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________________ दान __दान 'मीसा के' (दाणचोरी के)। वह धन पुण्य बाँधे प्रश्नकर्ता : दो नंबर के रुपयों का दान दे, तो वह नहीं चलेगा? दादाश्री : दो नंबर का दान नहीं चलेगा। पर फिर भी कोई मनुष्य भूखों मर रहा हो और दो नंबर का दान दें तो उसे खाने के लिए चलेगा न ! दो नंबर में अमक नियम से परेशानी आती है, पर दूसरी तरह हर्ज नहीं होता। वह धन होटलवाले को दें तो वह लेगा कि नहीं लेगा? प्रश्नकर्ता : ले लेगा। दादाश्री : हाँ, वह व्यवहार शुरू ही हो जाता है। प्रश्नकर्ता : धर्म में दो नंबर का पैसा है, वह खर्च होता है अभी के जमाने में, तो उससे लोगों को पुण्योपार्जन होता है क्या? सरकारी टेक्स जो है, वह लोगों को भारी पड़ जाता है कि आप हमारी धारणा से अधिक लगाते हैं, इसलिए ये लोग छिपाते हैं। प्रश्नकर्ता : कुछ प्राप्त करने की अपेक्षा से जो दान करते हैं, उसकी भी शास्त्रों में मनाही नहीं है? उसकी निंदा नहीं की है? दादाश्री : वह अपेक्षा न रखें तो उत्तम है। अपेक्षा रखते हैं, वह दान निर्मूल हो गया, सत्वहीन हो गया कहलाता है। मैं तो कहता हूँ कि पाँच ही रुपये दो पर अपेक्षा बिना दो। वह है केमोफ्लेज जैसा प्रश्नकर्ता : दो नंबर के जो पैसे हैं, वे जहाँ जाएँ, वहाँ गड़बड़ होती है या नहीं? दादाश्री: पूरी हैल्प नहीं करते। हमारे यहाँ भी आते हैं, पर वे कितने? दस-पंद्रह प्रतिशत, पर अधिक नहीं आते। प्रश्नकर्ता : धर्म में हैल्प नहीं करते? जहाँ जाएँ वहाँ हैल्प नहीं होती उतनी? दादाश्री : हैल्प नहीं करते। वैसे दिखने में हैल्प करते हैं, पर फिर अस्त होते देर नहीं लगती। वे सब वॉर क्वॉलिटी के स्ट्रक्चर । वॉर क्वॉलिटी के स्ट्रक्चर बँधे सभी ! आपने देखे हैं न! वे सभी केमोफ्लेज (स्वांग) हैं। मन में क्या खुश होना केमफ्लेज से? श्रेष्ठी-शेट्टी-सेठ-शठ पहले के काल में, उस वक्त दानवीर होते थे। दानवीर तो मनवचन-काया की एकता हो, तब दानवीर पैदा होते हैं और उन्हें भगवान ने श्रेष्ठी कहा था। उस श्रेष्ठी को अभी मद्रास में शेट्टी कहते हैं। अपभ्रंश होतेहोते श्रेष्ठी में से 'शेट्टी' हो गया है वहाँ पर । वह हमारे यहाँ अपभ्रंश होते दादाश्री : अवश्य होता है न! उसने त्याग किया न उतना! अपने पास आए हुए का त्याग किया न ! पर उसमें हेतु के अनुसार फिर वह पुण्य ऐसा हो जाता है हेतुवाला! ये पैसे दिए, वह एक ही वस्तु नहीं देखी जाती। पैसों का त्याग किया वह निर्विवाद है। बाकी पैसा कहाँ से आया? हेतु क्या? यह सभी प्लस-माइनस होते-होते जो बाकी रहेगा वह उसका। उसका हेतु क्या है कि सरकार ले जाएगी, उसके बजाय इसमें डाल दो न! निरपेक्ष लूटाओ प्रश्नकर्ता : ऑन के पैसे भले ही खर्च होते हों, फिर भी धर्म की ध्वजा लग जाती है कि धर्म के नाम पर खर्चे । दादाश्री : हाँ, पर धर्म के नाम पर खर्चे तो अच्छा है। पर ऑन के नाम से करते हैं। क्योंकि 'ऑन' बड़ा गुनाह नहीं है। 'ऑन' यानी क्या कि
SR No.009583
Book TitleDaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size322 KB
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