SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जगत कर्ता कौन ? Puzzle some at atafadhal दादाश्री : इस जगत के क्रिएटर ( रचयिता) को कभी देखा था? प्रश्नकर्ता: फोटो में देखे हैं। दादाश्री : इस जगत के क्रिएटर को? क्रिएटर का फोटो नहीं होता है। फोटो तो, कोई आदमी इधर है, जिसको सब लोग बोलें कि 'ये भगवान हो गया', तो उसका फोटो होता है। क्रिएटर तो बड़ी चीज़ है। प्रश्नकर्ता : तो हमें यह समझ लेना कि यह सब मिथ्या है? दादाश्री : मिथ्या तो नहीं है। मिथ्या तो किसे बोला जाता है। कि इधर जल नहीं है, मगर जल दिखता है। ऐसा ये जगत मिथ्या नहीं है। जगत भी करेक्ट (सच) है और आत्मा भी करेक्ट है। The World is correct by relative viewpoint & Atma is correct by real viewpoint आपको समझ में आया न? प्रश्नकर्ता: रिअल (Real) और रिलेटिव ( relative) का क्या भेद है? दादाश्री : रिअल है, उसको किसी चीज़ का आधार ही नहीं चाहिए। वो अपने खुद के आधार से रहता है। दूसरे के आधार से है, वो सब रिलेटिव है। एक दूसरे के आधार से रिलेटिव रहा है। AII these relatives are temporary adjustments & real is permanent. जगत कर्ता कौन ? प्रश्नकर्ता : जब तक आत्मा है, तब तक मालूम होता है कि आदमी जिंदा है। मगर आदमी का अंत ( end) तो है भी नहीं न, आखिर तक ? २ दादाश्री : आदमी का end नहीं? तो ये गधों का, कुत्तों का सबका end है? प्रश्नकर्ता: किसी का अंत नहीं होता है। दादाश्री : तो ये पज़ल, पजल ही रहेगा? पज़ल सोल्व नहीं हो पाएगा? अगर किसी का अंत नहीं तो ये पज़ल सोल्व नहीं हो सकता । आपको कभी पज़ल खड़ा नहीं हुआ? प्रश्नकर्ता: हाँ, जाता है। दादाश्री : तो इस पज़ल का अंत कभी नहीं आएगा? देखो, बात ऐसी है, पज़ल शब्द ही ऐसा है कि वो स्वयं समाधान लेकर ही आया है। नहीं तो पज़ल शब्द ही नहीं रहेगा। पहले सोल्युशन (समाधान) होता है, तो ही पज़ल नाम पड़ेगा। इसमें आपको समझ में नहीं आती ऐसी कोई चीज़ है? आपको समझने का विचार है मगर समझ में नहीं आती तो ऐसी सब बातें 'ज्ञानी पुरुष' को पूछ लेना। 'ज्ञानी पुरुष' सब कुछ जानते हैं, जगत की सब चीजें वो जानते हैं। प्रश्नकर्ता : ये जगत जिसने बनाया? वो साकार है या निराकार है? दादाश्री : देखो न, जिसने जगत (world) बनाया है, वो साकार भी नहीं है और निराकार भी नहीं है। 'The world is the puzzle itself'. प्रश्नकर्ता: तो ये ईश्वर ही कराता है? दादाश्री : ईश्वर नहीं कराता है। ईश्वर इसमें हाथ ही नहीं
SR No.009587
Book TitleJagat Karta Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages27
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size244 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy