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________________ मृत्यु समय, पहले और पश्चात्... जो बैन्क बैलेन्स था. वह ज़ब्त हो गया, बच्चे जब्ती में गए, बंगला ज़ब्ती में गया। फिर ये कपड़े जो नाम पर रहे हैं, वे भी जब्ती में गए! सबकुछ जब्ती में गया। तब कहता है 'साहब, अब मुझे वहाँ साथ क्या ले जाने का?' तब कहे 'लोगों के साथ जो गुत्थियाँ उलझाई थीं, उतनी ले जाओ!' इसलिए ये नामवाला सब ज़ब्ती में जानेवाला है। इसलिए हमें अपने खुद के लिए कुछ करना चाहिए न? नहीं करना चाहिए? भेजो, अगले जन्म की गठरियाँ मृत्यु समय, पहले और पश्चात... मुक्ति , जन्म-मरण से प्रश्नकर्ता : जन्म-मरण के झंझट में से कैसे छूटें? दादाश्री : बहुत अच्छा पूछा। क्या नाम है आपका? प्रश्नकर्ता : चन्दूभाई। दादाश्री : सच में चन्दूभाई हो? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : चन्दूभाई तो आपका नाम है, नहीं? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : तब आप कौन हैं? आपका नाम चन्दूभाई है, यह तो हम सबको कबूल है, मगर आप कौन हो? प्रश्नकर्ता : इसीलिए तो आया हूँ। दादाश्री : वह जान लें, तब जन्म-मरण का झंझट छूटे। अभी तो मूल उस चन्दूभाई के नाम पर ही यह सब चलता रहा है न? सभी चन्दूभाई के नाम पर?! अरे, धोखा हो जाएगा यह तो? आप पर थोड़ा तो रखना था न? अरथी मतलब कुदरत की ज़ब्ती! कैसी ज़ब्ती? तब कहें, नामवाला जो हमारे रिश्तेदार नहीं हों, ऐसे दूसरे लोगों को कुछ सुख दिया हो, फेरा लगाकर, दूसरा कुछ भी उन्हें दिया हो तो वह 'वहाँ' पहुँचेगा। रिश्तेदार नहीं, परन्तु दूसरे लोगों के लिए। फिर यहाँ लोगों को दवाईयों का दान दिया हो, औषधदान, दूसरा आहारदान दिया हो, फिर ज्ञानदान दिया हो और अभयदान वह सब दिया हो, तो वह वहाँ सब आएगा। इनमें से कुछ देते हो या ऐसा ही सब? खा जाते हो? अगर साथ ले जा सकते तो यहाँ तो ऐसे भी हैं कि तीन लाख का कर्ज करके जाएँ! धन्य हैं न! जगत् ही ऐसा है, इसलिए नहीं ले जा पाते, यही अच्छा है। माया की करामात जन्म माया करवाती है, शादी माया करवाती है और मृत्यु भी माया करवाती है। पसंद हो या नापसंद हो, लेकिन छुटकारा नहीं है। पर इतनी शर्त होती है कि माया का साम्राज्य नहीं है। मालिक आप हो। अर्थात् आपकी इच्छा के अनुसार हुआ है। पिछले जन्म की आपकी जो इच्छा थी. उसका हिसाब निकला और उसके अनुसार माया चलाती है। फिर अब शोर मचाएँ तो नहीं चलता। हमने ही माया से कहा था कि यह मेरा लेखा-जोखा है।
SR No.009594
Book TitleMrutyu Samaya Pahle Aur Pashchat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size226 KB
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