SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! की भूलें अच्छी। इलैक्ट्रिसिटीवाली होती हैं, वे खुद को तुरन्त दिखती निजदोष दर्शन से... निर्दोष! शुद्ध उपयोग, आत्मा का आत्मा का शुद्ध उपयोग यानी क्या? उसकी तरफ से बेध्यान नहीं होना चाहिए। पाव घंटा झोंका आया हो तो पतंग की डोर अंगूठे से लपेटकर झोंका खाना। उसी तरह आत्मा के बारे में ज़रा भी अजागृति नहीं रख सकते। इस मन-वचन-काया के दोष तो प्रतिक्षण दिखने चाहिए। इस दूषमकाल में दोष के बिना काया ही नहीं होती। जितने दोष दिखे उतनी (ज्ञान की) किरणें बढ़ी कहलाएंगी। इस काल में यह अक्रम ज्ञान तो गज़ब का प्राप्त हुआ है। आपको केवल जागति रखकर भरे हुए माल को खाली करना है, धोते रहना है। अनंत भूलें हैं। भूलों के कारण नींद आ जाती है। नहीं तो नींद कैसी? नींद आए, उसे तो बैरी माना जाता है। प्रमादचर्या कहलाता है ! शुभ उपयोग में भी प्रमाद को अशुभ उपयोग कहते हैं। ज्ञानी पुरुष तो एक ही घंटा सोते हैं। निरंतर जागृत रहते हैं। खुराक कम हो गया हो, नींद कम हो गई हो, तब जागृति बढ़ती है। नहीं तो प्रमादचर्या रहती है। नींद खूब आए तो वह प्रमाद कहलाता है। प्रमाद तो आत्मा को गठरी में बांधने के बराबर है। जब नींद घटे, खुराक घटे, तब समझना कि प्रमाद घटा। भूल खत्म हो, तब उसके चेहरे पर लाइट आती है। सुंदर वाणी निकलती है, लोग उसके पीछे फिरते हैं। भूल नहीं ही है, ऐसा यदि मानकर बैठे रहें, तो फिर भल दिखेगी ही कहाँ से? फिर आराम से सोते रहते हैं। हमारे ऋषि-मुनि सोते नहीं थे। बहुत जागृत रहते प्रश्नकर्ता : इलैक्ट्रिसीटीवाली भूलें क्या हैं? दादाश्री : वे सारी खुली भूलें अकुलाहट देकर चली जाती हैं। उनसे जागृत ही रहा जाता है। वह अच्छा कहलाता है। जब कि अँधेरे की भूलें तो किसीको दिखती ही नहीं। उसमें खुद ही प्रमादी होता है, अपराधी होता है और दिखानेवाला भी नहीं मिलता। जब कि इलैक्ट्रिसीटीवाली भूलें तो कोई बतानेवाला भी मिल जाता है। खुद की भूलें खुद को चुभे, उसे हम इलैक्ट्रिसीटीवाली भूलें कहते हैं और अँधेरे की भूलें यानी खुद की भूलें, खुद को नहीं चुभतीं। जो भूलें चुभे, वे तो तुरन्त ही दिख जाती हैं, पर जो नहीं चुभती वे तो नज़र से निकल जाती हैं। अँधेरे की भूलें और अँधेरे की बात, उससे तो कठोर मनुष्य की उजाले की भूलें अच्छी, फिर भले ही थोकबंद हों। जब अप्रिय अवस्थाएँ आई हों, कोई मारे पत्थर से, तब भूलें दिखती हैं। स्ट्रोंग परमाणुवाली भूलें हों, वे तुरन्त ही दिखाई देती हैं, ऐसा व्यक्ति बहुत सख्त होता है। जिस तरफ घुसे, उस तरफ वह डूब जाता है। संसार में घुसे तो उसमें डूब जाता है और ज्ञान में घुसे तो उसमें डूब जाता है। प्रकटे केवलज्ञान, अंतिम दोष जाने पर 'मुझमें भूल ही नहीं है' ऐसा तो कभी भी नहीं बोल सकते, बोल ही नहीं सकते। केवल' होने के बाद ही भलें नहीं रहतीं। भगवान महावीर को केवलज्ञान उपजा, तब तक दोष दिखते थे। भगवान को केवलज्ञान उपजा, वह काल और खुद के दोष का दिखाई देने बंद होने का काल, एक ही था! वे दोनों ही समकालीन थे। अंतिम दोष का दिखाई देना और इस तरफ केवलज्ञान प्रकट हो जाना, ऐसा नियम है। जागृति तो निरंतर बनी रहनी चाहिए। यह तो दिन में भी बोरे में आत्मा बंद रखे तो कैसे चलेगा। दोषों को देखकर धोने से आगे बढ़ सकते हैं, प्रगति होती है, नहीं तो फिर भी आज्ञा में रहने से लाभ तो है, उससे आत्मा की संभाल रहती है। भूलें, उजाले की... स्थूल भूलें तो आमने-सामने टकराव होते हैं, तब बंद हो जाती हैं। पर सूक्ष्म, सूक्ष्मतर, सूक्ष्मतम भूलें इतनी सारी होती हैं कि वे जैसे-जैसे निकलती जाती हैं, वैसे-वैसे मनुष्य की सुगंध आती जाती है। ये भूलें तो अँधेरे की भूलें हैं। इसलिए खुद को दिखती नहीं हैं। वह तो ज्ञानी पुरुष प्रकाश फेंके, तब दिखती हैं। इससे तो उजाले
SR No.009595
Book TitleNijdosh Darshan Se Nirdosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size48 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy