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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य ६२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य में जाना है और वह व्यक्ति जानवर में जानेवाला हो तो हमें भी वहाँ खींच जाएगा। (विकारी) संबंध हुआ इसलिए वहाँ जाना पड़ेगा। इसलिए विकारी संबंध पैदा ही न हो, इतना ही देखना है। मन से भी बिगड़े हुए नहीं हों तब चारित्र्य कहलाए। उसके बाद ये सभी तैयार हो जाएँगे। मन बिगड़े तो फिर सब फ्रेक्चर हो जाता है, वर्ना एक-एक लड़की में कितनी-कितनी शक्तियाँ होती हैं ! वह कुछ ऐसी-वैसी शक्ति होती है? यह तो हिन्दुस्तान की स्त्रियाँ हों और उनके पास वीतरागों का विज्ञान हो, फिर क्या बाकी रहे? न? जैसे सीताजी और रामचंद्रजी परिणीत ही थे न? सीताजी को ले गए तो भी रामचंद्रजी का चित्त सीताजी और केवल सीताजी में ही था और सीताजी का चित्त रामचंद्रजी में ही था। विषय तो चौदह साल देखा ही नहीं था, फिर भी चित्त एक-दूसरे में था। इसे (सच्ची) शादी कहते है। बाकी ये तो हाजतमंद कहलाएँ, कुदरती हाजत! इसलिए पति हो तो झंझट न? पर यदि ब्रह्मचर्य व्रत लिया हो तो यह विषय संबंधी झंझट ही नहीं न! और ऐसा ज्ञान हो तब तो फिर काम ही बन जाए! इस बहन का तो निश्चय है कि 'एक ही जन्म में मोक्ष में जाना है। अब यहाँ रहना गवारा नहीं। इसलिए एक अवतारी ही होना है।' अतः उसे सभी साधन मिल आए, ब्रह्मचर्य की आज्ञा भी मिल गई! प्रश्नकर्ता : हम भी एक अवतारी ही होंगे? दादाश्री : तुझे अभी देर लगेगी। अभी तो थोड़ा हमारे कहने के अनुसार चलने दे। एक अवतारी तो आज्ञा में आने के बाद, इस ज्ञान में आने के बाद काम होगा। आज्ञा बगैर भी यों तो दो-चार जन्म में मोक्ष होनेवाला है, पर (यदि संपूर्ण) आज्ञा में आ जाए तब एक अवतारी हो जाए! इस ज्ञान में आने के बाद हमारी आज्ञा में आना पड़ता है। अभी आप सभी को ऐसी ब्रह्मचर्य की आज्ञा नहीं दी गई न? हम ऐसे तुरंत देते भी नहीं, क्योंकि सभी को पालन करना नहीं आता, अनुकूल भी नहीं आता, उसके लिए तो मन बहुत मज़बूत होना चाहिए। यदि तुझे ब्रह्मचर्य पालना हो तो इतनी सावधानी बरतनी होगी कि पुरुष का विचार भी नहीं आना चाहिए। यदि विचार आए तो उसे धो डालना चाहिए। एक शुद्ध चेतन है और एक मिश्र चेतन है। यदि मिश्र चेतन में कहीं फँस गया तो आत्मा प्राप्त हुआ हो, फिर भी उसे भटका देता है। अर्थात् इसमें विकारी संबंध हुआ तो भटकना पड़ता है, क्योंकि हमें मोक्ष 'ज्ञानी पुरुष' के पास खुद का कल्याण कर लेना है। खद कल्याण स्वरूप हुआ तो बिना बोले लोगों का कल्याण होता है और जो लोग बोलते रहते हैं उनसे कुछ नहीं होता। केवल भाषण करने से, बोलते रहने से कुछ नहीं होता। बोलने पर तो बुद्धि इमोशनल (भावुक) होती है। यों ही ज्ञानी का चारित्र्य देखने से, उस मूर्ति को देखने से ही सारे भावों का शमन हो जाता है। इसलिए उन्हें तो केवल खुद ही उस रूप हो जाने जैसा है! 'ज्ञानी पुरुष' के पास रहकर उस रूप हो जाना। ऐसी पाँच ही लड़कियाँ यदि तैयार हों तो कई लोगों का कल्याण करेंगी! संपूर्ण रूप से निर्मल होनी चाहिए। 'ज्ञानी पुरुष' के पास निर्मल हो सकते हैं और निर्मल होनेवाले
SR No.009580
Book TitleBrahamacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages55
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size47 KB
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