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________________ आत्मबोध ३० आत्मबोध दादाश्री : वो ही समझने का है। वो चेतन नहीं है, निश्चेतन चेतन है। चेतन जैसा दिखता है, लक्षण चेतन जैसे है लेकिन गणधर्म चेतन का नहीं है। कोई आदमी ने घडी को चाबी दिया, फिर वो घडी चलती है, ऐसे वह चार्ज हो गया है, वह ही डिस्चार्ज होता है। पिछले जन्म में चार्ज हो गया था, वो ही अभी इस जन्म में डिस्चार्ज होता है। जन्म से मृत्यु पर्यंत डिस्चार्ज होता है और उसी समय अंदर चार्ज भी हो रहा है। वो ही आगे के जन्म में फिर डिस्चार्ज हो जायेगा। चार्ज दो प्रकार के है। कई लोग सभी लोगों को सख हो ऐसे ही कार्य करते हैं तो जगत इसमें खुश (होता) है कि ये बराबर है। जो सब के लिए अच्छा कर्म करता है, तो सब लोग उसको मान्य करते है। लेकिन इसका भी चार्ज होता है, ये पोझीटिव चार्ज है। कई आदमी दूसरों को दुःख देते है, वो नेगेटिव चार्ज है। चार्ज नहीं होना वो ही मख्य बात है। चार्ज बंद हो गया तो फिर चिंता नहीं होती है और संसार में भी रह सकता है। झगड़ा बढ़ गया। प्रश्नकर्ता : छः पार्टनर कौन हैं? दादाश्री : ये छ: पार्टनर क्या बोलने लगे कि अपने छः पार्टनर होकर बिजनेस चलायेंगे। तो पहला पार्टनर आया कि 'भाई ! बिजनेस के लिए जगह हमारी!' जगह चाहिये कि नहीं? वो आकाश देता है। अवकाश, वो वन ओफ धी पार्टनर है। दूसरा पार्टनर बोलता है कि, जो माल चाहिये, जितना चाहिये, उतना ले जाओ, हम देगा। माल हम भेज देगा, लेकिन कार्टिंग हम नहीं करेगा। मैटेरियल सब पुद्गल देता है। उसकी भी 1/6th पार्टनरशिप है। वो सब काटिंग कर देता है। माल लानेले जाने का काम वो करता है। जड में या चेतन में आने-जाने की शक्ति नहीं है। आने-जाने के लिए ये तत्त्व है। तीसरा भागीदार काटिंगवाला है। वो गति सहायक तत्त्व है। चौथा पार्टनर स्थिति सहायक तत्त्व है। वो सब निकम्मा माल फेंक देता है। मैटेरियल को स्थिर करता है। पाँचवा पार्टनर वो मेनेजमेन्ट करता है। वो सब टाइमिंग देता है। वो काल तत्व है। छठा आत्मतत्व है। उसको क्या काम करने का? सिर्फ देखभाल रखने की। आत्मतत्व ही एक ऐसा है, जिसमें चैतन्य है, ज्ञान-दर्शन है। ये आत्मा है न, वो आप खुद हैं। आपको सिर्फ देखभाल रखने की थी कि, 'सब क्या कर रहे हैं।' उसके बदले आप बोलते हैं, 'ये सब मैंने किया।' तो पार्टनरो में झगड़ा हुआ। इसलिए सब पार्टनर कोर्ट में झगड़ा करते हैं। कमल और पानी में कोई झगड़ा नहीं है, ऐसा संसार और ज्ञान को कोई झगड़ा नहीं। दोनों अलग ही हैं। मात्र रोंग बिलीफ है। 'ज्ञानी पुरुष' सब रोंग बिलीफ को फ्रेक्चर कर देते हैं और संसार सब अलग हो जाता है। अभी आप 'ज्ञानी' से विमुख हैं। जब 'ज्ञानी' से सन्मुख हो जायेंगे, तब संसार छूट जायेगा। जगत की वास्तविकता ! प्रश्नकर्ता : मैं आपके पास ज्ञान जानने आया हूँ। रवीन्द्र तो नाम दिया है, आपको पहचान करने के लिए। जैसे दुकान का नाम होता है कि जनरल ट्रेडर्स, तो वो क्या मालिक का नाम है? और मालिक को कोई बोलेगा कि, जनरल ट्रेडर्स, इधर आओ, इधर आओ! ऐसा 'रवीन्द्र' तो दुकान का नाम है। इसमें छ: पार्टनर है। इस कम्पनी में छ: पार्टनर है और जब शादी करता है, तब फिर ये दूसरे छह पार्टनर हुआ तो ६+६ का कोर्पोरेशन हो गया। फिर एक लड़का हुआ तो ओर छः पार्टनर हुआ, लड़की हुई तो ओर छ: पार्टनर हुआ, फिर सब पार्टनर झगड़ते हैं अंदर ही अंदर, मारामारी, लट्ठाबाजी!! ये छ: पार्टनर अपना अपना काम संभाल लेते हैं। हमें अपना काम संभाल लेने का है। लेकिन हम ईगोइज्म करते है कि, 'मैं बोलता हूँ, ये सब मैंने किया। 'मैंने किया ऐसा बोल दिया, फिर बाकी के सब पार्टनर आपके साथ पूरा दिन झगड़ते है। इसका कोर्ट में झगडा चलता है। फिर वाईफ के छ: पार्टनर आ गये, फिर तो कोर्पोरेशन हो गया और
SR No.009577
Book TitleAtmabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size91 KB
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