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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य जो पकड़े उसे ब्रह्मचर्य कायम रहेगा। इस बीज का स्वभाव कैसा है कि निरंतर पडता ही रहता है। आँखें तो तरह-तरह का देखती हैं इसलिए भीतर बीज पड़ता है, इसलिए उसे उखाड देना। जब तक बीज के रूप में है तब तक उपाय है, बाद में कुछ नहीं होनेवाला। कहें कि इनके प्रतिक्रमण करो। मन-वचन-काया से विकारी दोष, इच्छाएँ, चेष्टाएँ, आदि सारे दोष जो हुए हों, उनका प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। विषय के विचार आते हैं मगर खुद उससे अलग रहें, तो कितना आनंद होता है! तब विषय से हमेशा के लिए छूटें तो कितना आनंद रहे? ___ मोक्ष में जाने के चार आधार है; ज्ञान-दर्शन-चारित्र और तप । अब तप कब करना होता है? मन में विषय के विचार आते हो और खुद का दृढ निश्चय हो कि मुझे विषय भोगना ही नहीं है। इसे भगवान ने तप कहा। खुद की किंचित् मात्र इच्छा न हो, फिर भी विचार आते रहें, वहाँ तप करना है। अब्रह्मचर्य के विचार आएँ, मगर ब्रह्मचर्य की शक्ति माँगते रहें, वह बहुत उच्च कक्षा की बात है। ब्रह्मचर्य की शक्तियाँ बार-बार माँगने पर किसी को दो साल में, किसी को पाँच साल में ऐसा उदय में आ जाता है। जिसने अब्रह्मचर्य जीत लिया उसने सारा संसार जीत लिया। ब्रह्मचर्य पालनेवाले पर तो शासन देवी-देवता बहुत प्रसन्न रहते हैं। एक सावधान रहने योग्य तो विषय के बारे में है। एक विषय को जीत लिया तो बहुत हो गया। उसका विचार आने से पहले ही उखाड़ फेंकना चाहिए। भीतर विचार उगा कि तुरंत ही उखाड़ देना पड़ता है। दूसरी बात, यों ही दृष्टि मिली किसी के साथ तो तुरंत हटा लेनी पड़ती है। वर्ना वह पौधा जरा भी बड़ा हो तो तुरंत उसमें से फिर बीज पड़ते हैं। इसलिए वह पौधा तो उगते ही उखाड़ देना पड़ता है। जिस संग में हम फँस जाएँ ऐसा हो उस संग से बहुत दूर रहना चाहिए, वर्ना एक बार फँसे कि बार-बार फँसते ही जाएँगे। इसलिए वहाँ से भाग निकलना। फिसलानेवाली जगह हो वहाँ से दूर रहना, तो फिसलेंगे नहीं। सत्संग में तो दूसरी फाइलें इकट्ठा नहीं होतीं न? समान विचारवाले ही इकट्ठा होते हैं न? ___ मन में विषय का विचार आते ही उसे उखाड़ देना चाहिए और कहीं आकर्षण हुआ कि तुरंत ही प्रतिक्रमण करना चाहिए। इन दो शब्दों को ये सारी स्त्रियाँ आपको आकर्षित नहीं करतीं, जो आकर्षित करती हैं वे आपका पिछला हिसाब है। इसलिए उसे उखाड़कर फैंक दो, स्वच्छ कर दो। हमारे इस ज्ञान के पश्चात् कोई रुकावट नहीं है, केवल एक विषय के बारे में हम सावधान करते हैं। दृष्टि मिलाना ही गुनाह है और यह समझने के पश्चात् जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है। इसलिए किसी के साथ दृष्टि ही नहीं मिलाना। भावनिद्रा आती है कि नहीं? भावनिद्रा आए तो संसार तुझे लिपटेगा। अब भावनिद्रा आए तो वहीं उसी व्यक्ति के शुद्धात्मा के पास ब्रह्मचर्य के लिए शक्तियाँ माँगना कि 'हे शुद्धात्मा भगवान, मुझे सारे संसार के साथ ब्रह्मचर्य पालन करने की शक्तियाँ दीजिए।' यदि हमारे पास शक्तियाँ माँगे तो वह उत्तम ही है, परंतु जिस व्यक्ति के साथ व्यवहार हुआ है, वहाँ पर डिरेक्ट (सीधा) माँग लेना वह सर्वोत्तम है। प्रश्नकर्ता : आँख मिल जाए तो क्या करें? दादाश्री : हमारे पास प्रतिक्रमण का साधन है, उससे धो डालना। आँखें मिलें तो तुरंत ही प्रतिक्रमण कर डालना चाहिए। इसीलिए तो कहा है न कि स्त्री की फोटो, चित्र अथवा मूर्ति भी मत रखना। प्रश्नकर्ता : विषय में सबसे ज्यादा मिठास मानी गई है, तो वह किस आधार पर मानी गई है? दादाश्री : वह जो मिठास उसमें लग गई है और अन्य जगह मिठास देखी नहीं है, इसलिए उसे विषय में बहुत मिठास लगती है। पर देखा जाए तो ज्यादा से ज्यादा गंदगी वहीं है, पर मिठास के कारण उसे भान नहीं रहता।
SR No.009580
Book TitleBrahamacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages55
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size47 KB
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