SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दान ___५७ दान दिया था, वह इस अवतार में लेते हैं। क्या सभी में अक्ल नहीं है? तब कहे, 'अक्ल से नहीं दिए, ऊपर से ही है! आपने बैन्क में ओवरड्राफ्ट क्रेडिट करवाया होगा तो आपके हाथ में चेक आएगा।' इसलिए बुद्धि अच्छी हो न तो फिर से जोईन्ट हो जाता है सब। लेते हुए भी कितनी बारीक समझ यहाँ सिर्फ जो पुस्तकें छपती हैं वही और इतना विश्वास जरूर है कि इन पुस्तकों के पैसे आ मिलेंगे, अपने आप ही। उसके लिए निमित्त हैं पीछे । वे सब आ मिलते हैं। उन्हें कुछ कहना या भीख माँगनी पड़ती नहीं। किसी के पास से माँगे तो उसे दु:ख होगा। तब कहेंगे इतने सारे?'इतने सारे' कहा कि उसके साथ उसे दु:ख होता है। ऐसा हमें निश्चित हो गया न? और किसी को दुःख हुआ मतलब हमारा धर्म रहा नहीं। इसलिए थोड़ा-सा भी अपने से माँगा नहीं जा सकता। वह खुद राज़ी-खुशी से कहता हो तो अपने से लिए जाएँ। वह खुद ज्ञानदान को समझे तो ही ले सकते हैं। इसलिए जिसनेजिसने दिए हैं न, वे खुद ज्ञानदान को समझकर देते हैं। अपने आप ही देते हैं। अभी तक माँगा नहीं है। यहाँ पुस्तक छपवाई हो न, तो हमारे पैसे शोभा देंगे और पुण्य हो तभी मेल बैठता है। पैसे अच्छे हों तो ही छपवा पाएंगे। नहीं तो छपवाई जाती नहीं है और वह मेल खाता नहीं न! स्पर्धा नहीं होती यहाँ और स्पर्धा में वह बोलने की ज़रूरत नहीं है। यह स्पर्धा के लाईनवाला नहीं कि यहाँ बोली लगाई कि ये इन्होंने घी इतना बोला और ये इतना बोले ! वीतरागों के वहाँ ऐसी स्पर्धा होती नहीं। पर यह तो दूषमकाल में पैठ गया है ऐसा। दूषमकाल के लक्षण सारे। स्पर्धा करना, वह तो भयंकर रोग है। मनुष्य होड़ लगाते हैं। अपने यहाँ कोई ऐसा लक्षण नहीं होता। यहाँ पैसों की याचना नहीं होती। दादाजी के हृदय की बात इतने सारे खत आते हैं कि हम किस तरह सँभाले यही मुश्किल है। इसलिए अब अन्य लोग छपवा लेंगे। अपन तो यह फ्री ऑफ कोस्ट देते हैं, पहली बार, फर्स्ट टाईम। बाद में लोग अपने आप छपवा लेंगे। यह तो अपना यह ज्ञान खड़ा हुआ हैं न वह लुप्त न हो जाए, इसलिए छपवा देना है। और कोई न कोई मिल आता है, अपने आप ही हाँ करता है। हमारे यहाँ अनिवार्य, जैसी वस्तु नहीं है। हमारे यहाँ 'लॉ' नहीं है। 'नो लॉ वही लॉ।' प्रिय को छोड़ दो तो समाधि समाधि कब आएगी? संसार में जिस पर अतिशय स्नेह है, उसे खुला छोड़ देने में आए तब। संसार में किस पर अतिशय प्रेम है? लक्ष्मीजी के ऊपर । इसलिए उसे खुला छोड़ दो। तब कहतें हैं कि छोड़ देते हैं, तब अधिक और अधिक आने लगी। तब मैंने कहा कि 'अधिक आए तो अधिक जाने देना।' प्रिय वस्तु को छोड़ दें तो समाधि होती है। ऐसा है मोक्षमार्ग ये भाई लुटा देते थे। फिर मुझे पूछ रहे थे कि क्या मोक्ष का मार्ग है? मैंने कहा, 'यही मोक्ष का मार्ग है, इससे अलग मोक्ष का मार्ग कैसा होता है फिर? अपने पास हो उसे लुटा देना मोक्ष के लिए। उसका नाम मोक्षमार्ग। आख़िर तो आग में झोंकना है न? आख़िर में तो आग देते हैं. किसी को भी दिए बगैर रहना पड़ता है? आपको कैसा लगता है? जो पास है, उसे लुटा देना और वह भी अच्छे कामों के लिए, मोक्ष के लिए या मोक्षार्थियों, जिज्ञासुओं के लिए अथवा ज्ञानदान के लिए लुटा देना, वह मोक्ष का ही मार्ग। - जय सच्चिदानंद
SR No.009583
Book TitleDaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size322 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy