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________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार माता-पिता और बच्चों का व्यवहार किसी न किसी जन्म में उससे मिलकर चुकाना पड़ता है न? दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है। इस तरह बदला नहीं चुकाया जाता। बैर बंधने पर भीतर राग-द्वेष होता है। पिछले जन्म में लड़के के साथ वैर हो गया हो तो हम सोचें कि कौन से जन्म में परा होगा? इस प्रकार फिर कब इकट्ठा होंगे? वह लड़का तो इस जन्म में बिल्ली होकर आए। तुम उसे दूध दो, तो भी वह तुम्हारे मुँह पर नाखन मारे! ऐसा है यह सब! ऐसे तुम्हारा बैर चुकता जाता है। परिपाक होना काल का नियम है इसलिए थोड़े समय में हिसाब पूरा हो जाता है। कुछ तो बैरभाव से मिलते हैं, ऐसा लड़का मिले तो बैरभाव से हमारा तेल निकाल दे। आया समझ में? शत्रु-भाव से आये तो ऐसा हो कि न हो? प्रश्नकर्ता : मेरी तीन बेटियाँ है, उनकी मुझे चिंता रहती है। उनके भविष्य के बारे में? दादाश्री: हम भविष्य के बारे में विचार करें उससे अच्छा आज की सेफसाइड (सलामती) करना, प्रतिदिन सेफसाइड करना अच्छा। आगे के विचार जो करते हो न, वे विचार किसी भी तरह 'हेल्पिंग' (सहायक) नहीं हैं, बल्कि नुकसानदायक हैं। उसके बजाय हम प्रतिदिन सेफसाइड करते रहें यही बड़े से बड़ा इलाज है। आपको बेटों-बेटियों के अभिभावक होकर, ट्रस्टी होकर रहना है। उनकी शादी की चिंता नहीं करनी चाहिए। क्योंकि वे अपना हिसाब लेकर आए होते हैं। लड़की के बारे में चिंता तुम्हें नहीं करनी है। लड़की के तुम पालक हो। लड़की अपने लिए लड़का भी लेकर आई होती है। हमें किसी को कहने जाने की ज़रूरत नहीं कि हमारी लड़की है, उसके लिए लड़के को जन्म देना। क्या ऐसा कहने जाना पड़ता है? अर्थात् अपना सबकुछ लेकर आई होती है। तब बाप कहेगा, 'यह पच्चीस साल की हुई, अभी भी उसका ठिकाना लगता नहीं, ऐसा है, वैसा है, 'यूं सारा दिन गाता रहता है। अरे! वहाँ पर लड़का सत्ताईस का हुआ है पर तुझे मिला नहीं, क्यों शोर मचा रहा है? सो जा चुपचाप! वह लड़की अपना टाइमिंग (समय) सब सेट करके आई है। चिंता करने से तो अंतराय कर्म होता है। वह कार्य विलंबित होता है। हमें किसी ने बताया हो कि फलाँ जगह पर एक लड़का है, तो हमें प्रयत्न करना है। चिंता करने को भगवान ने 'ना' बोला है। चिंता करने से तो एक अंतराय और पड़ता है और वीतराग भगवान ने क्या कहा है कि 'तुम चिंता करते हो तो तुम ही मालिक हो क्या? तुम ही दुनिया चलाते हो?' इसे ऐसे देखें तो पता चले कि अपने को तो संडास जाने की भी स्वतंत्र शक्ति नहीं है। अगर बंद हो जाए तो डॉक्टर बुलाना पड़ता है। तब तक ऐसा लगता है कि यह शक्ति हमारी है, परन्तु यह शक्ति हमारी नहीं है। यह शक्ति किसके अधीन है यह सब जानना पड़ेगा। यह तो अंत समय में खटिया में पड़ा हो, तब भी छोटी लड़की की चिंता करता है कि, इसकी शादी करनी रह गई। ऐसी चिंता में और चिंता में मर जाए तो फिर पशु योनि में जाता है। पशु योनि में जन्म निंद्य है, किन्तु मनुष्य जन्म पा कर भी सीधा न रहे तब क्या हो? १३. भला हुआ जो न बंधी जंजाल... दादाश्री : किसी दिन चिंता करते हो? प्रश्नकर्ता : चिंता बहुत नहीं, परंतु कभी कभी ऐसा लगता है कि, वैसे तो सब कुछ है पर बालक नहीं है। दादाश्री : अहोहो! अर्थात् खानेवाला कोई नहीं है। इतना सबकुछ है फिर भी, खाने का सबकुछ है परन्तु खानेवाला कोई नहीं तब भी फिर चिंता ही हो न! किसी जन्म में जब बहुत पुण्यवान हों, तब बच्चा नहीं होता। क्योंकि बच्चे होना-न होना सब अपने कर्मों की खाता-बही का हिसाब है। इस जन्म में महान पुण्यवान हो कि तुम्हें बच्चा नहीं हुआ। ऐसे लोग बहुत पुण्यवान कहलाते हैं। मुए, तुझे किस ने ऐसा सिखाया? तब कहा, 'मेरी पत्नी हर रोज़ खिटपिट करती है। मैंने कहा, 'मैं आऊँगा वहाँ पर।' बाद में उसकी बीवी को समझाया तो समझ गई। मैने कहा कि देखो, इनको
SR No.009593
Book TitleMata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages61
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size38 KB
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