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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य ७९ झगड़े विषय में एक हैं तब तक और विषय से छूटने के बाद हमारे बेग में रखें तो भी हर्ज नहीं। झगड़े नहीं होते फिर ? फिर कोई झगड़ा ही नहीं । प्रश्नकर्ता: पर यह सब देखकर हमें कँपकँपी छूटती है। फिर ऐसा होता है कि रोज़-रोज़ ऐसे ही झगड़े होते रहते हैं, फिर भी पति-पत्नी को इसका हल निकालने को मन नहीं करता, यह आश्चर्य है न? दादाश्री : वह तो कई सालों से, शादी हुई तभी से ऐसा चलता है। शादी के समय से ही एक ओर झगड़े भी चलते हैं और एक ओर विषय भी चलता है! इसलिए तो हमने कहा कि आप दोनों ब्रह्मचर्य व्रत ले लो तो लाइफ (जिन्दगी) उत्तम हो जाएगी। यह सारा लड़ाई-झगड़ा खुद की गरज से करते हैं। यह जानती है कि आख़िर वे कहाँ जानेवाले हैं ? वह भी समझता है कि यह कहाँ जानेवाली है? ऐसे आमने-सामने गरज से टिका हुआ है। विषय में सुख से अधिक, विषय के कारण परवशता के 'दुःख है ! ऐसा समझ में आने के बाद विषय का मोह छूटेगा और तभी स्त्री जाति (पत्नी) पर प्रभाव डाल सकेंगे और वह प्रभाव उसके बाद निरंतर प्रताप में परिणमित होगा। नहीं तो इस संसार में बड़े-बड़े महान पुरुषों ने भी स्त्री जाति से मार खाई थी। वीतराग ही बात को समझ पाए ! इसलिए उनके प्रताप से ही स्त्रियाँ दूर रहती थीं। वर्ना स्त्री जाति तो ऐसी है कि देखते ही देखते किसी भी पुरुष को लट्टू बना दे, ऐसी उसके पास शक्ति है। उसे ही स्त्री चरित्र कहा है न! स्त्री संग से तो दूर ही रहना और उसे किसी प्रकार के प्रपंच में मत फँसाना, वर्ना आप खुद ही उसकी लपेट में आ जाएँगे। और यही की यही झंझट कई जन्मों से होती आई है। स्त्रियाँ पति को दबाती हैं, उसकी वजह क्या है? पुरुष अति विषयी होता है, इसलिए दबाती हैं। ये स्त्रियाँ आपको खाना खिलाती हैं इसलिए दबाव नहीं डालतीं, विषय के कारण दबाती हैं। यदि पुरुष विषयी न हो तो कोई स्त्री दबाव में नहीं रख सकती! कमजोरी का ही फ़ायदा उठाती हैं। यदि कमज़ोरी न हो तो कोई स्त्री परेशानी नहीं करेगी। स्त्री बहुत समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य कपटवाली है और आप भोले ! इसलिए आपको दो-दो, चार-चार महीनों का (विषय में) कंट्रोल (संयम) रखना होगा। फिर वह अपने आप थक जाएगी। तब फिर उसे कंट्रोल नहीं रहेगा। ८० स्त्री वश में कब होगी? यदि आप विषय में बहुत सेन्सिटिव (संवेदनशील) हों तब वह आपको वश में कर लेती है। भले ही आप विषयी हों पर उसमें सेन्सिटिव न हों तो वह वश होगी। यदि वह 'भोजन' के लिए बुलाए तब आप कहो कि अभी नहीं, दो-तीन दिन के बाद, तो आपके वश में रहेगी। वर्ना आप वश हो जाएँगे। यह बात मैं पंद्रह साल की आयु में समझ गया था। कुछ लोग तो विषय की भीख माँगते हैं कि 'आज का दिन !' अरे ! विषय की भीख माँगते हैं कहीं? फिर तेरी क्या दशा होगी? स्त्री क्या करेगी? सिर पर चढ़ बैठेगी! सिनेमा देखने जाएँगे तो कहेगी, 'बच्चे को उठा लीजिए।' हमारे महात्माओं को विषय होता है, मगर विषय की भीख नहीं होती ! एक स्त्री अपने पति को चार बार साष्टांग करवाती है, तब एक बार छूने देती है। मुए, इसके बजाय समाधि लेता तो क्या बुरा था ? समुद्र में समाधि ले तो समुद्र सीधा तो है, झंझट तो नहीं ! विषय के लिए चार बार साष्टांग! प्रश्नकर्ता: पहले तो हम ऐसा मानते थे कि घर के कामकाज को लेकर टकराव होता होगा परंतु घर के काम में हाथ बटाएँ फिर भी टकराव होता है। दादाश्री : वे सारे टकराव होने ही वाले हैं। जब तक विकारी बातें हैं, विकारी संबंध हैं तब तक टकराव होगा। टकराव का मूल ही यह है 1 जिसने विषय जीत लिया, उसे कोई हरा नहीं सकता। कोई उसका नाम भी नहीं देगा। उसका प्रभाव पड़ता है। जब से हीराबा (दादाश्री की धर्मपत्नी ) के साथ मेरा विषय बंद हुआ, तब से मैं उन्हें 'हीराबा' कहता हूँ। उसके बाद हमें कोई खास अड़चन
SR No.009580
Book TitleBrahamacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages55
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size47 KB
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