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________________ आत्मबोध ५२ आत्मबोध आत्मा क्या चीज है? आत्मा वो ही परमात्मा है। वो ही खुद है। आत्मा जान ली तो दूसरा कुछ जानने का नहीं रहता है। आत्मा अलख निरंजन है, उसका लक्ष्य बैठ गया कि सब काम पूरे हो गये। भी रस्ते भगवान को पकड़ लो! सब साध-सन्यासी भगवान की ही खोज करते है, लेकिन उनके हाथ में मैकेनिकल आत्मा आयी है। ये फिजिकल शरीर है, उसके अंदर मैकेनिकल आत्मा है। वो मैकेनिकल आत्मा को 'आत्मा' मानते है। वो ठीक बात नहीं है, पूरी बात नहीं है। आत्मा तो अचल है, अविचल है। वो सेल्फ का रीयलाइज कभी हुआ ही नहीं और जो सेल्फ रीयलाइज किया है, वो रोंग किया है। सच्चा रीयलाइज किया, फिर परमात्मा हो जाता है। ये शरीर दिखता है न, वो चेतन नहीं है। चेतन चेतन ही है। ये शरीर जो सारे दिन धंधा करता है, पानी पीता है, शादी करता है, संसार में जो कुछ करता है, वो सब में चेतन कुछ भी नहीं करता है। उसमें चेतन है ही नहीं। वो जो करता है, वो सिर्फ ड्रामेटिक पुतला है, दूसरा कुछ नहीं है और उसको ही मानता है कि, 'मैं हूँ, मैं हूँ' वो ही माया है। दूसरी कोई माया नहीं है। जिधर खुद नहीं है, वहाँ 'मैं हूँ' बोलते है और जिधर है, उधर कुछ ख़बर नहीं, मालूम ही नहीं है। ___ आत्मा प्राप्त करने के लिए लोग बाहर भटकते हैं। लेकिन वो कैसे मिले? जिसको आत्मा मिला है उनके पास जाओ, तो वो आपकी आत्मा जो अंदर है, उसे खुल्ली (प्रकट) कर देते है। हम हमारा देते ही नहीं, आपका ही लेने का है। लेकिन आपको खयाल नहीं है कि किधर है, वो हम बता देते है। खुद कौन है, ऐसे खुद के स्वरुप का भान नहीं हुआ है, वहाँ तक 'मैं करता हूँ' वो भान नहीं जाता। ये जगत में विकट में विकट कुछ है, तो वो आत्मा जानने की बात बहुत विकट है। आत्मा के लिए सब लोगों ने अलग अलग कल्पना की है। आत्मा कल्पित नहीं है। आत्मा कल्पना स्वरूप नहीं है। जैनों ने अलग कल्पना की है. वेदांत ने भी अलग कल्पना की है। वेदांत ने तो बोल दिया कि 'This is not that, this is not that !' आत्मा जानना है, तो वो इसमें (वेद में) नहीं है, गो टु 'ज्ञानी'। 'ज्ञानी' के पास आत्मा है। दूसरी कोई जगह पर आत्मा नहीं हो सकती। आत्मा तो सब जगह पर है, लेकिन आत्मज्ञान नहीं है। ये शरीर अपना नहीं है, मन अपना नहीं है, ये वाणी भी अपनी नहीं है। और जो अपना नहीं है उसको 'मेरा है, मेरा है' करता है, इससे कर्मबंधन होता है, इससे संसार चालू रहता है। बुरा करता है तो बुरे फल भुगतने पड़ते हैं। उससे अच्छा करना वो अच्छी चीज है। लेकिन अच्छा करना वो भी भ्रांति है। उससे अच्छा फल मिलेगा लेकिन मुक्ति नहीं मिलेगी। आत्मा क्या है? वो तो क्षेत्रज्ञ है। क्षेत्रज्ञ याने क्षेत्र को जाननेवाला है। दूसरा कुछ करनेवाला नहीं है। सब क्षेत्र को जाननेवाला, सभी चीजों को जाननेवाला है। लेकिन पहले आत्मा का भान होना चाहिये। एक बार आत्मा का भान हो गया तो फिर आगे सब कुछ हो सकता है। आत्मा क्या चीज है, वो कभी स्पष्ट नहीं हुआ। जब 'ज्ञानी' होते हैं, तभी सब चीज स्पष्ट होती है। सारी दुनिया के पज़ल सोल्व हो जाते हैं। आत्म अनुभव : ज्ञान से या विज्ञान से ? प्रश्नकर्ता : ज्ञान क्या चीज है? दादाश्री : ज्ञान दो प्रकार के रहते हैं। एक ज्ञान, जो कुछ नहीं कर सकता है, वो शब्दज्ञान। शास्त्र के अंदर, पुस्तक के अंदर, वेदान्त के अंदर जो ज्ञान है, उसे जान लिया लेकिन वो ज्ञान क्रियाकारी नहीं है। और दूसरा ज्ञान है, वो ज्ञान ही काम करता है। अपना 'खुद' का ज्ञान जान लिया, वो क्रियाकारी ज्ञान है। प्रश्नकर्ता : क्षर ज्ञान ऊँचा है या अक्षर ज्ञान?
SR No.009577
Book TitleAtmabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size91 KB
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