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________________ पाप-पुण्य ७२ पाप-पुण्य थी। अर्थात् यह जगत् तो महामुश्किलवाला है। इसमें से पार निकलना तो बहुत मुश्किल है। ज्ञानी पुरुष मिलें तो सिर्फ वे ही छुटकारा दिलवा सकते हैं, बाक़ी कोई छुटकारा नहीं दिलवा सकता। ज्ञानी पुरुष बंधन मुक्त हो गए हैं, इसलिए हमें मुक्ति दिलवा सकते हैं। वे तरणतारण हुए हैं, इसलिए वे छुड़वा सकते हैं। हत् पुण्यशाली, नहीं पाते ज्ञानी को प्रश्नकर्ता : हम बहुत लोगों को समझाते हैं कि 'दादा' के पास आओ, पर वे नहीं आते हैं। दादाश्री : पर आना आसान नहीं है। वह तो बहुत पुण्य चाहिए। जबरदस्त पुण्य हों तब मिल पाता है। पुण्य के बिना मिले कहाँ से? आपने कितने पुण्य किए थे, तब मुझे मिले हो। अर्थात् पुण्य कच्चा पड़ जाता है कि जिस कारण से वे अभी तक मिल नहीं सकते हैं। प्रश्नकर्ता : लोगों के पुण्य कब जागेंगे? निमित्त तो उत्कृष्ट हैं। दादाश्री : हाँ, पर पुण्य जागना इतनी आसान बात नहीं है न। पुण्यशाली होंगे, उनका पुण्य जागे बगैर रहनेवाला नहीं है। अभी भी जो पुण्यशाली होंगे, उनका जगेगा ही। __ अक्रम मार्ग की लॉटरी के विजेता... जब इन पुण्यानुबंधी पुण्यशालियों के लिए ऐसा मार्ग निकलता है न! प्रत्यक्ष के बिना कुछ भी नहीं हो पाता। 'वीतराग विज्ञान' प्रत्यक्ष के बिना काम में आए वैसा नहीं है और यह तो 'अक्रम विज्ञान' उसमें तो केश डिपार्टमेन्ट (रोकड़ खाता), केश बैंक (रोकड़ बैंक) और क्रमिक में तो त्याग करते हैं, परन्तु केश फल नहीं आता और यह तो केश फल! ऐसा ज्ञान यह साढ़े तीन अरब की जनसंख्या में किसे नहीं चाहिए? सभी को चाहिए। पर यह ज्ञान सभी के लिए नहीं है। यह तो महापुण्यशालियों के लिए है। यह 'अक्रम ज्ञान' प्रकट हुआ है, उसमें लोगों के कुछ पुण्य होंगे न! सिर्फ एक भगवान के ऊपर आसरा रखनेवाले घूमते, भटकनेवाले, भक्तों के लिए और जिनके पुण्य होंगे न उनके लिए 'यह' मार्ग निकला है। यह तो बहुत पुण्यशालियों के लिए है और यहाँ सहज ही आ जाएँ और सच्ची भावना से माँगे उन्हें दे देते हैं। पर लोगों को इसके लिए कुछ कहने जाना नहीं होता है। इन 'दादा' की और उनके महात्माओं की हवा से ही जगत् का कल्याण हो जाएगा। मैं निमित्त हँ, कर्ता नहीं। यहाँ जिसे भावना हुई और 'दादा' के दर्शन किए तो वे दर्शन ठेठ तक पहुँचते हैं। 'दादा' वे इस देह के निकट के पड़ोसी की तरह रहते हैं और ये बोल रहे हैं वह रिकॉर्ड है। यह 'अक्रम ज्ञान' तो कुछ ही बहुत पुण्यशाली होंगे, उनके लिए है, यहाँ तो जो 'सहज' ही आ जाए और उसका पुण्य का पासपोर्ट ले आए, उसे हम ज्ञान दे देते हैं। 'दादा' की कृपा प्राप्त कर गया, उसका काम हो गया! यहाँ आए हुए लोग सब पुण्य कितने अच्छे लेकर आए हैं ! 'दादा' की लिफ्ट में बैठकर मोक्ष में जाना है। कोटि जन्मों की पुण्य जमा हो, तब तो 'दादा' मिलते हैं! और फिर चाहे कैसा भी डिप्रेशन (हताशा) होगा वह चला जाएगा। हर प्रकार से फँसे हुओं के लिए 'यह' स्थान है। अपने यहाँ तो क्रोनिक (पुराने) रोग मिट गए हैं। विश्व में अरबोंपति कितने? एक महाराज कहीं आए थे, वहाँ लाखों लोग इकट्ठे हुए थे। जब कि अपने यहाँ तो दो सौ-तीन सौ लोग इकट्ठे हुए। संभव हो तब तक अंतिम स्टेशन का टिकट कौन लेगा? वैसे लोग कम होते हैं और बीच के स्टेशन का टिकट तो सभी लेते हैं। इसलिए एक व्यक्ति मुझे कहता है कि, 'ऐसा क्यों?' तब मैंने कहा, 'पूरी दुनिया में अरबपतियों के नाम गिनने जाएँ तो कितने होंगे?' तब कहा, 'वे तो बहुत थोड़े होंगे।' मैंने कहा, 'और सामान्य लोग?' तब बोले, 'वे तो बहत सारे होंगे।' तब ये जो धर्म में महापुण्यशाली होंगे, वे हमें मिलेंगे. और पैसे के पण्यशाली होंगे वे तो अरबपति होंगे और अरबपति से भी अधिक ऊँचा पुण्य है यह तो! वैसे तो बहुत कम होते हैं।
SR No.009596
Book TitlePap Punya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size268 KB
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