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________________ १० पाप-पुण्य पाप-पुण्य तो पता चलेगा कि फल आता है या नहीं। जान-बूझकर किया हुआ पाप और अनजाने में किया हुआ पाप, वे दोनों एक सरीखे हैं। परन्तु अनजाने में किए हुए पाप का फल अनजाने में और जान-बूझकर किए हुए पाप का फल जान-बूझकर भोगना पड़ता है, उतना फर्क है। बस यही तरीका है। यह नियमानुसार है सारा, यह जगत् बिलकुल नियमानुसार है, न्यायस्वरूप है। अनजाने में जो होता है, उसका फल अनजाने में मिलता है। वह आपको समझाता हूँ। ___एक मनुष्य सात वर्ष तक राज्य करता है और दूसरा एक मनुष्य भी सात वर्ष तक राज्य करता है। अब दोनों का राज्य करना एक सरीखा ही है और राज्य भी दोनों एक सरीखे ही हैं, पर इसमें एक मनुष्य तीन वर्ष की उम्र में गद्दी पर बैठता है और दस वर्ष की उम्र में राज्य चला जाता है और दूसरा मनुष्य बीस वर्ष की उम्र में गद्दी पर बैठता है, वह सत्ताईस वर्ष की उम्र में गद्दी से उठ जाता है तो किसने सच में राज्य भोगा कहा जाएगा? पहलेवाले का बचपन में चला गया, उसे खिलौने दो तो वह खिलौना खेलने बैठ जाएगा! उल्टा आए तब सेठ के मन में होता है कि इस बार इसकी तनख्वाह काट लेनी चाहिए। जब सेठ तनख्वाह काट ले तो नौकर के मन में ऐसा होता है कि यह सेठ नालायक है। यह नालायक मुझे मिला। पर ऐसा गुणाकार करनेवाले व्यक्ति को मालूम नहीं है कि यह नालायक होता तो इनाम किसलिए देता था? इसलिए कोई भूल है। सेठ टेढ़ा नहीं है। यह तो अपना 'व्यवस्थित' बदल रहा है। यह सब पुण्य चलाता है। तुझे हज़ार रुपये तनख़्वाह कौन देता है? तनख्वाह देनेवाला तेरा सेठ भी पुण्य के अधीन है। पाप घेर लें तो सेठ को भी कर्मचारी मारते हैं। जागृति, पुण्य और पाप के उदय में... प्रश्नकर्ता : लोगों का पुण्य होगा इसलिए यह संपत्ति प्राप्त हुई। दादाश्री : वह सब पुण्य है न, जबरदस्त पुण्य है न, पर संपत्ति को सँभालना मुश्किल हो जाता है। प्रश्नकर्ता : इसलिए वह ठीक है। उपाधि तो है ही न? शुरूआत फिर वहाँ से ही होती है। दादाश्री : संपत्ति नहीं हो उसके जैसा तो कुछ भी नहीं। प्रश्नकर्ता : पैसे नहीं हो, संपत्ति नहीं हो, तो उसके जैसा कुछ भी नहीं? दादाश्री : हाँ, उसके जैसा तो कुछ भी नहीं। संपत्ति तो उपाधि है। संपत्ति यदि इस तरफ धर्म में मुड़ ही गई हो तो हर्ज नहीं है, नहीं तो उपाधि हो जाती है। किसे दें? अब कहाँ रखें? वह सब उपाधि हो जाती है! इसलिए बहुत पुण्य भी काम का नहीं है। पुण्य भी संतुलित हो तो ही अच्छा। बहुत पुण्य हो तो शरीर इतना बड़ा हो जाता है। क्या करना है उसे? कितने किलो का शरीर? हम उठाएँ और पलंग को भी उठाना इसलिए यह नासमझी में किए हुए पुण्य का फल है। ये दर्शन किए थे बिना समझे, तो वह बिना समझे ही फल भोगेगा। समझकर किए हुए का फल समझ से भोगता है! उसी प्रकार जागृत माइन्ड से किए गए पाप जागतिपूर्वक भोगने पड़ते हैं और अजागृतिपूर्वक किए गए पाप अजागृतिपूर्वक भोगने पड़ते हैं। उसमें बचपन में तीन वर्ष की उम्र में माँ मर जाए तो रोता-करता नहीं है। उसे पता भी नहीं होता। समझता ही नहीं, वहाँ पर क्या करे? और पच्चीस वर्ष का हो और उसकी माँ मर जाए तो? यानी यह जानते हुए दुःख भोगता है और बच्चा अनजाने में भुगतता है। कुसूर सेठ का या अपने पापों का? सेठ इनाम देते हैं, वह अपना व्यवस्थित है और अपना व्यवस्थित
SR No.009596
Book TitlePap Punya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size268 KB
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