत हुआ तो देवगति मिलती है, पर मोक्ष तो नहीं ही मिलता। मोक्ष तो ज्ञानी पुरुष मिलें, और आपके अनंतकाल के पापों को भस्मिभूत करके आपके हाथ में शुद्ध आत्मा दें तब होगा। तब तक चोर्यासी लाख योनियों में भटकते ही रहना है। 'हम' ज्ञान देते हैं, तब चित्त शुद्ध कर देते हैं। पाप का नाश करते हैं और दिव्यचक्षु दे देते हैं, सभी प्रकार से उसके आत्मा और अनात्मा को अलग कर देते हैं ! से ? बीजा, महाविदेह क्षेत्र का प्रश्नकर्ता: महाविदेह क्षेत्र में किस तरह जाया जा सकता है? पुण्य दादाश्री : यह ज्ञान मिलने के बाद हमारी पाँच आज्ञा पालें, तो उससे इस भव में पुण्य बँध ही रहे हैं, वे महाविदेह क्षेत्र में ले जाते हैं। आज्ञा पालने से धर्मध्यान होता है। वह सारा फल देगा। हमें मोक्ष में जाना है, वहाँ पर मोक्ष में जाया जाए, उतना पुण्य चाहिए। यहाँ आप सीमंधर स्वामी का जितना करोगे (भक्ति - आराधना ), उतना सब आपका आ गया। आपने सीमंधर स्वामी का नाम तो सुना है न? वे अभी तीर्थंकर हैं, महाविदेह क्षेत्र में आज उनकी उपस्थिति है । पाप-पुण्य सीमंधर स्वामी की आयु कितनी, ६०-७० साल की होगी? पौने दो लाख वर्ष की आयु है ! अभी सवा लाख वर्ष जीनेवाले हैं! यह उनके साथ तार जोड़ देता हूँ। क्योंकि वहाँ जाना है। यहाँ से ही सीधा मोक्ष होनेवाला नहीं है। अभी एक जन्म बाक़ी रहेगा। उनके पास बैठना है इसलिए तार जोड़ देता हूँ। ७६ और ये भगवान पूरे वर्ल्ड का कल्याण करेंगे। पूरे वर्ल्ड का कल्याण होगा उनके निमित्त से। क्योंकि वे जीवित हैं। जो मोक्ष में जा चुके हों, उनसे कुछ हो नहीं सकता, उनकी भक्ति से केवल पुण्य बँधता है, जो संसार फल देता है ! वहाँ पुण्य और पाप दोनों निकाली... धर्म दो प्रकार के हैं। एक स्वाभाविक धर्म, उसे रियल धर्म कहते हैं। और दूसरा विभाविक धर्म, जो रिलेटिव धर्म कहलाता है। जब 'शुद्धात्मा' प्राप्त हो जाए, तब स्वाभाविक धर्म में आते हैं। स्वाभाविक धर्म ही खरा धर्म है, उस धर्म में अच्छा-बुरा कुछ भी चुनने का है ही नहीं । विभाविक धर्म में सबकुछ चुनने का है। दान करना, लोगों पर उपकार करना, ओब्लाइजिंग नेचर रखना, लोगों की सेवा करना, उन सभी को रिलटिव धर्म कहा है। उससे पुण्य बँधता है। और गालियाँ देने से, मारामारी करने से, लूट लेने से पाप बँधते हैं। पुण्य और पाप जहाँ हैं, वहाँ रियल धर्म ही नहीं है। रियल धर्म पुण्यपाप से रहित है। जहाँ पुण्य-पाप को हेय (त्याज्य) माना जाता है और खुद का आत्मा स्वरूप उपादेय (ग्रहणीय) माना जाता है, वहाँ 'रियल धर्म' है। इस प्रकार यह 'रियल' और 'रिलेटिव' दोनों अलग धर्म हैं। जब तक 'मैं कौन हूँ' जानेगा नहीं, तब तक पुण्य उपादेय रूप में ही होता है और पाप हेय रूप में होता है। पुण्य-पाप हेय हो गए, वहाँ पर समकित ! भगवान ने कहा है कि पाप-पुण्य दोनों के ऊपर जिसे द्वेष या राग नहीं है वह 'वीतराग' है! जय सच्चिदानंद
SR No.009596
Book TitlePap Punya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size268 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy