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________________ (१) जागृति दादाश्री : स्थिरता जैसा कुछ भी नहीं होता! यह 'मशीन' बहुत गरम हो जाए, तब उसे बंद करके ठंडा कर देते हैं न? वैसे ही यह सुषुप्ति में बंद रहता है, मन पूरे दिन का गरम हो गया हो, वह बंद हो जाता है। नींद सारी मशीनरी को ठंडा कर देती है। २१ प्रश्नकर्ता: ज्ञान लेने की इच्छा हुई, वह स्वरूप जागृति कहलाती है? दादाश्री : उसे स्वरूप जागृति के संयोग मिलने शुरू हुए, ऐसा कहा जाएगा। पहले स्वरूपज्ञान प्राप्त करने की इच्छा होनी, वह एक संयोग मिला, फिर 'ज्ञानी पुरुष' मिल जाते हैं। स्वरूपज्ञान प्राप्त करने का संयोग मिले तभी काम हो सके वैसा है, पर वह सब 'साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स' है। (२) ध्यान ध्यान का स्वरूप प्रश्नकर्ता: जैन धर्म में ध्यान क्यों नहीं है? दादाश्री : जैन धर्म में चारों ध्यान हैं। वे अपने आप ही होते हैं। ध्यान करना नहीं होता है। प्रश्नकर्ता: ध्यान किसे कहते हैं? दादाश्री : सांसारिक क्रियाएँ करते हुए ही ध्यान होता है। और आपको तो एक जगह पर बैठकर ध्यान करना पड़ता है न? प्रश्नकर्ता: हाँ। दादाश्री : वह तो एकाग्रता कहलाती है। ध्यान तो हरएक को होता ही रहता है। ध्यान किसे कहते हैं? अभी कोई आपको गाली दे कि 'आपमें अक्कल नहीं है।' इतना ही बोले तो आपको रौद्रध्यान हो जाएगा। वह अपने आप ही हो जाता है, कोई उकसाए तो ध्यान उत्पन्न हो जाता है। प्रश्नकर्ता : यह ध्यान किस तरह होता है? उसकी 'स्टेज' कैसी है? दादाश्री : किसीने कहा कि, 'आपने यह सब उल्टा कर दिया।' उस समय जो आपको अंदर असर हो जाता है, गुस्सा आता है, वह रौद्रध्यान है। कभी मन में ऐसा हो कि, 'अब मेरा क्या होगा?' वह आर्तध्यान । 'चीनी पर कंट्रोल आ गया, चीनी नहीं लाए हैं, अब क्या होगा?" वह सब आर्तध्यान। आर्तध्यान और रौद्रध्यान रोज़ होते ही रहते हैं। और
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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