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________________ मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ? दादाश्री : संत किसका नाम, कि जो बराई छडवाये और अच्छाई सिखाये। गलत करना छुड़वाये और अच्छा करना सिखाये, उसका नाम संत। प्रश्नकर्ता : अर्थात पापकर्म से बचाये वह संत ? दादाश्री : हाँ, पापकर्म से बचाये वह संत, पर पाप-पुण्य, दोनों से बचाये, उसका नाम ज्ञानी पुरुष। संत पुरुष सही राह बताये और ज्ञानी पुरुष मुक्ति दिलाये। संत तो पथिक कहलाते हैं। पथिक माने वह खुद चले और दूसरे पथिक से कहे, 'चलो, तुम मेरे साथ।' और ज्ञानी पुरुष तो आखिरी स्टेशन कहलायें, वहाँ तो अपना काम ही निकल जाये। सच्चा, बिलकुल सच्चा संत कौन ? जो ममता रहित हो। और जो दूसरे हैं, वे थोड़ी बहुत ममतावाले होते हैं। और सच्चा ज्ञानी कौन ? जिसे अहंकार और ममता दोनों नहीं होते। इसलिए संतों को ज्ञानी पुरुष नहीं कहा जा सकता। संतों को आत्मा का भान नहीं होता। वे संत भी जब कभी ज्ञानी पुरुष को मिलेंगे, तब उनका हल निकलेगा। संतों को भी इनकी आवश्यकता है। सब को यहाँ आना पड़े, छुटकारा ही नहीं न! प्रत्येक की इच्छा यही होती है। ___ ज्ञानी पुरुष दुनिया का अजूबा कहलाते हैं। ज्ञानी पुरुष प्रकट दिया कहलाते हैं। ज्ञानी पुरुष की पहचान ! प्रश्नकर्ता : ज्ञानी पुरुष को किस तरह पहचानें ? दादाश्री : कैसे पहचानेंगे? ज्ञानी पुरुष तो बिना कुछ किए ही पहचाने जायें ऐसे होते हैं। उनकी सुगंध ही, पहचानी जाये ऐसी होती है। उनका वातावरण कुछ और ही होता है। उनकी बानी भी कुछ और प्रकार की होती है। उनके शब्दों से पता चल जाये। अरे, उनकी आँखें देखते ही मालूम हो जाये। ज्ञानी के पास भारी विश्वसनीयता होती है, जबरदस्त विश्वसनीयता! और उनका हर शब्द शास्त्ररूप होता है, यदि समझ में आये तो। उनके वाणी-वर्तन और विनय मनोहर होते हैं, मन का हरण करनेवाले होते हैं। ऐसे बहुत सारे लक्षण होते हैं। ज्ञानी पुरुष में बुद्धि लेश मात्र नहीं होती! वे अबुध होते हैं। बुद्धि लेश मात्र नहीं हो ऐसे लोग कितने होंगे? कभी कभार किसी का जन्म होता है ऐसा, और तब लोगों का कल्याण हो जाता है। तब लाखों मनुष्य (संसार सागर) तैर कर पार निकल जाते हैं। ज्ञानी पुरुष बिना अहंकार के होते हैं, ज़रा सा भी अहंकार नहीं होता है। वैसे तो अहंकार रहित कोई मनुष्य इस संसार में होता ही नहीं। मात्र ज्ञानी पुरुष ही अहंकार रहित होते हैं। ज्ञानी पुरुष तो हजारों सालों में एकाध पैदा होते हैं। बाकी, संत, शास्त्रज्ञानी तो अनेकों होते हैं। हमारे यहाँ शास्त्र के ज्ञानी बहुत सारे हैं पर आत्मा के ज्ञानी नहीं हैं। जो आत्मा के ज्ञानी होंगे न, वे तो परम सुखी होंगे, उनको दुःख किंचित्मात्र नहीं होगा। इसलिए वहाँ पर अपना कल्याण हो जाये। जो खुद अपना कल्याण करके बैठे हों, वे ही हमारा कल्याण कर सकें। खुद पार उतरे हों, वे हमें तार सकते है। वर्ना जो खुद डूब रहा हो, वह कभी भी नहीं तारेगा। (१०) 'दादा भगवान' कौन ? _ 'मैं' और 'दादा भगवान', नहीं एक रे ! प्रश्नकर्ता : तो आप भगवान किस तरह कहलवाते हैं ? दादाश्री : मैं खुद भगवान नहीं हूँ। भगवान को, 'दादा भगवान' को तो मैं भी नमस्कार करता हूँ। मैं खुद तीन सौ छप्पन डिग्री पर हूँ और 'दादा भगवान' तीन सौ साठ डिग्री पर हैं। मेरी चार डिग्री कम है, इसलिए मैं 'दादा भगवान' को नमस्कार करता हूँ। प्रश्नकर्ता : वह किस लिए ?
SR No.009591
Book TitleMai Kaun Hun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2005
Total Pages27
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size271 KB
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