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________________ क्रोध क्रोध हैं। ऐसा हो तो वह क्षत्रिय गुण कहलायेगा । बाकी, सारा संसार कमजोर को मारता रहता है। घर जाकर मर्द औरत पर मर्दानगी दिखाता है। खूटेबँधी गाय को मारेंगे तो वह किस ओर जायेगी? और छोड़कर मारेंगे तो? भाग जायेगी, नहीं तो सामना करेगी। मनुष्य खुद की शक्ति हो तो भी सामनेवाले को नहीं सताता, अपने दुश्मन को भी नहीं सताता, उसका नाम बहादुरी है। अभी कोई आपके ऊपर क्रोध करता हो और आप उस पर क्रोध करें, तो वह कायरता नहीं कहलायेगी? अर्थात मेरा क्या कहना है कि ये क्रोध-मान-माया-लोभ, ये सब निर्बलताएं हैं। जो बलवान है, उसे क्रोध करने की जरूरत ही कहाँ रही? पर यह तो क्रोध का जो रुआब है, उस रुआब से सामनेवाले को वश में करने जाते हैं, पर जिसे क्रोध नहीं होता हो, उसके पास ओर कुछ होगा तो सही न? उसके पास 'शील' नाम का जो चारित्र्य है, उससे जानवर भी वश में आ जाते हैं। बाघ, शेर, दुश्मन, सभी वश में आ जाते है! क्रोधी वह अबला ही प्रश्नकर्ता : पर दादाजी, यदि कोई मनुष्य कभी हम पर उबल पड़े तब क्या करना? दादाश्री: उबल ही पड़ेगा न! उसके हाथ की बात थोडे ही है? उसके अंदर की मशीनरी पर उसका अंकुश नहीं है न! यह ज्यों-त्यों कर के अंदर की मशीनरी चलती रहती है। अपने अंकुश में होने पर तो मशीनरी गरम होने ही नहीं देगा न! यह ज़रा सा भी गरम हो जाना यानी गधा हो जाना, मनुष्य होकर गधा हो जाना! पर ऐसा कोई करेगा ही नहीं न! जहाँ अपना अंकुश नहीं है, वहाँ पर फिर क्या हो सकता है ? ऐसा है, इस संसार में किसी भी समय उत्तेजित होने का कोई कारण ही नहीं है। कोई कहेगा कि, "यह लड़का मेरा कहा नहीं मानता है।" तो भी वह उग्र होने का कारण नहीं है। वहाँ तुझे ठंडा रह कर काम लेना है। यह तो तू निर्बल है, इसलिए गरम हो जाता है और गरम हो जाना तो भयंकर निर्बलता कहलाती है। इसलिए अधिकाधिक निर्बलता होने पर तो गरम होता है न! कमजोर को गुस्सा बहुत आता है। इसलिए जो गरम हो जाता है, उस पर तो दया आनी चाहिए कि इस बेचारे का क्रोध पर कुछ भी कंट्रोल नहीं है। जिसका अपना स्वभाव भी कंट्रोल में नहीं है, उस पर दया आनी चाहिए। गरम होना यानी क्या ? कि पहले खुद जलना और बाद में सामनेवाले को जला देना। यह दियासलाई दागी यानी खुद भड़-भड़ सुलगना और फिर सामनेवाले को जला डालना। अर्थात गरम होना अपने वश में होता तो कोई गरम होता ही नहीं। जलन किसे अच्छी लगेगी? कोई ऐसा कहे कि, "संसार में कभी कभी क्रोध करने की ज़रूरत होती है।" तब मैं कहूँगा कि, "नहीं, ऐसा कोई कारण नहीं है कि जहाँ क्रोध करना जरूरी हो।" क्रोध निर्बलता है, इसलिए हो जाता है। भगवान ने इसलिए क्रोधी को 'अबला' कहा है। पुरुष तो कौन कहलाये? क्रोधमान-माया-लोभ आदि निर्बलताएँ जिसमें नहीं होतीं, उन्हें भगवान ने 'पुरुष' कहा है। अर्थात ये जो पुरुष नज़र आते हो, उनको 'अबला' कहा हैं, लेकिन उन्हें शर्म नहीं आती न? उतने अच्छे है, वर्ना 'अबला' कहने पर शरमा जाते न! लेकिन इनको कोई समझ ही नहीं है। समझ कितनी है? नहाने का पानी रखो तो नहा लें। खाना, नहाना, सोना, इन सबकी समझ हैं, पर दूसरी कुछ समझ नहीं है। मनुष्यत्व की जो विशेष समझ कही गई है, कि यह 'सज्जन पुरुष' है, ऐसी सज्जनता लोगों को नज़र आये, उसकी समझ नहीं है। क्रोध-मान-माया-लोभ यह तो खुली कमजोरी हैं और बहुत क्रोध आने पर आपने हाथ-पैर काँपते नहीं देखे? प्रश्रकर्ता : शरीर भी मना करता है कि तुझे क्रोध करने जैसा नहीं है। दादाश्री : हाँ, शरीर भी मना करता है कि यह क्रोध हमें शोभा
SR No.009590
Book TitleKrodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size268 KB
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