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________________ भावना से सुधरे जन्मोजन्म १९ प्रश्नकर्ता: समरसी यानी क्या? दादाश्री : समरसी यानी पूरनपूरी (दालवाली मीठी पूरी ), दालभात, सब्जी सब खाइए, मगर अकेली पूरनपूरी ही ढूँस-हँसकर नहीं खानी चाहिए। कुछ लोग मिठाई खाना छोड़ देते हैं, तब मीठाई उस पर दावा करेगी कि मेरे साथ तुझे क्या अनबन है? दोष भैंसे का और दंड भ को! अरे, जीभ का क्या कसूर? कसूरवार तो भैंसा है अर्थात् अज्ञानता का कसूर है। प्रश्नकर्ता: लेकिन समरसी भोजन यानी क्या? उसमें भाव की समानता किस प्रकार रहती है? दादाश्री : आप लोगों का ज्ञाति-भोज हो, उसमें जो भोजन बनाते हैं न, वह आपकी 'ज्ञाति' की रुचि अनुसार समरसी लगे वैसा भोजन बनाते हैं। और अन्य लोगों को आपकी 'ज्ञाति' का खिलाएँ तो उन्हें समरसी नहीं लगेगा, आप लोग मिर्च आदि कम खानेवाले हैं। समरसी भोजन प्रत्येक ज्ञाति का अलग-अलग होता है । समरसी भोजन यानी टेस्टफुल, स्वादिष्ट भोजन। मिर्च ज्यादा नहीं, फलाँ ज्यादा नहीं, सब उचित मात्रा में डाला हो ऐसी वस्तु । कोई कहता है कि, 'मैं तो सिर्फ दूध पीकर चला लूँगा।' यह समरसी आहार नहीं कहलाता। समरसी यानी भली-भाँति षट्स भोजन साथ मिलाकर खाओ, टेस्टफुल करके खाओ। (दूसरा) कडुआ नहीं खा पाओ तो करेले खाओ, खेकसा खाओ, मेथी खाओ पर कडुआ भी लेना चाहिए। कडुआ नहीं लेते इसकी वज़ह से तो सारे रोग होते हैं। इसलिए फिर क्विनाइन (कुनैन) लेनी पड़ती है ! उस रस की कमी होने से यह तकलीफ होती है। अर्थात् सभी रस लेने चाहिए। प्रश्नकर्ता: उसका मतलब यह है कि समरसी लेने के लिए शक्ति माँगना कि हे दादा भगवान ! मैं समरसी आहार ले सकूँ ऐसी शक्ति दीजिए? दादाश्री : हाँ, आप यह शक्ति माँगना । आपकी भावना क्या है? भावना से सुधरे जन्मोजन्म समरसी आहार लेने की आपकी भावना हुई, वही आपका पुरुषार्थ । और मेँ शक्ति दूँ, इससे आपका पुरुषार्थ परिपक्व हो गया। प्रश्नकर्ता : किसी भी रस में लुब्धता नहीं होनी चाहिए वह भी सही है? २० दादाश्री : हाँ, अर्थात् किसी को ऐसा तो नहीं होना चाहिए कि मुझे खटाई के सिवा और कुछ रूचिकर नहीं लगता। कुछ कहते हैं कि, 'हमें मीठा खाये बगैर मज़ा नहीं आता।' तब तीखे का क्या कसूर? कुछ कहें, 'हमें मीठा रूचिकर नहीं लगता, अकेला तीखा ही चाहिए।' यह सब समरसी नहीं कहलाता। समरसी यानी सब 'एक्सेप्टेड (स्वीकार्य)', कम-ज्यादा मात्रा में पर सब एक्सेप्टेड । प्रश्नकर्ता : समरसी आहार और ज्ञान, इन दोनों के बीच क्या कनेक्शन है? ज्ञानजागृति में जो आहार समरसी आहार नहीं हो वह नहीं लिया जा सकता? दादाश्री : समरसी आहार के लिए तो ऐसा है न कि हमारे (ज्ञानप्राप्त) महात्माओं को लिए तो अब 'जो हुआ सो व्यवस्थित' है, फिर उनको क्या खाना और क्या नहीं खाना, उसका कहाँ झगडा है? यह तो आम लोगों को बताया है और हमारे महात्माओं को भी थोड़ा विचार में तो आयेगा कि हो सके उतना समरसी आहार लेना चाहिए । प्रकृति का गुणन - भाजन प्रश्नकर्ता : प्रकृति समरसी होनी चाहिए ऐसा है क्या? दादाश्री : प्रकृति यानी क्या? तेरह से गुणा की गई चीज़ तेरह से भाग करने पर प्रकृति पूर्ण होगी। अब किसी सत्रह से गुणा की गई चीज़ को तेरह से भाग करने पर क्या होगा ? यानी यह तो अलग ही तरह का गुणन-भाजन किया। प्रश्नकर्ता : अर्थात् तेरह से गुणा किया तेरह से भाग करना ?
SR No.009578
Book TitleBhavna Sudhare Janmo Janam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size253 KB
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