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________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार पड़ता है, पुस्तकें प्रकाशित करनी पड़ती हैं। वर्ना जिसने अपना ज्ञान लिया है, वे तो बच्चों को बहुत अच्छा बना सकते हैं। उसे बिठाकर, हाथ फेरकर पूछो कि 'बेटा, तुझे, यह भूल हुई, ऐसा नहीं लगता!' यह इन्डियन फिलॉसॉफी (भारतीय तात्विक समझ) कैसी होती है? माता-पिता में से एक डाँटने लगे तब दूसरा, बच्चे का बचाव करता है । इसलिए वह कुछ सुधर रहा हो, तो सुधरना तो एक ओर रहा, उपर से लड़का समझता है कि 'मम्मी अच्छी है और पापा बुरे है, बड़ा होऊँगा तब उन्हें मारूंगा।' बच्चों को सुधारना हो तो हमारी आज्ञानुसार चलो। बच्चों के पूछने पर ही बोलना और उन्हें यह भी कह देना कि मुझे नहीं पूछो तो अच्छा। बच्चों के संबंध में उल्टा विचार आये तो तुरन्त उसका प्रतिक्रमण कर डालना। किसी को सुधारने की शक्ति इस काल में ख़तम हो गई है। इसलिए सुधारने की आशा छोड़ दो। क्योंकि मन-वचन-कर्म की एकात्मवृति हो, तभी सामनेवाला सुधर सकता है। मन में जैसा हो, वैसा वाणी में निकले और वैसा ही वर्तन हो, तभी सामनेवाला सुधरेगा। इस काल में ऐसा नहीं है। घर में प्रत्येक के साथ कैसे व्यवहार हो, उसकी 'नोर्मालिटी' (समानता) ला दो। आचार, विचार और उच्चार में सीधा परिवर्तन हो तो खुद परमात्मा हो सकता है और उल्टा परिवर्तन हो तो राक्षस भी हो सकता है। लोग सामनेवाले को सुधारने के लिए सब फ्रेक्चर कर डालते हैं। पहले खुद सुधरे तो ही दूसरों को सुधार सकता है। पर खुद के सुधरे बगैर सामनेवाला कैसे सुधरेगा ? हमें बच्चों के लिए भाव करते रहना है कि बच्चों की बुद्धि सीधी हो। ऐसा करते करते बहुत दिनो के बाद, असर हुए बिना नहीं रहता । वे तो धीमे-धीमे समझेंगे, तुम भावना करते रहो। उन पर जबरदस्ती करोगे तो उल्टे चलेंगे। तात्पर्य यह कि संसार जैसे-तैसे निभा लेने जैसा है। माता-पिता और बच्चों का व्यवहार लड़का शराब पीकर आये और तुम्हें दुःख दे, तब तुम मुझे कहो कि यह लड़का मुझे बहुत दुःख देता है तो मैं कहूँ कि गलती तुम्हारी है, इसलिए शांति से चुपचाप भुगत लो, बिना भाव बिगाड़े। यह भगवा महावीर का नियम है और संसार का नियम तो अलग है। संसार के लोग कहेंगे कि 'लड़के की भूल है।' ऐसा कहनेवाले तुम्हें आ मिलेंगे और तुम भी अकड़ जाओगे कि 'लड़के की ही भूल है, यह मेरी समझ सही है।' बड़े आये समझवाले! भगवान कहते हैं, 'तेरी भूल है।' १८ तुम फ्रेन्डशिप (मित्रता) करोगे तो बच्चे सुधरेंगे। आपकी फ्रेन्डशिप होगी तो बच्चे सुधरेंगे। लेकिन माता-पिता की तरह रहोगे, रौब जमाने जाओगे, तो जोखिम है। फ्रेन्ड (मित्र) की तरह रहना चाहिए। वे बाहर फ्रेन्ड खोजने न जाए इस प्रकार रहना चाहिए। अगर आप फ्रेन्ड हैं, तो उसके साथ खेलना चाहिए, फ्रेन्ड जैसा सब करना चाहिए! तेरे आने के बाद हम चाय पियेंगे, ऐसा कहना चाहिए। हम सब साथ मिलकर चाय पियेंगे। तुम्हारा मित्र हो इस प्रकार व्यवहार करना चाहिए तब बच्चे तुम्हारे रहेंगे। नहीं तो बच्चे तुम्हारे नहीं होंगे, सचमुच कोई बच्चा किसी का होता ही नहीं। कोई आदमी मर गया, उसके पीछे उसका लड़का मरता है कभी? सब घर आकर खाते-पीते हैं। ये बच्चे बच्चे नहीं हैं, ये तो केवल कुदरत के नियमानुसार (संबंध के तौर पर) दिखाई देते हैं इतना ही। 'योर फ्रेन्ड' (तुम्हारा मित्र) के तौर पर रहना चाहिए। तुम पहले तय करो तो फ्रेन्ड के तौर पर रह सकते हो। जैसे फ्रेन्ड को बुरा लगे ऐसा नहीं बोलते, वह उल्टा कर रहा हो तो हम उसे कहाँ तक समझाते हैं कि वह मान जाए तब तक और न माने तो फिर उसे कहते हैं कि 'जैसी तेरी मरजी ।' फ्रेन्ड होने के लिए मन में पहले क्या सोचना चाहिए? बाह्य व्यवहार में मैं उसका पिता हूँ, परंतु अंदर से मन में हमें मानना चाहिए कि मैं उसका लड़का हूँ। तभी फ्रेन्डशिप होगी, नहीं तो नहीं होगी। पिता मित्र कैसे होगा? उसके लेवल (स्तर) तक आने पर उस लेवल तक किस प्रकार आएँ ? वह मन में ऐसा समझे कि 'मैं इसका पुत्र हूँ।' यदि ऐसा कहे तो काम निकल जाए। कुछ लोग कहते हैं और काम हो भी जाता है।
SR No.009593
Book TitleMata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages61
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size38 KB
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