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________________ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! ७३ आपका होगा तो हमारा होगा।' अर्थात् चंदूभाई शुद्ध होंगे तब हमारा छुटकारा होगा ! इसलिए हमें भीतर खुद को ही कहना है कि 'चंदूभाई दोष आपका ही है, इसलिए ही यह झमेला खड़ा हुआ और ऐसे आपको मिले, नहीं तो ऐसे मिलते होंगे?!' नहीं तो यों फूल चढ़ाएँ ऐसे लोग मिलते हैं। देखो न, मुझे फूल चढ़ाएँ, ऐसे लोग नहीं मिलते हैं?! हाँ? ! आपको समझ में आया न? घर में टोका जाए, कौन-सी भूलों को ? जीवन सारा बिगड़ गया है, ऐसा जीवन नहीं होना चाहिए। जीवन तो प्रेममय होना चाहिए। जहाँ प्रेम हो वहाँ भूल ही नहीं निकालते। भूल निकालनी हो तो ठीक से समझाना चाहिए। उसे हम कहें, 'ऐसा करने जैसा है।' तो वह कहेगी, 'अच्छा किया मुझे कहा।' उपकार माने। 'चाय में शक्कर नहीं' कहेगा। अरे, पी जा न चुपचाप । बाद में उसे भी पता चलेगा न? वह हमें कहे उलटे कि आपने शक्कर नहीं माँगी ?!' तब कहें, 'आपको पता चले तब भेजना।' जीवन जीना नहीं आता। घर में भूल नहीं निकालते। निकालते हैं। या नहीं निकालते अपने लोग? प्रश्नकर्ता हर रोज़ निकालते हैं। दादाश्री : बाप की, माँ की, बच्चों की सबकी गलतियाँ निकालता है, मुआ। अपनी खुद की ही नहीं निकालता! कितना समझदार ! अक्लमंद ! मतलब कि ऐसी टेढ़ी जात है यह। अब समझदार हो जाना यानी कि अतिक्रमण मत करना ! कभी यों छीटा पड़ा, तो हमें तुरन्त समझ लेना चाहिए कि यह दाग़ लगा, इसलिए तुरन्त धो डालना। भूल तो होती है, नहीं होती ऐसा नहीं है, पर भूल धो डालना वह अपना काम । निजदोष दर्शन से... निर्दोष! प्रश्नकर्ता: पर दाग़ दिखें, ऐसी दृष्टि मिलनी चाहिए। दादाश्री : वह दृष्टि हमें मिली है। दूसरे लोगों को तो मिली ही नहीं होती और हमें तो मिली है न कि यह भूल हुई, अपनी भूल पता चलती है। हमारी जागृति ऐसी है कि भूलें सब दिखलाती है। थोड़ी-थोड़ी दिखती हैं, जैसे-जैसे परतें हटती जाएँगी, वैसे-वैसे दिखते जाते हैं। जब घर के लोग निर्दोष दिखें और खुद के ही दोष दिखेंगे, तब सच्चे प्रतिक्रमण होंगे। ७४ ऐसे होते हैं कर्म चोखे ! प्रश्नकर्ता: महात्माओं की ऐसी स्टेज कब आएगी कि प्रतिक्रमण करने के ही खत्म हो जाएँगे? दादाश्री : अटेक करना भूल गया तो फिर प्रतिक्रमण करना भूल जाएगा। प्रश्नकर्ता: पुराने दोषों के कब तक प्रतिक्रमण करने? दादाश्री : दोष हों तब तक। और हमारे दोषों को लेकर सामनेवाले को दुःख हो ऐसा हो, तब ही कहना, 'चंदूलाल इनके प्रतिक्रमण करो' नहीं तो करने की ज़रूरत नहीं है। प्रश्नकर्ता: इस जनम में ऐसे दोष नहीं किए हों, परन्तु भूतकाल में, पिछले जनम में ऐसे दोष किए हों कि जिनके प्रतिक्रमण करके उनमें से छूट जाना हो तो किस तरह करें? कब तक करें ? दादाश्री : पिछले जन्म में दोष हुए हैं, उनका किस प्रकार पता चले? जो क्लेम करता हुआ आए, उसका निवारण हो। क्लेम ही नहीं करते हों तो? इसलिए क्लेम करता हुआ आए, उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए। दूसरे किसीको लेना-देना नहीं है। कोई मन में याद आया करता हो, जिसकी तरफ मन बिगड़ता रहता हो, उसके प्रतिक्रमण करना । जगत् सारा निर्दोष है ही, पर निर्दोष दिखता नहीं है, उसका क्या कारण है? वह हमारे
SR No.009595
Book TitleNijdosh Darshan Se Nirdosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size48 KB
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