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________________ मृत्यु समय, पहले और पश्चात्.. ___३९ मृत्यु समय, पहले और पश्चात्... थियरी' सब सही है। केवल मनुष्य तक ही 'इवोल्युशन की थियरी' करेक्ट है, फिर उसके आगे की बात वे लोग जानते ही नहीं है। प्रश्नकर्ता : मनुष्य में से पशु में वापस जाता है क्या? प्रश्न यह प्रश्नकर्ता : पर आत्मा तो पवित्र है न? दादाश्री : आत्मा पवित्र तो इस समय भी है। चौरासी लाख योनियों में फिरते हुए भी पवित्र रहा है! पवित्र था और पवित्र रहेगा! वासना के अनुसार गति प्रश्नकर्ता : मरने से पहले जैसी वासना हो, उस रूप में जन्म होता है न? दादाश्री : हाँ, वह वासना, अपने लोग जो कहते हैं न कि मरने से पहले ऐसी वासना थी, पर वह वासना कुछ लानी नहीं पड़ती है। वह तो हिसाब है, सारी ज़िन्दगी का। सारी ज़िन्दगी आपने जो किया हो, उसका मृत्यु के समय आख़िरी घंटा होता है तब हिसाब आता है और उस हिसाब के अनुसार उसकी गति हो जाती हैं। दादाश्री : ऐसा है, पहले डार्विन की थियरी 'उत्क्रांतिवाद' के अनुसार 'डेवलप' होता-होता मनुष्य तक आता है और मनुष्य में आया इसलिए 'इगोइज़म' (अहंकार) साथ में होने से कता होता है। कर्म का कर्ता होता है, इसलिए फिर कर्म के अनुसार उसे भोगने जाना पड़ता है। 'डेबिट' (पाप) करे, तब जानवर में जाना पड़ता है और ' क्रेडिट' (पुण्य) करे, तब देवगति में जाना पड़ता है अथवा तो मनुष्यगति में राजापद मिलता है। अतः मनुष्य में आने के बाद फिर 'क्रेडिट' और 'डेबिट' पर आधारित है। फिर नहीं हैं चौरासी योनियाँ प्रश्नकर्ता : लेकिन ऐसा कहते हैं न कि मानवजन्म, जो चौरासी लाख योनि में भटककर आने के बाद मिला है, वह फिर से उतना भटकने के बाद मानवजन्म मिलता है न? दादाश्री : नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। एक बार मनुष्य जन्म में आया और फिर पूरी चौरासी में भटकना नहीं पड़ता है। उसे यदि पाशवता के विचार आएँ, तो अधिक से अधिक आठ भव उसे पशुयोनि में जाना पडता है, वह भी केवल सौ-दो सौ वर्ष के लिए। फिर वापस यहीं का यहीं मनुष्य में आता है। एक बार मनुष्य होने के पश्चात् चौरासी लाख फेरे भटकना होता नहीं है। प्रश्नकर्ता : एक ही आत्मा चौरासी लाख फेरे फिरता है न? दादाश्री : हाँ, एक ही आत्मा। क्या मनुष्य में से मनुष्य ही? प्रश्नकर्ता : मनुष्य में से मनुष्य में ही जानेवाले हैं न? दादाश्री : वह खुद की समझ में भूल है। बाकी स्त्री की कोख से मनुष्य ही जन्म लेता है। वहाँ कोई गधा नहीं जन्मता। मगर वह ऐसा समझ बैठा कि हम मर जाएँगे फिर भी मनुष्य में ही जन्मेंगे तो वह भूल है। अरे, मुए तेरे विचार तो गधे के हैं, फिर मनुष्य किस प्रकार होनेवाला है? तुझे विचार आते हैं, किस का भोग लूँ, किस का ले लूँ। बिना हक़ का भोगने के विचार आते हैं, वे विचार ही ले जाते हैं, अपनी गति में! प्रश्नकर्ता : जीव का ऐसा कोई क्रम है कि मनुष्य में आने के बाद मनुष्य में ही आए कि दूसरे कहीं जाए? दादाश्री : हिन्दुस्तान में मनुष्य जन्म में आने के बाद चारों गतियों में भटकना पड़ता है। फ़ॉरेन के मनुष्यों में ऐसा नहीं है। उनमें दो-पाँच
SR No.009594
Book TitleMrutyu Samaya Pahle Aur Pashchat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size226 KB
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