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________________ दान २८ दान कल्याण हो जाए, परम कल्याण हो जाए, आत्यंतिक कल्याण हो जाए। पर ऐसी शक्ति नहीं होती न! ऐसे पुण्य नहीं होते! भगवान के पास रखे न, वह सब निष्काम नहीं, सकाम है। हे भगवान, बेटे के घर एक बेटा ! मेरा बेटा पास हो जाए। घर पर बुड्ढा बाप है, उसे पक्षाघात हुआ है, वह मिट जाए। उसके लिए 'दो सौ और एक' रखता है। अब यहाँ तो कौन रखे? हमारा कोई ऐसा कारखाना है? और यहाँ ले भी कौन जो रखे? वह भी हिंसा ही मंदिरों में या गरीबों में प्रश्नकर्ता : हम मंदिर में गए थे न, वहाँ लोग करोड़ों रुपये पत्थरों के पीछे खर्च करते हैं। और भगवान ने कहा है कि ये जीते-जागते अंतर्यामी जो प्रत्येक जीव मात्र में विराजमान हैं। और जीवित लोगों को धमकाते हैं। उन लोगों को तड़पाते हैं और यहाँ पत्थर की मूर्तियों के पीछे करोड़ों रुपये खर्च करते हैं ऐसा क्यों? दादाश्री : हाँ, मगर लोगों को तड़पाते हैं, वह तो उनकी नासमझी की वजह से तड़पाते हैं बेचारों को! क्रोध-मान-माया-लोभ की निर्बलता के कारण तड़पाते है न! ऐसा है न. ये पैसे कमाने जो निकलते हैं. अब ठीक तरह से घर चले ऐसा होता है फिर भी पैसे कमाने निकलते हैं। तब हम नहीं समझें कि ये अपने क्वोटा के उपरांत अधिक क्वोटा लेने को घूम रहे हैं? जगत् में तो क्वोटा सभी का समान है। पर यह लोभी है जो अधिक क्वोटा ले जाता है। इसलिए उन अमुक लोगों के हिस्से में आता ही नहीं। अब वह भी यों ही गप्प से नहीं मिलता, वह पुण्य से मिलता है। तब पुण्य अधिक किया, तो हमारे पास धन आया, उस धन को हम खर्च कर देते हैं वापिस । हम जानें कि यह तो जमा होने लगा। खर्च कर दिया तो डिडक्शन (कम) हो सकेगा न? पुण्य जमा तो हो ही जाता है, पर डिडक्शन करने की रीति तो जाननी चाहिए न? अर्थात् लोग मंदिर आदि बनवाते हैं, ठीक करते हैं। उन्हें चाबी चाहिए। उन्हें दर्शन कहाँ करने हैं? वे जहाँ दर्शन करने जाएँ, वहाँ उन्हें शरम नहीं आए ऐसा चाहते हैं। जीवितों के साथ उन्हें शरम आती है और मूर्ति के पास तो आप कहो वैसे नाचता भी है। नाचता-कूदता है अकेला! पर जीवित के साथ उसे शरम आती है। ये (मूर्तियाँ) जीवित नहीं हैं ना और जीवित के पास नहीं कुछ हो पाता। और यदि जीवितों के पास किया तो उसका प्रश्नकर्ता : व्यापारी मुनाफाखोरी करे, कोई उद्योगपति अथवा व्यापारी मेहनत की तुलना में कम मेहनताना दे अथवा बिना मेहनत की कोई कमाई हो, तो वह हिंसाखोरी कहलाती है? दादाश्री : वह सारी हिंसाखोरी ही है। प्रश्नकर्ता : अब वह फोकट की कमाई करके वह धन धर्म में खर्च करे तो वह किस प्रकार की हिंसा कहलाती है? दादाश्री : जितना धर्मकार्य में खर्च किया, जितना त्याग कर गया, उतना कम दोष लगा। जितना कमाया था, लाख रुपये कमाया था, अब उस अस्सी हजार का दवाखाना बनवाया तो उतने रुपयों की जिम्मेवारी उसकी नहीं रही। बीस हजार की ही जिम्मेवारी रही। इसलिए वह अच्छा है, गलत नहीं है। प्रश्नकर्ता : लोग लक्ष्मी जमा करके रखते हैं, वह हिंसा कहलाएगी या नहीं? दादाश्री : हिंसा ही कहलाएगी। जमा करना वह हिंसा है। दूसरे लोगों के काम लगता नहीं न!
SR No.009583
Book TitleDaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size322 KB
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