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________________ मृत्यु समय, पहले और पश्चात्.. मृत्यु समय, पहले और पश्चात्... इफेक्ट खड़े होते रहते हैं। इफेक्ट में से फिर कॉज़ेज़ उत्पन्न होते ही रहेंगे और वे कॉजेज़ फिर अगले जन्म में इफेक्ट होंगे। कॉज़ेज़ एन्ड इफेक्ट, इफेक्ट एन्ड कॉज़ेज़, कॉज़ेज़ एन्ड इफेक्ट, इफेक्ट एन्ड कॉज़ेज़, कॉज़ेज़ एन्ड इफेक्ट वह चलता ही रहता है। इसलिए ज्ञानी पुरुष जब कॉज़ेज़ बंद कर देते हैं, तब सिर्फ इफेक्ट ही भुगतने का रहा। इसलिए कर्म बंधने बंद हो गए। इसलिए, सब 'ज्ञान' सब याद रहता ही है, इतना ही नहीं, लेकिन खद वह स्वरूप ही हो जाता है। फिर तो मरने का भी भय नहीं लगता। किसी का भय नहीं लगता, निर्भयता होती है। अंतिम समय की जागृति जीवित हैं, तब तक प्रश्नकर्ता : दादाश्री, ज्ञान लेने से पहले के, इस भव के जो पर्याय बंध गए हों, उनका निराकरण किस प्रकार आएगा? दादाश्री : अभी हम जीवित हैं, तब तक पश्चाताप करके उन्हें धो डालना है, लेकिन वे अमुक ही, पूरा निराकरण नहीं होता है। पर ढीले तो हो ही जाते हैं। ढीले हो जाएँ, इसलिए अगले भव में हाथ लगाते ही तुरन्त गाँठ छूट जाती है! प्रश्नकर्ता : प्रायश्चित से बंध छूट जाते हैं? । दादाश्री : हाँ, छूट जाते हैं। अमुक प्रकार के ही बंध हैं, वे कर्म प्रायश्चित करने से मज़बूत गाँठ में से ढीले हो जाते हैं। अपने प्रतिक्रमण में बहुत शक्ति है। दादा को हाज़िर रखकर करो तो काम हो जाए। यह ज्ञान मिलने के बाद हिसाब महाविदेह का कर्म के धक्के से अवतार होनेवाले हों वे होंगे, शायद एक-दो अवतार। पर उसके बाद सीमंधर स्वामी के पास ही जाना पड़ेगा। यह यहाँ का धक्का, हिसाब बांध दिया है पहले, कुछ चिकना हो गया है न, तो वह पूरा हो जाएगा। उससे छुटकारा ही नहीं है न! प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण करने से कर्म के धक्के कम होते हैं? दादाश्री : कम होते हैं न! और जल्दी निपटारा आ जाता है। 'हमने' ऐसे किया निवारण विश्व से जितनी भूलें खत्म की प्रतिक्रमण कर-करके, उतना मोक्ष नज़दीक आया। प्रश्नकर्ता : वे फाइलें फिर चिपकेंगी नहीं न दूसरे जन्म में? दादाश्री : क्या लेने? हमें दूसरे जन्म से क्या लेना है? यहीं के यहीं प्रतिक्रमण इतने कर डालें। फुरसत मिली कि उसके लिए प्रतिक्रमण करते रहना चाहिए। 'चन्दूभाई से आपको इतना कहना पड़ेगा कि प्रतिक्रमण करते रहो। आपके घर के सभी सदस्यों के साथ, आपको कुछ न कुछ पहले दुःख हुआ होता है, उसके आपको प्रतिक्रमण करने हैं। संख्यात या असंख्यात जन्मों में जो राग-द्वेष, विषय, कषाय के दोष किए हों, उनकी क्षमा माँगता हूँ। ऐसे रोज़ एक-एक व्यक्ति की, ऐसा घर के हर एक व्यक्ति को याद कर-कर के करना चाहिए। बाद में आसपास के, पास-पड़ोस के सबको लेकर उपयोग रखकर यह करते रहना चाहिए। आप करोगे उसके बाद यह बोझ हलका हो जाएगा। वैसे के वैसे हलका होता नहीं है। हमने सारे विश्व के साथ इस प्रकार निवारण किया है। पहले ऐसे निवारण किया था, तभी तो यह छुटकारा हुआ। जब तक हमारा दोष आपके मन में है, तब तक मुझे चैन नहीं लेने देगा! इसलिए, हम जब ऐसा प्रतिक्रमण करते हैं, तब वहाँ पर मिट जाता है।
SR No.009594
Book TitleMrutyu Samaya Pahle Aur Pashchat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size226 KB
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