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________________ मृत्यु समय, पहले और पश्चात्... मृत्यु समय, पहले और पश्चात्... मर्सी किलिंग प्रश्नकर्ता : जो भारी पीड़ा सहता हो उसे पीड़ा सहने दें, और यदि उसे मार डालें तो फिर उसका अगले जन्म में पीड़ा सहना शेष रहेगा, यह बात ठीक नहीं लगती। वह भारी पीड़ा सहता हो तो उसका अंत लाना ही चाहिए, उसमें क्या गलत है? दादाश्री : ऐसा किसी को अधिकार ही नहीं है। हमें इलाज करवाने का अधिकार है, सेवा करने का अधिकार है, परन्तु किसी को मारने का अधिकार ही नहीं है। प्रश्नकर्ता : तो उसमें हमारा क्या भला हुआ? दादाश्री : तो मारने से क्या भला हुआ? आप उस पीड़ाग्रस्त को मार डालो तो आपका मनुष्यत्व चला जाता है और वह तरीका मानवता के सिद्धांत के बाहर है, मानवता के विरुद्ध है। दादाश्री : हाँ, ऐसा। यह तो नहीं छोड़ गया उसका रोना है। 'मरता गया और मारता गया' ऐसा भी अंदर-अंदर बोलते हैं! 'कछ छोड़ा नहीं और हमें मारता गया!' अब वह नहीं छोड़ गया, उसमें उस स्त्री का नसीब कच्चा इसलिए नहीं छोड़ा। पर मरनेवाले को गालियाँ खाने का लिखा था, इसीलिए खाई न! इतनी-इतनी सुनाते हैं! हमारे लोग जो स्मशान जाते होंगे, वे वापस नहीं आते न, या सभी वापस आते हैं? अर्थात् यह तो एक तरह का फ़जीता है। रोएँ तो भी दुःख और नहीं रोएँ तो भी दु:ख। बहुत रोएँ, तो लोग कहेंगे कि 'लोगों के यहाँ नहीं मरते, जो इतना रो रहे हो? कैसे, घनचक्कर हो या क्या?' और नहीं रोएँ, तब कहेंगे कि आप पत्थर से हो, हृदय पत्थर जैसा है तुम्हारा!' अर्थात् किस ओर जाना वही समस्या है! सब रीति अनुसार होना चाहिए, ऐसा कहेंगे। वहाँ स्मशान में जलाएंगे भी और साथ में पास के होटल में बैठकर चाय-नाश्ता भी करेंगे, ऐसे नाश्ता करते हैं न लोग? साथ, स्मशान तक ही यह तकिया होता है, उसका खोल बदलता रहता है, लेकिन तकिया तो वही का वही। खोल फट जाता है और बदलता रहता है, वैसे ही यह खोल भी बदलता रहता है। बाकी यह जगत् सारा पोलम्पोल है। फिर भी व्यवहार से नहीं बोलें तो सामनेवाले के मन को द:ख होगा। पर स्मशान में साथ जाकर वहाँ चिता में कोई गिरा नहीं। घर के सभी लोग वापस आते हैं। सभी सयाने-समझदार हैं। उसकी माँ हो, वह भी रोती-रोती वापस आती है। प्रश्नकर्ता : नाश्ता लेकर ही जाते हैं न! दादाश्री : ऐसा! क्या बात करते हो? इसलिए, ऐसा है यह जगत् तो सारा! ऐसे जगत् में किस तरह रास आए? 'आने-जाने' का संबंध रखते हैं, पर सिर पर नहीं लेते। आप लेते हो सिर पर अब? सिर पर लेते हो? पत्नी का या अन्य किसी का भी नहीं? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : क्या बात करते हो?! और वे तो पत्नी को बगल में रखकर बिठाते रहते हैं। कहेंगे कि तेरे बिना मुझे अच्छा नहीं लगता। पर स्मशान में कोई साथ आता नहीं। आता है कोई? प्रश्नकर्ता : फिर उसके नाम से छाती कूटते हैं कि पीछे कुछ छोड़कर नहीं गए, और दो लाख छोड़ गए हों, तो कुछ बोलते नहीं।
SR No.009594
Book TitleMrutyu Samaya Pahle Aur Pashchat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size226 KB
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