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________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार पागलपन देखकर बच्चे भी पागल हो गए हैं। क्योंकि माता-पिता के आचार-विचार उपयुक्त नहीं है। पति-पत्नी भी, बच्चे बैठे हों, तब मर्यादाहीन चेष्टाएँ करते हैं, फिर बच्चे बिगड़ें नहीं तो और क्या होगा? बच्चों पर कैसा असर पड़ेगा? मर्यादा तो रखनी चाहिए न । यह अग्नि का कैसा प्रभाव है? छोटा बच्चा भी अग्नि का सम्मान रखता है न? माता-पिता के मन फ्रेक्चर हो गए हैं। मन विव्हल हो गए हैं। दूसरों को दुःखदायी हो ऐसी भाषा बोलते हैं। इससे बच्चे बिगड़ जाते हैं। पत्नी ऐसा बोलती है कि पति को दुःख हो और पति ऐसा बोलता है कि पत्नी को दुःख हो । हिन्दुस्तान के माता-पिता कैसे होने चाहिए? वे बच्चों को सिखाकर, इस प्रकार तैयार करें कि सभी संस्कार उन्हें पंद्रह साल की उम्र तक दे दें। प्रश्नकर्ता : अब यह जो संस्कार का स्तर है वह नीचा जाने लगा है। इसी की यह सब समस्या है। दादाश्री : नहीं, नहीं। संस्कार ही खत्म होने लगे है। इसमें अब दादा मिले इसलिए फिर से मूल संस्कार लायेंगे। सत्युग में थे, ऐसे संस्कार फिर से लायेंगे। इस हिन्दुस्तान का एक बच्चा सारे विश्व का बोझ उठा सके, इतनी शक्ति का धनी है। केवल उसे पुष्टि देने की ज़रूरत है। ये तो भक्षक निकले ! भक्षक यानी अपने सुख के लिए जो दूसरों को सभी तरह से लूट लें। जो अपना सुख त्याग कर बैठा है, वही दूसरों को समस्त सुख दे सकता है। लेकिन यहाँ तो सेठजी सारा दिन केवल लक्ष्मी के ही विचारों में रहते हैं। तब मुझे सेठजी से कहना पड़ता है कि 'सेठ, तुम लक्ष्मी के पीछे पड़े हो और यहाँ घर बिखर गया है!' लड़कियाँ मोटर लेकर एक तरफ जाती हैं, लड़के दूसरी तरफ और सेठानी कहीं और ही गई हो ! सेठ, तुम तो हर तरह से लुटे जा रहे हो! तब सेठ ने पूछा, 'मैं क्या करूं?' मैंने कहा, 'बात को समझो और किस प्रकार जीवन जीना है, यह समझो। केवल पैसों के पीछे मत पड़ो। शरीर का ध्यान रखो, नहीं तो हार्ट फेल हो जाएगा। शरीर का ध्यान, पैसे का ध्यान, लड़कियों के संस्कार का ध्यान, सभी कोने साफ़ करने के है। तुम एक कोना बुहारते रहते हो । ४ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार अब बंगले का एक कोना साफ़ करें और बाकी सब जगह कूड़ा पड़ा रहे तो कैसा लगे? सब कोने साफ़ करने हैं। इस तरह तो जीवन कैसे जी सकते हैं? इसलिए उनके साथ अच्छा बर्ताव करो, उच्च संस्कार दो। इन लड़कों को उच्च संस्कारी बनाओ। खुद तप करो, पर उन्हें संस्कारी बनाओ।' प्रश्नकर्ता: हम उन्हें सुधारने के प्रयत्न तो सभी करते हैं, फिर भी वे नहीं सुधरें तो फिर क्या आदर्श पिता को उसे प्रारब्ध मान कर छोड़ देना चाहिए? दादाश्री : नहीं, लेकिन प्रयत्न तो तुम अपनी तरह से करते हो न? तुम्हारे पास सर्टिफिकेट है? मुझे बताओ। प्रश्नकर्ता : हमारी बुद्धि के अनुसार प्रयत्न करते हैं । दादाश्री : तुम्हारी बुद्धि अर्थात्, एक मनुष्य खुद जज हो, खुद ही गुनहगार हो और वकील भी खुद हो, तो वह कैसा न्याय करेगा? बच्चा अपने संस्कार लेकर ही आता है। उसमें तुम्हें मदद कर के उन संस्कारों को रंग देने की ज़रूरत है। उसे छोड़ नहीं देना चाहिए कभी भी उनका ध्यान रखते रहना चाहिए। छोड़ दें तो फिर सब खत्म हो जाता है। प्रश्नकर्ता: हाँ, ऐसा करते हैं, पर आखिर में क्या उन्हें प्रारब्ध पर छोड़ देना चाहिए? दादाश्री : ना, नहीं छोड़ सकते। ऐसे छोड़ना पड़े तब मेरे पास लाना। मैं ऑपरेशन करके सुधार दूँगा। ऐसे छोड़ नहीं सकते, जोखिम है । एक लड़का बाप की मूँछें खींच रहा था, तो बाप खुश हो गया। कहने लगा, 'कैसा बेटा! देखो, मेरी मूँछें खींची!' लो, अब उसका कहा करें तो लड़का मूँछ पकड़े और बार-बार खींचे तब भी वह कुछ न बोले तो परिणाम क्या हो फिर ? और कुछ ना करें तो बच्चे को जरा चिमटी भर लें, चिमटी भरने से वह समझेगा कि यह गलत बात है। मैं जो कर
SR No.009593
Book TitleMata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages61
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size38 KB
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