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________________ आत्मबोध १८ आत्मबोध प्रश्नकर्ता : तो फिर वो है क्या कि जब वो दिखती नहीं, हम उसको टच नहीं कर सकते? प्रश्नकर्ता : अंदर जो भगवान हैं, हम उनका ही कुछ हिस्सा हैं? दादाश्री : देखो न, भगवान ऐसी वस्तु है के उसका कोई पार्ट नहीं हो सकता है। वो सर्वांश है। इसमें अंश नहीं होता है। आप बोलते हैं कि मैं इनका पार्ट हूँ, वो गलत बात है। वो सच्ची बात नहीं है। आप खुद ही सर्वांश है, लेकिन भ्रांति से आपको मालूम नहीं है। भगवान कभी अंश रूप होते ही नहीं, सर्वांश ही होते हैं। वो अंश बोलते हैं, उसका क्या मतलब है कि उसको जो आवरण है, उसमें से अंश लाइट ही मिलता है। उसमें छेद करते हैं, पाँच छोटे छेद, तो उसमें से थोड़ी थोड़ी लाइट मिलती है। उसमें जितने छेद करते है, उतनी ही लाइट मिलती है। वो लाइट भगवान की है। भगवान सर्वांश है लेकिन ये आवरण हैं, इस लिए इसमें से फुल लाइट नहीं मिलती। प्रश्नकर्ता : सभी आदमी 'शुद्धात्मा' हैं तो फिर पाप क्यों करते दादाश्री : वो समझ में आती है, अनुभव में आती है। प्रश्नकर्ता : वो कैसे अनुभव में आती है? दादाश्री : जैसे ये शक्कर होती है न, उसको सब बोलते है कि मीठी है। लेकिन जहाँ तक जीभ उपर नहीं रखी, वहाँ तक आप बोलेंगे कि मीठी याने क्या? वो तो जब जीभ उपर रखेंगे, तब मालूम हो जायेगा। ऐसा आत्मा का अनुभव हो जाये तब मालम हो जाता है। आत्मा का अनुभव कैसे होता है? अभी आपको थोड़ा आनंद हुआ है कि नहीं हुआ दादाश्री : 'शुद्धात्मा हूँ', वो उनकी बिलीफ में नहीं है। उनकी बिलीफ में तो 'मैं रवीन्द्र हूँ' ऐसा है। वो रोंग बिलीफ चली जायेगी, फिर पाप नहीं करेगा। चेतन तत्त्व को देखना कैसे ? प्रश्नकर्ता : यह आत्मा क्या है? प्रश्नकर्ता : बहुत हुआ है। दादाश्री : ये आत्मा का आनंद है। ऐसा आनंद रोज मिल जाये, जिसमें बाहर की कोई भौतिक चीज नहीं है। ऐसे ही आनंद हो जाये, तो आपको समझ जाने का कि आत्मा का पहला गुण देखा। फिर दूसरा गुण पकड़ने का, फिर तीसरा गुण पकड़ने का। ऐसे सब गुण मिल जायेंगे। लेकिन पहला आनंद से पकड़ने का। आपको कुछ आनंद हुआ? प्रश्नकर्ता : होता है। जब सवाल का जवाब मिलता है, तब आनंद होता है। दादाश्री : ये आकाश है न, वो आपको दिखता है? लेकिन लगता है न कि आकाश जैसी कोई चीज है! ऐसे ही आत्मा अरुपी है। हम आत्मा को सभी में देख सकते हैं। (जिन्होंने) ज्ञान लिया है, वो सब लोग आत्मा को दिव्यचक्षु से देख सकते है और हम आत्मा के अनुभव में रहते हैं। आत्मा की हाजरी से ही सब कुछ चल रहा है। वो कुछ नहीं करती. सिर्फ ओब्जर्वर की तरह रहती है, आदमी बनाना ऐसा काम वो नहीं करती। दादाश्री : आनंद भी दो प्रकार के है। एक, भौतिक आनंद है, वो मानसिक आनंद है और दूसरा, आत्मा का आनंद है। मानसिक आनंद है, वो मन खुश हो गया कि होता है और आत्मा का आनंद, आत्मा का ज्ञान मिलने से होता है। ऐसे ज्ञान भी दो प्रकार के है। मन खुश हो जाये, ऐसा भी ज्ञान होता है। उससे मन इमोश्नल रहता है, आकुल-व्याकुल रहता है और दूसरा, ऐसा भी ज्ञान हो जाता है, कि खुद को प्रकाश मिलता है। उसमें निराकुलता होती है।
SR No.009577
Book TitleAtmabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size91 KB
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