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________________ बच्चों का माँ-बाप के प्रति व्यवहार (उतरार्ध) १६. 'टीनेजर्स' (युवा उम्रवालों) के साथ 'दादाश्री' प्रश्नकर्ता : आदर्श विद्यार्थी के जीवन में किन-किन लक्षणों की माता-पिता और बच्चों का व्यवहार समझते, इसलिए लोग बिना वजह झंझट करते हैं और जो ऊपर से दिखाई देता है, उसे ही सत्य मानते हैं। बात गहराई से समझने लायक है। यह जो मैंने बताई उतनी ही नहीं है, यह तो बहुत गहन बात है! ये तो हिसाब से ही लेते हैं और चुकाये जा रहे हैं! आत्मा किसी का बेटा नहीं होता और न ही किसी का पिता होता है। आत्मा किसी की पत्नी नहीं होता, न ही किसी का पति होता है। यह सब ऋणानुबंध हैं। कर्म के उदय से एकत्र हुए हैं। अभी (इस जन्म में) लोगों को यह प्रतीत होता है। लेकिन हमें भी यह प्रतीत हो रहा है और यह केवल प्रतीत होता है इतना ही, वास्तव में दृश्यमान भी नहीं होता। वास्तविक होता न, तो कोई लड़ता ही नहीं। यह तो एक घण्टे में ही झमेला हो जाता है, मतभेद हो जाता है, तब लड़ पड़ते हैं कि नहीं लड़ पड़ते? 'मेरी-तेरी' करते हैं कि नहीं करते? प्रश्नकर्ता : करते हैं। दादाश्री : इसलिए केवल आभास है न, 'एक्जेक्ट' (वास्तविक) नहीं है। कलियुग में आशा मत करना। कलियुग में आत्मा का कल्याण हो ऐसा करो, वर्ना समय बहुत विचित्र आ रहा है, आगे भयावह विचित्र समय आ रहा है। अब के बाद के हजार साल अच्छे हैं, लेकिन तत्पश्चात् भयावह काल आनेवाला है। फिर कब मौका मिलेगा? इसलिए हम आत्मार्थ कुछ कर लें। जरूरत है? दादाश्री : विद्यार्थी को घर के जितने व्यक्ति हों, उन सबको खुश रखने की जरूरत है और फिर स्कूल में जिन लोगों के साथ हों, हमारी जो टीचर हों, उन सबको खुश रखने की जरूरत है। हम जहाँ जाए, वहाँ सबको खुश रखना चाहिए और अपनी पढ़ाई में भी ध्यान लगाना चाहिए। दादाश्री : तुमने कभी जंतु मारे थे? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : कहाँ मारे थे? प्रश्नकर्ता : बगीचे में, पीछे बाड़े में। दादाश्री : कौन-से जंतु थे? कोक्रोच वगैरह थे? प्रश्नकर्ता : सभी को मारा था। दादाश्री : मनुष्य के बच्चे को मार डालता है क्या? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : किसी के बच्चे को नहीं मारते? यह किसी का बच्चा हो तो मार नहीं सकते?
SR No.009593
Book TitleMata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages61
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size38 KB
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