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________________ उपाय' उनका होता है, क्योंकि वे खुद 'उपेय भाव' में रहते है, इसलिए उन्हें उपाय करने का नहीं होता। और जब उपाय करने का शेष नहीं रहता, तब 'उपेय' प्राप्त होता है। 'ज्ञानी पुरुष' सकाम कर्म भी नहीं करते ओर निष्काम कर्म भी नहीं करते। दोनों में बंधन ही है। जहाँ कुछ भी करने का' भाव है, वहाँ बंधन ही है। जगत जहाँ प्रवृत, ज्ञानी वहाँ निवृत। ज्ञानी जहाँ प्रवृत, जगत वहाँ निवृत। जगत की प्रवृति प्रकृति के आधीन है। 'डिस्चार्ज' में 'ज्ञानी पुरुष' हस्तक्षेप नहीं करते। 'डिस्चार्ज' में हस्तक्षेप करने से कर्म 'चार्ज' होते है। 'ज्ञानी पुरुष' के प्रत्येक कर्म दिव्य कर्म होते है। जो भीतर से निरंतर जागृत है, अपने प्रत्येक कर्म को क्षय करके आगे बढ़ चूके है, जो क्षायक स्थिति में है, उनके पास कोई बुद्धि चलानेवाला, उनके कर्म का दोष देखनेवाला मारा जायेगा। 'ज्ञानी पुरुष' तो एक पल भी परपरिणति में नहीं ठहरते। नाटक की तरह 'रोल' अदा करके आगे बढ जाते है। जो स्वयं अबुध है, वहाँ बुद्धि क्या चलाने की ! 'ज्ञानी पुरुष' निर्विकल्प, संपूर्ण निर्मोही और निग्रंथ होते है। एक पल भी उनका उपयोग किसी में अटकता नहीं, निरंतर शुद्ध उपयोग ही रहता है। 'ज्ञानी पुरुष' में एक भी मनोग्रंथि नहीं होती। उनको खद का मन वश में रहता है। 'ज्ञानी पुरुष' विश्व में एकमेव मन के डॉक्टर होते है, वे मन के सारे रोग मिटा देते है। नया रोग नहीं होने देते, इतना ही नहीं, वह मन और आत्मा को भिन्न करा सकते है। तत् पश्चात् मन संपूर्ण काबु में रहने लगता है। 'ज्ञानी पुरुष' में बुद्धि का अंश भी नहीं होता, उनमें बुद्धि संपूर्ण प्रकाशमान हो चुकी होती है, लेकिन ज्ञान प्रकाश प्रगट होने से बुद्धि का प्रकाश एक कोने में ही पड़ा रहता है। सूर्य नारायण के आगमन से दिये के प्रकाश की कैसी हालत होती है?! आत्मानुभवी ज्ञानी पुरुष अबुध होते है, वे विश्व में अद्वितिय होते है। शास्त्रज्ञानी बुद्धि से पर नहीं होते। एक ओर अबुध दशा आती है तो दूसरी ओर सर्वज्ञ दशा आती है। मगर यह 21 'कारण सर्वज्ञ' दशा है, 'कार्य सर्वज्ञ' दशा इस काल में इस क्षेत्र में नहीं हो सकती ऐसा शास्त्रप्रमाण है। 'ज्ञानी पुरुष' में बुद्धि ही नहीं, फिर भी जरा सी है। क्योंकि संपूर्ण ३६० डिग्री की बुद्धि खत्म हो जाती तो आज यह 'ए.एम.पटेल' भी 'महावीर' कहे जाते। लेकिन चार डिग्री बाकी है, इसलिए उतना अंतर रह गया। __'ज्ञानी पुरुष' का चित्त निरंतर आत्मा में ही रहता है। जैसा फणीधर मुरली के सामने डोलता है, फिर एक पल भी व्यग्रता कैसे हो सकती है? और इस संसार की कोई भी चीज उनके चित्त को आकर्षित नहीं कर सकती, ऐसी महामुक्त दशा में 'ज्ञानी पुरुष' विचरते है। 'ज्ञानी पुरुष' अहंकार रहित होते है. विश्व में उनके सिवा अन्य कोई निअहंकारी नहीं हो सकता। 'ज्ञानी पुरुष' में अहंकार का अस्तित्व ही नहीं होता। इसलिए दुःख परिणाम का उन्हें वेदन नहीं होता। यह बोल रहे है, वह कौन बोल रहा है? 'दादा भगवान'? 'ज्ञानी पुरुष'? नहीं। वह तो 'टेपरेकर्ड' बोल रही है। 'ओरिजिनल टेपरेकर्ड' वो ही वक्ता है, 'ज्ञानी पुरुष' तो उसके ज्ञाता-द्रष्टा है और सब लोग श्रोता है। 'ज्ञानी पुरुष' तो सिर्फ देख' रहे है कि यह 'टेपरेकर्ड' कैसी बजती है, उसमें कितनी गलतियाँ है। जीव मात्र बोलते है, वह 'टेपरेकर्ड' ही है, फर्क सिर्फ इतना है कि सब लोग अहंकार करते है कि मैं बोलता हूँ और 'ज्ञानी पुरुष' में अहंकार नहीं होता। इसलिए वे जैसा है वैसा स्पष्ट कह देते है कि यह 'टेपरेकर्ड' बोलती है। केवलज्ञान में 'वे' चार डिग्री से नापास हुए है, वरना वे यहाँ सब लोगों के बीच नहीं होते, वे कबके मोक्ष में जा पहुँचे होते। यह तो नापास हुए तो कलिकाल में पुण्यात्माओं के उद्धार के लिए काम आ गये। चार डिग्री कम है, इसलिए स्थूल और सूक्ष्म दोष तो संपूर्ण नष्ट हो गये है. सिर्फ सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम दोष उनमें रहे है, जो अन्य किसी को किंचित् अड़चन नहीं करते, वह तो उनके 'केवल ज्ञान' प्रगट होने में आवरण करता है, जिसे वे भली भांति जानते है। सर्व दोष जिनके क्षय हुए है ऐसी 22
SR No.009585
Book TitleGyani Purush Ki Pahechaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size325 KB
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