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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य किसी धर्म ने विकार को स्वीकार नहीं किया। विकार का स्वीकार करें वे वाममार्गी कहलाते हैं। पहले के समय में वाममार्गी थे। विकार के साथ ब्रह्म को खोजने निकले थे। प्रश्नकर्ता: वह भी एक विकृत रूप ही हुआ कहलाए न? दादाश्री : हाँ, विकृत ही न! इसलिए वाममार्गी कहा न ! वाममार्गी अर्थात् मोक्ष में जाए नहीं और लोगों को भी मोक्ष में जाने नहीं दे। खुद अधोगति में जाए और लोगों को भी अधोगति में ले जाए। प्रश्नकर्ता: कामवासना का सुख क्षणिक है यह जानते हुए भी कभी उसकी प्रबल इच्छा होने का कारण क्या है और उसे कैसे अंकुश में रख सकते हैं? दादाश्री : कामवासना का स्वरूप जगत् ने जाना ही नहीं है। कामवासना क्यों उत्पन्न होती है, वह यदि जानें तो उस पर काबू कर सकते हैं पर वस्तुस्थिति में वह कहाँ से उत्पन्न होती है, इसका ज्ञान ही नहीं है। फिर कैसे काबू कर सकते हैं? कोई काबू नहीं कर सकता। जिसने काबू किया ऐसा दिखता है, वह तो पूर्व में की गई भावना का परिणाम है। कामवासना का स्वरूप कहाँ से उत्पन्न हुआ उसे जाने, वहीं ताला लगाए, तभी वह काबू में कर सकते हैं। अन्यथा फिर ताले लगाए या कुछ भी करे, तो भी कुछ चलता नहीं है। कामवासना न करनी हो तो हम उसका रास्ता दिखाएँगे। प्रश्नकर्ता: विषयों में से मोड़ने के लिए ज्ञान महत्वपूर्ण वस्तु है। दादाश्री : सभी विषयों से मुक्त होने के लिए ज्ञान ही ज़रूरी है। अज्ञान से ही विषय लिपटे हुए हैं। इसलिए कितने भी ताले लगाएँ तो भी विषय कुछ बंद होनेवाला नहीं है। इन्द्रियों को ताले लगानेवाले मैंने देखे हैं, पर ऐसे विषय बंद नहीं होता। ज्ञान से सब (दोष) चला जाता है। इन सभी ब्रह्मचारियों को (विषय का) विचार भी नहीं आता, ज्ञान के कारण। समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य प्रश्नकर्ता: सायकोलोजी ऐसा कहती है कि एक बार आप पेट भरकर आईस्क्रीम खा लें, फिर आपको खाने का मन ही नहीं करेगा। १२ दादाश्री : ऐसा दुनिया में हो नहीं सकता। पेट भरकर खाने पर तो खाने का मन करेगा ही। पर यदि आपको खाना नहीं हो और खिलाएँ, उसके बाद उलटियाँ होने लगें, तब बंद हो जाए। भरपेट खाने से तो फिर से जगता (खाने की इच्छा होती) है। इस विषय में तो हमेशा ज्यों-ज्यों विषय भोगता जाता है, त्यों-त्यों अधिक सुलगता जाता है। नहीं भोगने से थोड़े दिन परेशान होते हैं, शायद महीना - दो महीना । मगर बाद में अपरिचय से बिलकुल भूल ही जाते हैं। और भोगनेवाला मनुष्य वासना निकाल सके उस बात में कोई दम नहीं है। इसलिए हमारे लोगों की, शास्त्रों की खोज है कि यह ब्रह्मचर्य का रास्ता ही उत्तम है इसलिए सबसे बड़ा उपाय, अपरिचय ! 1 एक बार उस वस्तु से अलग रहें न, बारह महीने या दो साल तक दूर रहें तो फिर उस वस्तु को ही भूल जाता है। मन का स्वभाव कैसा है ? दूर रहा कि भूल जाता है। नज़दीक आया, कि फिर बार-बार कोंचता रहता है। परिचय मन का छूट गया। 'हम' अलग रहें तो मन भी उस वस्तु से दूर रहा, इसलिए भूल जाता है फिर, सदा के लिए। उसे याद भी नहीं आता। फिर कहें तो भी उस ओर नहीं जाता। ऐसा आपकी समझ में आता है ? तू अपने दोस्त से दो साल दूर रहे तो तेरा मन उसे भूल जाएगा। प्रश्नकर्ता: मन को जब विषय भोगने की हम छूट देते हैं, तब वह नीरस रहता है और जब हम उसे विषय भोगने में कंट्रोल (नियंत्रित ) करते हैं तब वह अधिक उछलता हैं, आकर्षण रहता है, तो इसका क्या कारण है? दादाश्री : ऐसा है न, इसे मन का कंट्रोल नहीं कहते। जो हमारा कंट्रोल स्वीकार नहीं करता तो वह कंट्रोल ही नहीं है। कंट्रोलर होना चाहिए न? खुद कंट्रोलर हो तो कंट्रोल स्वीकारेगा। खुद कंट्रोलर है नहीं, इसलिए मन मानता नहीं है। मन आपकी सुनता नहीं है न?
SR No.009580
Book TitleBrahamacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages55
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size47 KB
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