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________________ मैं कौन हूँ ? भगवान महावीर कह गये थे कि 'अब चौबीसी बंद होती है, अब (भरत क्षेत्र में) तीर्थंकर नहीं होनेवाले, इसलिए महाविदेह क्षेत्र में जो तीर्थंकर हैं, उनको भजना । वहाँ पर वर्तमान तीर्थंकर हैं, उनकी भजना करना।' पर यह तो अभी लोगों के लक्ष्य में ही नहीं है। और इन चौबीस को ही तीर्थंकर कहते हैं, सब लोग ! ख्याल में तो सीमंधर स्वामी ही ! लोग मुझ से कहते हैं कि आप सीमंधर स्वामी की भजना क्यों करवाते हैं ? चौबीस तीर्थंकरों की क्यों नहीं करवाते ? मैंने कहा, चौबीस तीर्थंकरों का तो बोलते ही हैं पर हम रीति के अनुसार बोलते हैं। सीमंधर स्वामी का ज्यादा बोलते हैं। वे वर्तमान तीर्थंकर कहलाते हैं और यह 'नमो अरिहंताण' उन्हें ही पहुँचता है। नवकार मंत्र बोलते समय सीमंधर स्वामी ख्याल में रहने चाहिए, तभी आपका नवकार मंत्र शुद्ध हुआ कहलाये। ३३ ऋणानुबंध, भरत क्षेत्र का ! प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी का वर्णन कीजिए । दादाश्री : सीमंधर स्वामी की आयु अभी पौने दो लाख वर्ष की है। वे भी ऋषभदेव भगवान के जैसे हैं। ऋषभदेव भगवान सारे ब्रह्मांड के भगवान कहलाते हैं। इसी प्रकार ये भी पूरे ब्रह्मांड के भगवान हैं। वे हमारे यहाँ नहीं है पर दूसरी भूमि में, महाविदेह क्षेत्र में हैं कि जहाँ मनुष्य जा नहीं सकता। ज्ञानी ( को भगवान से अगर किसी प्रश्न का उत्तर पूछना हो तो) अपनी शक्ति वहाँ भेजते हैं, जो पूछकर आती है। वहाँ स्थूल देह से नहीं जा सकते, पर वहाँ जन्म होने पर जा सकते हैं। यदि यहाँ से वहाँ की भूमि के लिए लायक हो गया तो वहाँ जन्म भी होता है। हमारे यहाँ भरत क्षेत्र में तीर्थंकरों का जन्म होना फिलहाल बंद हो गया है, ढाई हजार साल से । तीर्थंकर यानी चरम, 'फुल मून' (पूर्ण चंद्र) । मैं कौन हूँ ? पर वहाँ महाविदेह क्षेत्र में सदा ही तीर्थंकर रहते हैं। सीमंधर स्वामी वहाँ पर आज भी जीवित हैं। हमारे जैसी ही देह है, सब कुछ है। ३४ (१२) 'अक्रम मार्ग' खुला ही है ! पीछे जानियों की वंशावली ! हम हमारे पीछे ज्ञानियों की वंशावली छोड़ जायेंगे। हमारे उत्तराधिकारी छोड़ जायेंगे और उसके बाद ज्ञानियों की लिंक चालू रहेगी। इसलिए सजीवन मूर्ति खोजना। उसके बगैर हल निकलनेवाला नहीं है। मैं तो कुछ लोगों को अपने हाथों सिद्धि प्रदान करने वाला हूँ। पीछे कोई चाहिए कि नहीं चाहिए ? पीछे लोगों को मार्ग तो चाहिए न ? जिसे जगत स्वीकारेगा, उसी का चलेगा ! प्रश्नकर्ता: आप कहते हैं कि मेरे पीछे चालीस-पचास हज़ार रोनेवाले होंगे मगर शिष्य एक भी नहीं होगा। यानी आप क्या कहना चाहते हैं ? दादाश्री : मेरा शिष्य कोई नहीं होगा। यह कोई गद्दी नहीं है। गद्दी हो तो वारिस हो न ! कोई रिश्तेदार के रूप में वारिस बनने आये ! यहाँ तो जो स्वीकार्य होगा, उसका चलेगा। जो सभी का शिष्य बनेगा, उसका काम होगा। यहाँ तो लोग जिसका स्वीकार करेंगे, उसका चलेगा। जो लघुतम होगा, उसको जगत स्वीकार करेगा । (१३) आत्मदृष्टि होने के पश्चात..... आत्मप्राप्ति के लक्षण ! 'ज्ञान' मिलने से पहले आप चन्दूभाई थे और अब ज्ञान लेने के बाद शुद्धात्मा हुए, तो अनुभव में कुछ फर्क लगता है ? प्रश्नकर्ता: हाँ जी ।
SR No.009591
Book TitleMai Kaun Hun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2005
Total Pages27
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size271 KB
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