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________________ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! करनेवाला अहंकारी नहीं भी हो। अपना ज्ञान लिया हुआ हो और पाँच आज्ञा का ठीक से पालन करता हो, उसके दोष को, दोष नहीं माना जाता क्योंकि सामने 'खुद', खुद के दोषों को देखनेवाला होता है। पर उसमें जो दोष है, वह भरा हुआ माल है, 'आपका' दोष नहीं है। ऐसी सापेक्षता है उसमें, एकांतिक नहीं है। परन्तु दोष देखनेवाला तो अहंकारी ही होता है। प्रश्नकर्ता: यानी दादा, दोष करनेवाला अहंकारी नहीं भी होता ? दादाश्री : नहीं भी होता । प्रश्नकर्ता: दोष देखनेवाला अहंकारी होता ही है। दादाश्री : होता ही है एकांतिक रूप से एकांतिक रूप से होता ही है। इस दुनिया में दोष देखनेवाला एकांतिक रूप से अहंकारी होता ही है। ७७ महत्व है, भूल के भान का ! भूल का तुरन्त पता चले तो कोई भूल करे ही नहीं न! पर बाद में चौबीस घंटे हो जाएँ, फिर भी पता नहीं चलता। प्रश्नकर्ता: वह तो उसके परिणाम में भुगतना आता है न, तब पता चलता है। दादाश्री : वह तो छह महीनों बाद आता है परिणाम, खुद अपने को कुछ पता नहीं चलता । प्रश्नकर्ता: इसमें तो दादा तुरन्त ख्याल आ गया था कि ऐसा होगा। इन भाईसाब ने कहा तो तुरन्त पता चल गया कि गड़बड़ की। दादाश्री : नहीं, लेकिन अपने आप कुछ पता नहीं चलता। प्रश्नकर्ता यह अपने आप पता चल गया। : दादाश्री : उसने कहा, उसने सावधान किया इसलिए पीछे देखा । बाकी कोई 'अपने आप' होता नहीं है। निजदोष दर्शन से... निर्दोष! प्रश्नकर्ता: इन भाईसाब ने कहा, और तुरन्त ही मुझे स्ट्राइक हुआ, कि भूल हुई। ७८ दादाश्री : भूल हुई, पता चलता है न? भूल हुई तो सुधारे न लेकिन! पता चल जाए तो, वह तो तुरन्त ही मिटा दे न? प्रश्नकर्ता: हाँ। दादाश्री : तब ठीक है। भूल तो बाहर होती ही रहनेवाली है। तुझे पता चलेगा, तो भान होता जाएगा। अपने आप ही भूल का भान हो, तब मैं कहूँ कि यह ज्ञानी है! भूल में ही चलता रहता है मनुष्य भूल को ही सत्य मानकर चलता रहता है। फिर खुद को ज़रा वेदन आए तब फिर सोचता है कि अरे, ऐसा क्यों होता है? उसके बाद पता चलता है। बिना वेदन के पता चले तब समझना कि अब ज्ञान प्रकट हुआ है। यह ज्ञान और यह अज्ञान ऐसा भेद पड़ जाना चाहिए। प्रश्नकर्ता: खुद की भूल पता चले, फिर भूल होनी बंद हो जाती है ? दादाश्री : बंद नहीं होती, उसका हर्ज नहीं है। पता चला यानी बहुत हो गया। भूल बंद हो या नहीं हो, उसकी तो माफ़ी ही है। भूल का पता नहीं चलता उसकी माफ़ी नहीं है। बंद नहीं हो, उसका हर्ज नहीं है अभानावस्था को माफ़ी नहीं है। अभानावस्था के कारण भूल होती है। 1 प्रश्नकर्ता: ऐसी अभानावस्था कितनी ही बार उत्पन्न हुई होगी। बाकी कितनी ही तरफ अभानावस्था रहती होगी, तो वहाँ पर भूलें हुआ ही करती होंगी न? दादाश्री : होती ही हैं पर, हुआ करती होंगी नहीं, होती ही रहती हैं! प्रश्नकर्ता: वह अभानावस्था छूटे और भूल दिखाई दे, ऐसा किस तरह हो सकता है?
SR No.009595
Book TitleNijdosh Darshan Se Nirdosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size48 KB
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