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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य करते हैं, ऐसा क्यों? इस गुनाह का यह परिणाम आएगा, ऐसा वे जानते हैं। इसलिए गुनाह का फल जानना चाहिए। पहले पता लगाना चाहिए कि गुनाह का क्या फल मिलेगा? यह गलत करता है, उसका फल क्या मिलेगा, वह पता लगाना चाहिए। जिसे दादाजी का निदिध्यासन रहे उसके सारे ताले खुल जाएँगे। दादाजी के साथ अभेदता वही निदिध्यासन है ! बहुत पुण्य हों तब ऐसा रहता है और 'ज्ञानी' के निदिध्यासन का साक्षात् फल मिलता है। वह निदिध्यासन खुद की शक्ति को उसीके अनुसार कर देगा, तद्प कर देगा, क्योंकि 'ज्ञानी' का अचिंत्य चिंतामणी स्वरूप है, इसलिए उस रूप कर देता है। 'ज्ञानी' का निदिध्यासन निरालंब बनाता है। फिर 'आज सत्संग हुआ नहीं, आज दर्शन हुए नहीं' ऐसा कुछ उसे नहीं रहता। ज्ञान स्वयं निरालंब है, वैसा ही खुद को निरालंब हो जाना पड़ेगा, 'ज्ञानी' के निदिध्यासन से। जिसने जगत कल्याण का निमित्त बनने का बीड़ा उठाया है, उसे जगत् में कौन रोक सकता है? कोई शक्ति नहीं कि उसे रोक सके! सारे ब्रह्मांड के सभी देवलोक उस पर फूल बरसा रहे हैं। इसलिए वह एक ध्येय निश्चित करो! जब से यह निश्चित करो तब से ही इस शरीर की आवश्यकताओं की चिंता करने की नहीं रहती। जब तक संसारी भाव है तब तक आवश्यकताओं की चिंता करनी पड़ती है। देखो न ! 'दादाजी' को कैसा ऐश्वर्य है! यह एक ही प्रकार की इच्छा रहे तो फिर उसका हल निकल आया। और दैवी सत्ता आपके साथ है। ये देव तो सत्ताधीश हैं, वे निरंतर सहाय करें ऐसी उनकी सत्ता है। ऐसे एक ही ध्येयवाले पाँच की ही ज़रूरत है! दूसरा कोई ध्येय नहीं, अनिश्चिततावाला ध्येय नहीं! परेशानी में भी एक ही ध्येय और नींद में भी एक ही ध्येय! सावधान रहना और 'ज्ञानी पुरुष' का आसरा जबरदस्त रखना। मुश्किल तो किस घड़ी आ जाए वह कह नहीं सकते पर उस घड़ी 'दादाजी' से सहायता माँगना, जंजीर खींचना तो 'दादाजी' हाज़िर हो जाएँगे! ५४ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य आप शुद्ध हैं तो कोई नाम देनेवाला नहीं है! सारी दुनिया आपके सामने हो जाए तो भी मैं अकेला (काफी) हैं। मुझे मालम है कि आप शद्ध हैं तो मैं किसी का भी मुकाबला कर सकूँ ऐसा हूँ। मुझे शत प्रतिशत विश्वास होना चाहिए। आपसे तो जगत् का मुकाबला नहीं हो सकता, इसलिए मुझे आपका पक्ष लेना पड़ता है। इसलिए मन में जरा भी घबराना मत। हम शुद्ध हैं, तो दुनिया में कोई हमारा नाम लेनेवाला नहीं है! यदि दादाजी की बात दुनिया में कोई करता हो तो यह 'दादा' दुनिया से निबट लेगा, क्योंकि पूर्णतया शुद्ध मनुष्य है, जिसका मन ज़रा-सा भी बिगड़ा हुआ नहीं है। १७. अंतिम जन्म में भी ब्रह्मचर्य तो आवश्यक ब्रह्मचर्य को तो सारे जगत् ने स्वीकार किया है। ब्रह्मचर्य के बिना तो कभी आत्मप्राप्ति होती ही नहीं। ब्रह्मचर्य के विरुद्ध जो हो, उस मनुष्य को आत्मा कभी भी प्राप्त नहीं होता। विषय के सामने तो निरंतर जागृत रहना पड़ता है। एक क्षणभर के लिए भी अजागृति चलती नहीं। प्रश्नकर्ता : ब्रह्मचर्य और मोक्ष में आपसी-संबंध कितना? दादाश्री : बहुत लेना-देना है। ब्रह्मचर्य के बगैर तो आत्मा का अनुभव पता ही नहीं चले। आत्मा में सुख है या विषय में सुख है' इसका पता ही नहीं चले! प्रश्नकर्ता : अब दो प्रकार के ब्रह्मचर्य हैं। एक, अपरिणीत ब्रह्मचर्य दशा और दूसरा, शादी के बाद ब्रह्मचर्य पालता हो, दोनों में उच्च कौनसा? दादाश्री : शादी के बाद पाले वह उच्च है। परंतु शादी करके पालना मुश्किल है। हमारे यहाँ कुछ लोग शादी के बाद ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, मगर वे लोग चालीस साल से ऊपर के हैं। शादीशुदा को भी आख़िरी दस-पंद्रह साल छोड़ना होगा। सभी से मुक्त होना पड़ेगा। महावीर स्वामी भी आख़िरी बयालीस साल मुक्त रहे
SR No.009580
Book TitleBrahamacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages55
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size47 KB
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