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________________ ज्ञानी पुरुष की पहचान प्रश्नकर्ता: हमको जानकारी नहीं है, लेकिन आप बोल रहे हैं तो में जान लेता हूँ कि ये भी ओरिजिनल टेप है। दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं, वो ओरिजिनल टेपरेकर्ड ही है। ये आपके अंदर है और सबके अंदर है लेकिन ईगोइजम से बोलता है कि मैंने बोला । हमारा ईगोइजम खतम हो गया तो हमने देख लिया कि ये टेपरेकर्ड बोलती है। हम खाली देखते है कि ये टेपरेकर्ड है, क्या बोलती है। कई लोग अच्छा काम करते है, तब मैंने कितना अच्छा किया', ऐसा ईगोइजम करते है। और बूरी बात निकल जाये तो क्या बोलते है? 'मी काय करू ( में क्या करूं)' ऐसा बोलता है न! वो आप बोलते ही नहीं। मगर व्यवहार में आपको ऐसा बोलना चाहिये कि 'मैं बोलता हूँ।' वहाँ ऐसा नहीं बोलना कि 'ये टेपरेकर्ड है, मैं नहीं बोलता हूँ।' किसी को हमारा हाथ लग गया और पुलीसवाला बोले कि किसने मारा? तो हम बोलेंगे कि 'हमने मार दिया।' व्यवहार में ऐसा हम नहीं बोलेंगे कि 'हम कर्ता नहीं है।' व्यवहार में तो 'हमने ही किया है', ऐसा बोलेंगे । लेकिन ये शरीर के मालिक हम नहीं है और कोई चीज के कर्ता हम नहीं है। कोई बड़ा व्यक्ति भी बोलता है कि 'मेरी आत्मा बोलती है' मगर आत्मा कभी बोलती ही नहीं। आत्मा की आवाज ही नहीं है, वो सब अनात्मा की आवाज है। मोटर का होर्न रहता है न? वो होर्न से आवाज आती है। होर्न दबाया तो अंदर जो परमाणु थे, वो परमाणु स्पीड से बाहर निकलते है और उसके घर्षण से आवाज हो गयी। भगवान 'बोलेंगे' तो उनका भगवान पद ही चले जायेगा। फिर तो लोग उनको 'रेडियो' बोलेंगे। मगर भगवान नहीं बोलते है। ये ओरिजिनल टेपरेकर्ड है। भगवान की हाजरी से ही रेकर्ड बोलती है। भगवान की हाजरी चली जाये फिर टेपरेकर्ड नहीं बोलेगी। ये मशीन में भगवान की हाजरी नहीं है। वह तो ऐसे ही भगवान की हाजरी के बिना बोलती है। 'ज्ञानी पुरुष' कौन? 'दादा भगवान' कौन? प्रश्नकर्ता: आपको जो 'ज्ञान प्राप्ति' हुई है, वो ज्ञान किसी ने दिया ४ ज्ञानी पुरुष की पहचान होगा, स्वयं तो नहीं हुआ न? ! दादाश्री : हमको किसी ने नहीं दिया है। हमको तो ऐसे ही हो गया था। यह 'ज्ञान' किसी के पास से नहीं मिला है और यह 'ज्ञान' किसी के पास है भी नहीं । कलियुग में ये 'ज्ञान' कभी होता ही नहीं। ये हमारे अंदर दिया प्रगट हो गया है तो एक दिये से दूसरे दिये हो सकते है। मगर पहेला दिया (जो हमारे भीतर प्रगट हुआ) हो सकता ही नहीं, ये तो but natural हो गया है। प्रश्नकर्ता: 'ज्ञानी पुरुष' की पहचान करनी भी मुश्किल होती है। कभी कभी । दादाश्री : हाँ, 'ज्ञानी' की पहचान जल्दी नहीं हो सकती। वो सब साधुपुरुष है, वह ज्ञानी होते है लेकिन वे शास्त्रों के ज्ञानी है। उससे मोक्ष नहीं मिलता। मोक्ष तो, सच्चे 'ज्ञानी पुरुष' मिल जाये, वो मोक्ष का दान देते है ! हम तो कोट-टोपी पहनते है, तो कोई पहचान नहीं सकेगा बाहर । जिसका पुण्य हो उसको मिल जायेंगे। ऐसे ड्रेस में कौन समझेगा कि ये 'ज्ञानी' है? अनजान आदमी कैसे जान सकता है कि 'ज्ञानी पुरुष' क्या चीज है? वो तो जब अनुभव में आये तब पता चलता है। गाडी में बाहर कोई आदमी हमको मिल जाये तो हमको पूछेगा कि 'आप कौन है?' तो हम बोलेंगे कि 'यह गाडी का पेसेन्जर हूँ'। इनकी द्रष्टि में जो दिखता है, वैसा हम बोलेंगे। 'ज्ञानी पुरुष' किसको बोला जाता है? जो एक मिनिट भी ये देह में नहीं रहते है, ये वाणी में नहीं रहते है और ये माईन्ड ( मन ) में नहीं रहते है, होम डीपार्टमेन्ट में ही रहते है। आप तो फोरेन डीपार्टमेन्ट में ही रहते हो और फोरेन को ही होम मानते हो। फोरेन को होम मानने में क्या फायदा मिलेगा? कभी न कभी तो होम को होम मानना ही पडेगा न! होम को होम मानेगा तो सच्ची समाधि हो जायेगी। जो सनातन सुख की इच्छा है लोगों की, वो तो होम डीपार्टमेन्ट में आ जायेंगे, तब उन्हें सनातन सुख मिल जायेगा। 'ज्ञानी' तो निरंतर 'ज्ञान' में ही रहते है।
SR No.009585
Book TitleGyani Purush Ki Pahechaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size325 KB
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