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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य भ्रांति चली जाए तो कुछ है ही नहीं! प्रश्नकर्ता : आकर्षण का प्रतिक्रमण करना पड़ता है? दादाश्री : हाँ, ज़रूर! आकर्षण-विकर्षण इस शरीर को होता हो तो हमें 'चंदुभाई' (फाइल नं. १) से कहना होगा कि 'हे चंदुभाई, यहाँ आकर्षण होता है, इसलिए प्रतिक्रमण कीजिए।' तो आकर्षण बंद हो जाएगा। आकर्षण-विकर्षण दोनों हैं, वे हमें भटकानेवाले हैं। ८. 'वैज्ञानिक गाईड' ब्रह्मचर्य के लिए ऐसी पुस्तक (किताब) हिन्दुस्तान में छपी नहीं है। हिन्दुस्तान में ऐसी पुस्तक ब्रह्मचर्य की, खोजोगे तो भी नहीं मिलेगी। क्योंकि जो खरे ब्रह्मचारी हुए, वे कहने के लिए नहीं रहे हैं और जो ब्रह्मचारी नहीं हैं, वे कहने को रहे मगर उन्होंने लिखा नहीं है। ब्रह्मचारी नहीं है वे कैसे लिख पाएँगे? खुद के जो दोष हों, उस पर कोई विवेचन लिखना संभव नहीं है। अत: जो ब्रह्मचारी थे वे कहने को नहीं ठहरे, जो खरे ब्रह्मचारी थे वे चौबीस तीर्थकर! कृपालुदेव ने भी थोड़ा-बहुत इस बारे में कहा है। यह तो हमारी ब्रह्मचर्य की पुस्तक जिसने पढ़ी हो, वही ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है, वर्ना ब्रह्मचर्य पालन करना कोई आसान वस्तु नौ कलमें (भावनाएँ) १. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम् न दुभे (दुःखे), न दुभाया (दु:खाया) जाये या दुभाने (दुःखाने) के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो। मुझे किसी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम् न दुभे, ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम शक्ति दो। २. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभे, न दुभाया जाये या दुभाने के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो। मुझे किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभाया जाये ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम शक्ति दो। ३, हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी उपदेशक साधु, साध्वी या आचार्य का अवर्णवाद, अपराध, अविनय न करने की परम शक्ति दो। ४. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र भी अभाव. तिरस्कार कभी भी न किया जाये, न करवाया जाये या कर्ता के प्रति न अनुमोदित किया जाये, ऐसी परम शक्ति दो। ५. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा के साथ कभी भी कठोर भाषा, तंतीली भाषा न बोली जाये, न बुलवाई जाये या बोलने के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो। कोई कठोर भाषा, तंतीली भाषा बोलें तो मुझे मृदु-ऋजु भाषा बोलने की शक्ति दो। ६. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति स्त्री, पुरुष या नपुंसक, कोई भी लिंगधारी हो, तो उसके संबंध में किचिंत्मात्र भी विषय-विकार संबंधी दोष, इच्छाएँ, चेष्टाएँ या विचार संबंधी दोष न किये जायें, न करवाये जायें या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी जय सच्चिदानंद
SR No.009580
Book TitleBrahamacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages55
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size47 KB
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