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________________ दान दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं कह सकते। ऐसा करके भी ज्ञानदान में खर्च करते हैं न ! यहाँ से ऐसे चाहे जो करके आया, पर यहाँ ज्ञानदान में खर्च करते हैं। वह उत्तम है, ऐसा भगवान ने कहा है। ज्ञानी ही दें, 'यह' दान तरह दान हो, तो सबसे अच्छा। वह किस तरह दी जाए? प्रश्नकर्ता : इसलिए दानों में लक्ष्मी का सीधा वर्णन नहीं है। दादाश्री : हाँ, सीधे देनी भी नहीं चाहिए। दो इस तरह कि ज्ञानदान के रूप में अर्थात् पुस्तकें छपवाकर दो या फिर आहार खिलाने के लिए तैयार करके दो। सीधे लक्ष्मी देने का कहीं भी कहा नहीं है। इसलिए श्रेष्ठ दान अभयदान, दूसरे नंबर पर ज्ञानदान । अभयदान की भगवान ने भी प्रशंसा की है। पहला, कोई भी तुझसे भयभीत नहीं हो, ऐसा अभयदान दे। दूसरा ज्ञानदान, तीसरा औषधदान और चौथा आहारदान। स्वर्ण दान ज्ञानदान से भी श्रेष्ठ अभयदान! मगर लोग अभयदान दे नहीं सकते न! वह ज्ञानी अकेले ही अभयदान देते हैं। ज्ञानी और ज्ञानी का परिवार होता है, वे अभयदान देते हैं। ज्ञानी के फॉलोअर्स (अनुयायी) होते हैं, वे अभयदान देते हैं। किसी को भय लगे नहीं उस प्रकार रहते हैं। सामनेवाला भय रहित रहे, उस प्रकार बरतते हैं। कुत्ता भी भडके नहीं इस प्रकार उनका वर्तन होता है। क्योंकि किसी को भी दुःख दिया तो खुद के भीतर पहुँचा। सामनेवाले को दुःख दिया कि खुद के भीतर पहुँचा । इसलिए हमसे किसी भी जीव को किंचित् मात्र भय नहीं हो ऐसे रहना। प्रश्नकर्ता : अपने धर्म में वर्णन है कि पहले तो स्वर्ण दान देते थे, वह भी लक्ष्मी ही कहलाता है न? दादाश्री : हाँ, वह स्वर्णमुद्रा का दान था न, वह तो अमुक प्रकार के लोगों को ही दिया जाता था। वह सभी लोगों को नहीं दिया जाता था। स्वर्ण दान तो, अमुक श्रमण ब्राह्मणों को, उन सबको जिनकी बेटी की शादी अटकी हो। दूसरा, संसार चलाने के लिए वे सभी को देते थे। बाकी अन्य सबको स्वर्ण दान नहीं दिया जाता था। व्यवहार में रहे हों, श्रमण हों, उन्हें ही दिया जाना चाहिए। श्रमण यानी वे किसी से माँग नहीं सकते थे। उन दिनों बहुत अच्छे रास्ते धन खर्च होता था। यह तो अब ठीक है। भगवान के मंदिर बनते हैं न, वे भी 'ऑन' के पैसों से बनते हैं। इस युग का असर है न! 'लक्ष्मी' तीनों में आती है प्रश्नकर्ता : तो क्या लक्ष्मीदान का स्थान ही नहीं है? दादाश्री : लक्ष्मीदान, वह ज्ञानदान में आ गया। अभी आप पुस्तकें छपवाओ न, तो लक्ष्मी उसमें आ गई, वह ज्ञानदान। प्रश्नकर्ता : लक्ष्मी के द्वारा ही सब होता है न? अन्नदान भी लक्ष्मी द्वारा ही दिया जाता है न? ज्ञानी की दृष्टि से... प्रश्नकर्ता : विद्यादान, धनदान, इन सभी दानों में आपकी दृष्टि से कौन-सा दान श्रेष्ठ है? कई बार इसमें द्विधा उत्पन्न होती है। दादाश्री : विद्यादान उत्तम माना जाता है। लक्ष्मी हो उसे विद्यादान, ज्ञानदान में लक्ष्मी देनी चाहिए। ज्ञानदान यानी पुस्तकें छपवाना या दूसरातीसरा कुछ करना। ज्ञान का प्रसार किस तरह हो? उसके लिए ही पैसे खर्च दादाश्री : औषध देनी हो तो भी हम सौ रुपये का औषध लाकर उसे दें तब न? मतलब लक्ष्मी तो सभी में खर्च करनी ही है, पर लक्ष्मी का इस
SR No.009583
Book TitleDaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size322 KB
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