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________________ भावना से सुधरे जन्मोजन्म भावना से सुधरे जन्मोजन्म जाये, न करवाया जाये या कर्ता के प्रति न अनुमोदित किया जाये, ऐसी परम शक्ति दो। दादाश्री : हाँ, सही है। हमें किसी के लिए अभाव हो, मान लीजिए कि आप ऑफिस में बैठे हैं और कोई आया तो आपको उसके प्रति अभाव हआ, तिरस्कार हुआ, तो फिर आपको मन में सोचकर उसका पछतावा करना चाहिए कि ऐसा नहीं होना चाहिए। इस तिरस्कार से कभी नहीं छूट सकते हैं। उसमें तो निरे बैर ही बंधते हैं। किसी के भी प्रति ज़रा-सा भी तिरस्कार होगा, इस निर्जीव के साथ भी तिरस्कार होगा तो भी आप नहीं छूट पायेंगे। अर्थात् किसी के प्रति जरा-सा भी तिरस्कार नहीं चलेगा। और जब तक किसी के लिए तिरस्कार होगा तब तक वीतराग नहीं हो पायेंगे। वीतराग होना पड़ेगा, तभी आप छूट सकेंगे। कठोर-तंतीली भाषा नहीं बोली जाये... प्रश्नकर्ता : ५. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा के साथ कभी भी कठोर भाषा, तंतीली (स्पर्धावाली, चुभनेवाली) भाषा न बोली जाये, न बुलवाई जाये या बोलने के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो। कोई कठोर भाषा, तंतीली भाषा बोलें तो मुझे मृदुऋजु भाषा बोलने की शक्ति दो। दादाश्री: कठोर भाषा नहीं बोलनी चाहिए। किसी के साथ कठोर भाषा निकल गई और उसे बुरा लगा तो हमें उसको रूबरू कहना चाहिए कि 'भैया, मुझ से भूल हो गई, माफ़ी माँगता हूँ।' और यदि रूबरू में नहीं कह पायें ऐसा हो तो फिर भीतर पछतावा करना कि ऐसा नहीं बोलना चाहिए। प्रश्नकर्ता : और हमें सोचना चाहिए कि ऐसा नहीं बोलना चाहिए। दादाश्री : हाँ, ऐसा सोचना चाहिए और पछतावा करना चाहिए। पछतावा करें तो ही वह बंद होता है वरना यों ही बंद नहीं होता। सिर्फ बोलने से बंद नहीं होता। प्रश्नकर्ता : मृदु-ऋजु भाषा यानी क्या? दादाश्री : ऋजु माने सरल और मृदु माने नम्रतापूर्ण। अत्यंत नम्रतापूर्ण हो तो मृदु कहलाती है। अर्थात् सरल और नम्रतापूर्ण भाषा हम बोलें और ऐसी शक्ति माँगे, तो ऐसा करते-करते वह शक्ति आयेगी। आप कठोर भाषा बोलें और बेटे को बरा लगा तो उसका पछतावा करना। और बेटे से भी कहना कि, 'मैं माफ़ी माँगता हूँ। अब फिर से ऐसा नहीं बोलूँगा।' यही वाणी सुधारने का रास्ता है और 'यह' एक ही कॉलेज है। प्रश्नकर्ता : कठोर भाषा, तंतीली भाषा तथा मृदुता-ऋजुता, इनमें क्या भेद है? दादाश्री : कई लोग कठोर भाषा बोलते हैं न कि, 'तू नालायक है, बदमाश है, चोर है।' जो शब्द हमने सुने नहीं हो, ऐसे कठोर वचन सुनते ही हमारा हृदय स्तंभित हो जाता है। कठोर भाषा ज़रा भी प्रिय नहीं लगती। उलटे मन में प्रश्न उठता है कि यह सब क्या है? कठोर भाषा अहंकारी होती है। और तंतीली भाषा माने क्या? रात को आपका आपकी पत्नी के साथ झगड़ा हो जाए और वह सबेरे चाय देते समय प्याला पटककर रखे, तब हम समझ जाये कि अहो! रात की घटना अभी तक भूली नहीं है! यही तंत कहलाता है। फिर वह जो वाणी बोले वह भी ऐसी ही तंतीली (चुभनेवाली) निकलती है। पंद्रह साल के बाद आपको कोई आदमी मिला हो (जिसके साथ आपका झगड़ा-टंटा हो गया हो) तब तक आपको उसके बारे में कुछ भी याद नहीं होता लेकिन उसके मिलते ही पुराना सबकुछ याद आ जाता है, ताजा हो जाता है। उसका नाम तंत कहलाता है।
SR No.009578
Book TitleBhavna Sudhare Janmo Janam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size253 KB
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